Monday, June 11, 2018

अदम्य साहस और वीरता के लिए BSF जवानों को प्रदान किये गए 'पुलिस पदक' जानें इनके पराक्रम की 14 कहानियां



 दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में 'सीमा सुरक्षा बल' यानी BSF के जवानों को उनके साहस, पराक्रम और वीरता तथा सराहनीय सेवाओं के लिए पुलिस पदक प्रदान किये  गए।
10 मार्च 1951  को शुरू किये गए 'वीरता के लिए पुलिस पदक'  पुलिस बलों अथवा संगठित अग्निश्मन सेवा के उन सदस्यों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपनी ड्यूटी के दौरान  उल्लेखनीय 'शौर्यपूर्ण सेवाएं' दी हैं। इसी तरह 'सराहनीय सेवा पुलिस पदक' उन पुलिसकर्मियों को प्रदान किये जाते हैं जिनका सेवा रिकॉर्ड ' निरंतर उत्कृष्ट' रहा हो। आइए जानते हैं ऐसे ही वीर, युद्धकौशल के धनी  जवानों और पुलिसकर्मियों के साहस की कहानियां :-

शहीद आदिल अब्बास (मुख्य आरक्षक) 98वीं बटालियन


पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा के ‘नलकटा’ जिले में भारत-बांग्लादेश  अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात 98वीं बटालियन के इलाके में हो रही बॉर्डर तारबंदी और सड़क निर्माण कार्य के दौरान मुख्य आरक्षक आदिल अब्बास निर्माण कंपनी के वाटर टैंकर की सुरक्षा में नियुक्त थे।
17 नवंबर 2014 की सुबह 10 बजे, आतंकियों के फायर से मुख्य आरक्षक अब्बास सहित टैंकर चालक और सहचालक जख्मी हुए और गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई। आतंकवादी आगे बढ़ रहे थे, तभी अपने जख्मों की परवाह किये बगैर बहादुर आदिल ने आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। घायल आदिल को अगरतला के आई.एल.एस. हॉस्पिटल ले जाया गया जहां इस वीर प्रहरी को दिवंगत घोषित कर दिया गया।
दिवंगत मुख्य आरक्षक आदिल अब्बास के युद्धकौशल, साहस, सामरिक कार्रवाई और प्राणोत्सर्ग को कोटि-कोटि नमन करते हुए मुल्क ने सीमाओं के इस सच्चे सिपाही को सन् 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर बलिदानोपरांत वीरता के लिये 'पुलिस पद' से नवाजा।

शहीद राम गवरिया (आरक्षक)09वीं बटालियन

रिवार्ड देते राजनाथ सिंह

दिनांक 31 दिसंबर 2014 को सुबह के पौने बारह बजे, जम्मू सीमांत में भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात 9वीं बटालियन का दल सीमा चौकी ‘रीगल’ के इलाके में जीरो लाइन पेट्रोलिंग कर रहा था। अचानक पाकिस्तानी सीमा चौकी से अप्रत्याशित गोलीबारी शुरू हो गई। सीमा सुरक्षा बल की टुकड़ी ने वहीं पोजिशन लेकर फायरिंग का जवाब देना शुरू  किया।
दल के स्काउट राम गवरिया घायल होने के बावजूद मैदान में डटे रहे और दुश्मन पर निरंतर किये अपने अचूक प्रहारों से उन्हें गोलीबारी बंद करने को बाध्य किया। राम गवरिया ने कर्त्तव्य पथ से डिगे बिना अपना सर्वस्व न्यौछावर करते हुए रणभूमि में प्राणोत्सर्ग किया। कृतज्ञ राष्ट्र ने इन्हें बलिदानोपरांत वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से अलंकृत किया।

शहीद देवेंद्र सिंह (आरक्षक) 09वीं बटालियन


05 जनवरी 2015 की दोपहर, जम्मू सीमांत में भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तैनात 09वीं बटालियन की सीमा चौकी ‘एन.एस.पी.खोरा’ पर, पाकिस्तानी रेंजरों ने अकारण गोलाबारी प्रारंभ की। आरक्षक देवेंद्र सिंह उस वक्त प्रारंभिक मोर्चे पर तैनात थे। आयुध कौशल के धनी आरक्षक देवेंद्र सिंह ने पाक गोलीबारी की जगह को केंद्रित कर गोले बरसाए और उनके द्वारा की जाने वाली गोलीबारी को बंद होने पर मजबूर कर दिया।
अपनी प्रारंभिक चाल को नाकाम होते देख दुश्मनों ने मोर्टार से देवेंद्र के मोर्चे को निशाना बना गोले गिराने शुरू किये। इन्हीं गोलों के स्पिलंटर से सिर में चोट लग जाने के कारण आरक्षक देवेंद्र सिंह गंभीर रूप से घायल हो गये और वीरगति को प्राप्त हुए। आरक्षक देवेंद्र सिंह के स्तुत्य शौर्य, साहस, बलिदान और पराक्रम को नमन करते हुए भारत सरकार ने 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर सरहदों के इस अजेय रखवाले को बलिदानोपरांत वीरता के लिये 'पुलिस पदक’ प्रदान किया।

