Monday, February 26, 2018

पूरी दुनिया में मराठा शक्ति का लोहा मनवाने वाले छत्रपति शिवाजी से जुड़ी 13 खास बातें

मराठा शक्ति का पूरी दुनिया में लोहा मनवाने वाले और कभी हार न मानने वाले महान योद्धा, रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी महाराज  को उनके अदम्य साहस, कूटनीति, बुद्धिमता, कुशल शासक और महान योद्धा के रूप में पूरा भारत जानता है। आइये जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ खास बातें:-

इस दिन हुआ था जन्म


मुग़ल शासन के दौरान मराठाओं की स्वतंत्रता को बनाये रखने में शिवाजी महाराज ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया। 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में जन्मे शिवाजी महाराज की माता का नाम जीजाबाई और पिता का नाम शाहजी भोंसले था।

माता से मिली थी युद्ध कौशल की प्राथमिक शिक्षा


शिवाजी महाराज को छोटी उम्र से ही युद्ध कौशल और राजनीति की शिक्षा माता जीजाबाई से मिली। इससे उनका चरित्र मजबूत बनता गया। शिवाजी महाराज ने मुगलों के शासन पर कड़ी चोट की और अपने शासन काल में मराठा शक्ति को बढ़ाने का सिलसिला जारी रखा। शिवाजी महाराज को छत्रपति शिवाजी महाराज और शिवाजी राजे भोसले के नाम से जाना जाता है।

माता की हर आज्ञा का पालन करते थे शिवाजी


कहा जाता है कि शिवाजी का अपनी मां जीजाबाई से बहुत लगाव था। वह उनकी हर आज्ञा का पालन करते थे। शिवाजी का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। जिस कारण उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था। यही नहीं, वह महिलाओं का बेहद सम्मान करते थे। शिवाजी ने महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा या उत्पीड़न का हमेशा विरोध किया। उन्होंने सैनिकों को सख्त निर्देश दिये थे कि छापा मारते वक्त किसी भी महिला को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। 

15 साल कि उम्र में 'तोरना' पर पाई विजय


शिवाजी युद्ध की रणनीति बनाने में माहिर थे। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने कई बड़ी लड़ाइयां जीतीं। छापेमारी युद्ध कौशल का परिचय उन्होंने तब दिया जब सिर्फ 15 साल उम्र में उन्होंने 'तोरना' किले पर कब्जा करके बीजापुर के सुल्तान को तगड़ा झटका दिया। 1655 आते-आते उन्होने एक के बाद एक कोंडन, जवली और राजगढ़ किलों पर कब्जा कर धीरे-धीरे सम्पूर्ण कोंकण और पश्चिमी घाट पर कब्जा जमा लिया था।

संत रामदास थे शिवाजी के गुरु


शिवाजी संत रामदास और तुकाराम से बहुत प्रभावित हुए। संत रामदास शिवाजी महाराज के आध्यात्मिक गुरु भी थे। छत्रपति शिवाजी का विवाह 14 मई सन 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ हुआ। उनका पुत्र संभाजी शिवाजी की मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी बना और मराठों की आजादी को बरकरार रखा।

कहे जाते हैं नौसेना के जन्मदाता


शिवाजी ने एक शक्तिशाली नौसेना का निर्माण किया था। इसलिए उन्हें भारतीय नौसेना के जनक के रूप में जाना जाता है। अपने प्रारंभिक चरणों में ही उनको नौसैनिक बल के महत्व का एहसास हो गया था। उन्हें यकीन था कि मजबूत नौसेना न सिर्फ डच, पुर्तगाली और अंग्रेजों सहित विदेशी आक्रमणकारियों को रोकेगी बल्कि समुद्री डाकुओं से कोंकण तट की भी रक्षा करेगी। यहां तक कि उन्होंने जयगढ़, विजयदुर्ग, सिन्धुदुर्ग और अन्य कई स्थानों पर नौसेना किलों का निर्माण किया। क्या आपको पता है कि उनके पास चार अलग-अलग प्रकार के युद्धपोत भी थे जैसे मंजुहस्म पाल्स (Manjuhasm Pals), गुरब्स (Gurabs) और गल्लिबट्स (Gallibats)।

