Wednesday, January 3, 2018

इन 9 तरीकों से सर्वाइव करते हैं सियाचिन में तैनात भारतीय सैनिक


सियाचिन एक ऐसा युद्धक्षेत्र जहां पारा शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसी जगह जहां ठण्ड से हड्डियां भी कड़कड़ाने लगें। ऐसी जगह जहां हम और आप शायद पांच मिनट भी जीवित न रह सकें। लेकिन भारतीय सेना के जवान यहां कई माह तक तैनात रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यहां वे कैसे सर्वाइव करते हैं। आखिर हैं तो वे भी हमारी ही तरह इंसान। यहां उन्हें न सिर्फ ठण्ड बल्कि तमाम तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं लेकिन इनसे वे कैसे पार पाते हैं?  आज हम आपको इस बारे में बता रहे हैं कि आखिर कैसे इतने लम्बे समय तक ड्यूटी कर पाते हैं जवान-:

सैनिकों को ऊंचाई पर तैनाती के अनुकूल बनाया जाता है


बर्फीली पर्वतीय तैनाती के कठिन हालातों से निपटने के लिए इस बात का विशेष ख्याल रखा जाता है कि सैनिकों के शरीर को घातक नुक्सान न पहुंचे। तैनाती से पहले सैनिकों को विभिन्न ऊंचाइयों पर परिस्थितियों के अनुकूल बनाया जाता है। ताकि उनका शरीर बदलते मौसम और उच्च तंग क्षेत्र के अभ्यस्त हो सकें। इसके लिए उन्हें शारीरिक मानसिक और जैव रसायन और हार्मोन प्रोफाइल के आधार पर अनुकूल बनाया जाता है। पहले चरण में 2700 से 3600 मीटर दूसरे चरण में 3600 से 4500 मीटर और तीसरे व अंतिम चरण में सैनिकों को कुछ दिनों के लिए 4500 मीटर से ज्यादा उंचाई पर  रखकर भी माहौल के अनुकूल बनाया जाता है।

मैदानी इलाकों में भी दी जाती है उंचाई पर रहने की ट्रेनिंग


कई बार आपातस्थिति में विभिन्न ऊंचाईयों पर माहौल के अनुकूल बनाने की प्रक्रिया में देरी की संभावना रहती है।इसलिए हिमशिखरों पर तेज तैनाती के लिए वैज्ञानिकों ने नया तरीका निकाला है जिसके तहत मैदानी समतल इलाके में 'हाइपोबरिक रूम' बनाया गया है। जहां सैनिकों को सियाचिन जैसे कृत्रिम हालातों में रखा जाता है ताकि सैनिकों को हाई एलटीटीयुड में आकस्मिक रूप से तैनात किया जा सके  इस तकनीक को 'नोर्मोबैरिक हैपोक्सिया' कहा जाता है।

बिजली वाले दस्ताने और मौजे


अत्यधिक ऊंचाई वाले इलाकों में सैनिकों को बेतहाशा ठण्ड का सामना करना पड़ता है। ठण्ड इतनी ज्यादा होती है कि हाथ पांव गलने का खतरा बना रहता है। कई बार अंगुली या पंजे को काटने की भी नौबत आ जाती है। इसके लिए DRDO ने हाथ पांव गलने यानी फ्रॉस्ट बाईट से सैनिकों को बचाने के लिए ऐसे दस्ताने और मौजे बनाए हैं, जो बैटरी की मदद से चार्ज किये जा सकते हैं और ये हाथ पैरों को तकरीबन 4 घंटों तक गरम रख सकते हैं।

अलोकल क्रीम या लोशन


सैनिकों की फ्रॉस्ट बाईट की समस्या से निजात दिलाने के लिए DRDO ने एक ख़ास लोशन भी विकसित किया है। जिसका नाम है अलोकल क्रीम। इस क्रीम में विभिन्न रसायनों का इस्तेमाल हुआ है जो सैनिकों के लिए काफी सहायक साबित हो रही है।