शहीद रमेश चंद (मुख्य आरक्षक) 171वीं बटालियन


नक्सलरोधी अभियान के तहत सीमा सुरक्षा बल की 171वीं बटालियन छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में तैनात थी। 12 अप्रैल 2015 की रात, 10 बजकर 45 मिनट पर मुख्य आरक्षक रमेश चंद की कमान में, कंपनी ऑपरेटिंग बेस ‘छोटेबेटिया’ से निकली पैदल गश्त पार्टी का सामना ‘छोटेबेटिया’ गांव के समीप नक्सलियों से हो गया। BSF की पार्टी भी तुरंत मोर्चाबद्ध हो गई। मुख्य आरक्षक रमेश चंद नक्सलियों की गोलियों से घायल हो गये।
बावजूद इसके रमेश चंद ने रेंगते हुए पोजीशन तलाशी और पार्टी को निर्देशित  करते हुए नक्सलियों को जोरदार जवाब देना शुरू  किया। इससे प्रेरित अन्य सदस्य बहादुरी से लड़ते रहे और नक्सलियों को एक घायल साथी (बाद में मृत) सहित हथियार छोड़ भागना पड़ा। नेतृत्व भार से कर्त्तव्यबद्ध मुख्य आरक्षक रमेश  चंद ने आखिरी वक्त तक मोर्चा नहीं छोड़ा और सीमा प्रहरी की प्रतिज्ञा का पालन करते हुए रणभूमि में ही प्राणोत्सर्ग किया।
अद्भुत जीवट, उच्च कोटि की नेतृत्व क्षमता, वीरोचित शौर्य एवं अनुकरणीय बलिदान की स्तुति करते हुए भारत सरकार ने 2017 के गणतंत्र दिवस पर मुख्य आरक्षक रमेश  चंद को बलिदानोपरांत वीरता के लिये 'पुलिस पदक’ प्रदान किया।

वीरता के लिये पुलिस पदक से सम्मानित सेवारत सदस्य

अमित लोढ़ा, भारतीय पुलिस सेवा, उप महानिरीक्षक 


बिहार के कई जिलों में आतंक का पर्याय बने सी.पी.आई.(माओवादी) एरिया कमांडर ‘दयानंद मालाकर’ के दिनांक 28 मार्च 2008 को ‘सरौंजा’ गांव में कैंप किये जाने की सूचना पर वहां दल-बल के साथ पहुंचें  बेगूसराय के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अमित लोढ़ा ने जब नक्सलियों से आत्मसमर्पण करने को कहा तो औरतों और बच्चों की आड़ में छिपे नक्सलियों ने पुलिस टीम पर हमला कर दिया। दो पुलिसकर्मी घायल हो गये।
गोलीबारी के बीच घायल सहयोगियों को बाहर निकाला गया और आम जनता को क्षति पहुंचाये बिना नक्सलियों पर सीधा प्रहार किया जाने लगा। नक्सली आखिर कब तक टिकते। उन्होंने हथियार डाल दिये। कुल 12 नक्सली धर-दबोचे गये और भारी मात्रा में गोला-बारूद तथा हथियार बरामद किये गये।
अभियान के दौरान प्रदर्शित अमित लोढ़ा के सफल नेतृत्व, सामरिक कौशल एवं नागरिक हितों का ध्यान रखते हुए अर्जित सफलता की मान्यतास्वरूप भारत सरकार ने 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय पुलिस सेवा के इस बहादुर अधिकारी को वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से सम्मानित किया।