शिवाजी ने शुरू की थी गुरिल्ला युद्धनीति


उनको पहाडों का चूहा कहा जाता था क्योंकि वह अपने इलाके की भौगोलिक स्थिति से अच्छी तरह से वाकिफ थे। गुरिल्ला युद्ध में उन्हें महारत हासिल थी। छोटे समूहों के साथ दुश्मनों पर अचानक हमला कर वे शत्रु खेमे में खलबली मचा देते थे। जब तक दुश्मन कुछ समझ पाता या संभल पाता तब तक तो वे अपना अभियान पूरा कर निकल जाते थे। 

मराठा सेना का किया था निर्माण


वह शिवाजी ही थे, जिन्होंने मराठों की एक पेशेवर सेना का गठन किया।  उन्होंने एक औपचारिक सेना जहां कई सैनिकों को उनकी सेवाओं के लिए साल भर का भुगतान किया गया उसका गठन किया था। मराठा सेना कई इकाइयों में विभाजित थी और प्रत्येक इकाई में 25 सैनिक थे। हिंदू और मुस्लिम दोनों को बिना किसी भेदभाव के सेना में नियुक्त किया जाता था।

 600 सैनिकों को चकमा देकर भागने में हुए कामयाब


जब शिवाजी महाराज सिद्दी जौहर की सेना द्वारा पन्हाला किला में फंस गये थे। तब इससे बचने के लिए उन्होंने एक योजना तैयार की।  उन्होंने दो पालकियों की व्यवस्था की जिसमें शिव नहावीं को बिठा दिया जो बिलकुल  शिवाजी की तरह दिखता था। उसे किले से बाहर का नेतृत्व करने के लिए जाने को कहा। इतने में दुशमन के सैनिक नकली पालकी के पीछे चले गए और इस तरह से वह 600 सैनिकों को चकमा देकर भागने में कामयाब हुए।

मराठी एवं संस्कृत भाषा को दिया महत्व


शिवाजी महाराज ने फारसी की जगह मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। उनके प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए 8 मंत्रियों की एक परिषद थी, जिन्हें अष्टप्रधान कहा जाता था। शिवाजी के साम्राज्य में पंडितों की तरह संत-फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था। वह अपने अभियानों का आरंभ अकसर दशहरा के अवसर पर किया करते थे।

बीजपुर के सुलतान के आगे नहीं झुकाया था सिर


शिवाजी महाराज के पिता शाहजी अकसर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे। इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अंदाजा नहीं था। एक दिन वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में अपने साथ ले गए। शाहजी ने तीन बार झुक कर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा। लेकिन, शिवाजी अपना सिर ऊपर उठाए सीधे खड़े रहे। एक विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सिर झुकाने को तैयार नहीं हुए।यही कारण था कि छत्रपति शिवाजी महाराज को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है।

महिला की इज्जत लूटने  वाले को दी थी ऐसी सजा


एक बार शिवाजी के समक्ष उनके सैनिक किसी गांव के मुखिया को पकड़ कर ले आए। मुखिया पर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था। उस समय शिवाजी की उम्र मात्र चौदह साल थी लेकिन उन्होंने निडरता से अपना निर्णय सुनाया और कहा- 'इसके दोनों हाथ और पैर काट दो,' ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती।

 चीते से अकेले ही भिड़ गए थे शिवाजी


एक प्रसिद्ध किस्सा है, शिवाजी महाराज के साहस का। यह उस समय की बात है, जब पुणे के करीब नचनी गांव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था। भयभीत ग्रामीण शिवाजी के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। शिवाजी ने कहा- आप लोग निश्चिंत रहे, मैं यहां आपकी मदद करने के लिए ही हूं। फिर शिवाजी अपने सिपाही और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े। चीता सामने आया तो सैनिक डर कर पीछे हट गए लेकिन  शिवाजी बिना डरे अकेले ही ‍चीते पर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया।

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