ताजा फल  और सब्जियां


इतनी ऊंचाई पर सैनिकों तक ताजा भोजन सब्जियां पहुंचाना काफी मुश्किल होता है। लेह जैसे ठंडे बंजर में खेती किसानी संभव नहीं है। वहीँ अन्य स्थानों से यहां ताजा सब्जियां फल आदि पहुंचाने की कीमत बहुत जयादा आती है और इनके जायके में भी फर्क आ जाता है। ऐसे में इन समस्याओं से पार पाने के लिए काम करता है DRDO का लेह स्थित DIHAR यानी 'defence institute of high altitude research'  जिसमें रक्षा वैज्ञानिकों ने खेती का नया तरीका अपनाया है। यहां ग्रीन हाउस, पोली हाउस और ट्रेंच प्रणाली द्वारा सब्जियां व फल उगाये जाते हैं। इस तकनीक से करीब 500 मीट्रिक तन सब्जियां लेह में ही पैदा की जा रही है, जो सैनिकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं।

 ताजा दूध और मांस


सैनिकों को ताजा दूध व मांस उपलब्ध कराने के लिए संकर नस्ल के पशु भी तैयार किये गए हैं। जैसे कुछ भेड़ों की संकर प्रजातियाँ तैयार की गईं हैं जिनसे अधिक मात्र में मांस प्राप्त होता है और स्थानीय स्तर पर ही ताजा मांस की जरुरत पूरी हो जाती है। इसी तरह संकर नस्ल की गायों की प्रजाति भी विकसित की गईं हैं जो सामान्य से नीचे के तापमान पर जीवित रह पाती हैं और अधिक दूध देती हैं। लेह में तकरीबन 40 से ज्यादा हाइब्रिड गाय विकसित की जा चुकी हैं। जिससे स्थानीय स्तर पर 25 फीसदी दूध की जरुरत पूरी हो जाती है।

गर्म भोजन के थर्मोपैक



अत्यधिक ठंडे इलाकों में भोजन को गर्म रखना बड़ी चुनौती है। दूसरा यदि जवान मोर्चे पर तैनात हैं और दुश्मन से सामना कर रहे हैं। तब हर क्षण कीमती होता है और भोजन  को गर्म करने का भी समय नहीं होता। ऐसे में भोजन के थर्मो पैक सैनिकों को दिए जाते हैं जो स्वतः ही रासायनिक प्रक्रिया से गर्म हो जाते हैं।  इन थर्मो पैकेट्स में दो पाउच होते हैं। एक पाउच में खाना होता है और दुसरे में रसायन होते हैं सैनिक को जब भी भोजन करना होता है तो इस पैकेट को हिलाना होता है जिससे रसायन सक्रिय हो जाते हैं और खाना गर्म हो जाता है। इस प्रक्रिया से सब्जी, चपाती, चाय पानी आदि आसानी से गर्म हो जाता है। इस तरह के पैकेट्स का इस्तेमाल थल सेना ही नहीं, वायुसेना और नौसेना के जवान भी करते हैं।

नियमित योगाभ्यास


रक्षा वैज्ञानिकों की मानें तो ऊंचाई पर होने वाले मानसिक विकारों को दूर करने में सहज योग काफी उपयोगी है। इसलिए पिछले कुछ वर्षों से उच्च तैनाती वाले क्षेत्रों में सैनिकों को योगाभ्यास कराया जाता है। हालांकि ये बेहद हल्का होता है क्योंकि सैनिकों को अपनी ऊर्जा बनाकर रखना जरूरी होता है। लेकिन योग और प्राणायाम से सैनिक काफी हद तक तनावमुक्त हो जाते हैं।

हैपो चेंबर


तमाम उपायों के बावजूद यदि कोई सैनिक अधिक ऊंचाई वाले स्थान पर ऑक्सीजन की कमी ठण्ड या अन्य किसी कारण से हाइपो थर्मिया यानी फेफड़ों में पानी भरने, सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याओं से ग्रस्त हो जाता है। तो उसे तुरंत ऑक्सीजन वाले इलाके में लाना जरूरी होता है जिसका एकमात्र साधन हेलिकॉप्टर है। लेकिन जवानों को इन कठिनाइयों से बचाने के लिए हैपो चेंबर की व्यवस्था होती है जो सैनिकों के इलाज के लिए कारगर है।
इस चेम्बर को कहीं भी ले जाया जा सकता है जिसमे एक कृत्रिम वायुमंडलीय दवाब बनाया जाता है। यानी यदि 27 हजार फीट की ऊंचाई पर इस चेंबर के भीतर सैनिक को 8 हजार फीट की ऊंचाई पर होने जैसा महसूस होगा। राहत मिलने पर सैनिक को मैदानी इलाकों में लाया जाता है।

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