विवेक रावत, सहायक कमांडेंट,122वीं बटालियन -


2015 में 122वीं बटालियन नक्सलरोधी अभियान के तहत छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में तैनात थी। दिनांक 02 फरवरी 2015 की दोपहर, बल के सहायक कमांडेंट रावत की कमान में गश्त पर निकले सीमा सुरक्षा बल और छत्तीसगढ़ पुलिस के 10 सदस्यीय मोटर साइकिल दस्ते पर 'हबलपरास' गांव के समीप घात लगाये 50 से भी ज्यादा नक्सलियों ने जानलेवा हमला बोला जिससे छत्तीसगढ़ पुलिस के दो सदस्यों सहित रावत भी घायल हुए।
जांघ में गोली लगने के बाद भी रावत लड़ते और टीम को निर्देशित  करते रहे जिसे देख अन्य सदस्यों को भी प्रेरणा हासिल हुई और वे पूरी ताकत से नक्सलियों पर टूट पड़े। यह उनके साहस और कुशल  नेतृत्व का ही प्रतिफल था कि उनके दल के सदस्य, जो नक्सलियों की अपेक्षा बहुत कम थे, करीब 01 घंटे 45 मिनट तक, नक्सलियों से लोहा लेते रहे और अंततोगत्वा एक माओवादी को मारने सहित बाकियों को हथियार छोड़ भागने को विवश किया।
ऑपरेशन के दौरान सहायक कमांडेंट विवेक रावत द्वारा प्रदर्शित शौर्य, उच्च कोटि की नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक कुशलता के प्रति कृतज्ञ  राष्ट्र ने 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर इस बहादुर अधिकारी को वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से सम्मानित किया।

सहायक उप निरीक्षक राजेंद्र कुमार, 171वीं बटालियन


दिनांक 12 अप्रैल 2015 की रात करीब 11 बजे, सीमा सुरक्षा बल के सहायक उप निरीक्षक राजेंद्र कुमार बख्तरबंद वाहन से 171वीं बटालियन (कांकेर, छत्तीसगढ़) की कंपनी ऑपरेटिंग बेस ‘छोटेबेटिया’ के इलाके में  गश्त कर रहे थे। नक्सलियों का सामना कर रही गश्त पार्टी की मदद करने का आदेश  मिलने पर राजेंद्र पार्टी के साथ मुठभेड़ स्थल पर पहुंचे जहां  मुकाबला चल रहा था।
तुरंत निर्णय लेते हुए उन्होंने वाहन को नक्सलियों एवं पार्टी के बीच में दीवार की तरह खड़ा करवाया। इस मजबूत डिफेंस एवं गश्त  दल तथा सहायक उप निरीक्षक राजेंद्र कुमार के समेकित प्रयत्नों से नक्सलियों में बौखलाहट मची और वे एक घायल साथी (बाद में मृत) सहित हथियार व गोला-बारूद  छोड़ भाग गए। मुठभेड़ के दौरान एक नक्सली के मारे जाने सहित हथियार की बरामदगी की सफलता के पीछे सहायक उप निरीक्षक राजेंद्र कुमार की भी अहम् भूमिका रही।
सहायक उप निरीक्षक राजेंद्र कुमार की कर्त्तव्यपरायणता, बहादुरी तथा साहसिक निर्णय को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने 2017 के गणतंत्र दिवस पर इस बहादुर प्रहरी को वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से अलंकृत किया।

 मुख्य आरक्षक महावीर सिंह, 171वीं बटालियन 


कंपनी ऑपरेटिंग बेस ‘छोटेबेटिया’ (171वीं बटालियन, छत्तीसगढ़) से 12 अप्रैल 2015 की रात एक पार्टी पैदल गश्त के लिए निकली थी। इस दल में मुख्य आरक्षक महावीर सिंह शामिल थे।
नक्सलियों के अंबुश द्वारा किये गये फायर से पार्टी कमांडर मुख्य आरक्षक रमेश  चंद के
घायल होने के बाद, महावीर सिंह ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह किये बगैर, उन नक्सलियों को लक्ष्य बनाया जो मुख्य आरक्षक रमेश चंद को घेरने की कोशिश कर रहे थे। इसका प्रतिफल यह हुआ कि नक्सली अपने इरादे में विफल रहे।
मुठभेड़ के दौरान महावीर सिंह द्वारा प्रदर्शित सामयिक रणकौशल, साहस व समन्वय के प्रतिफल स्वरूप नक्सलियों को एक घायल साथी (बाद में मृत) सहित हथियार छोड़ भागना पड़ा। सीमाओं के इस प्रखर योद्धा के शौर्य,  साहस तथा साथी की की प्राणरक्षा हेतु स्वयं को प्रस्तुत करने वाले स्तुत्य गुण की मान्यतास्वरूप राष्ट्र ने 2017 के गणतंत्र दिवस पर इन्हें वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से अलंकृत किया।

 मुख्य आरक्षक सज्जन सिंह, 171वीं बटालियन


मुख्य आरक्षक सज्जन सिंह दिनांक 12 अप्रैल 2015 को 171वीं बटालियन के कंपनी ऑपरेटिंग बेस ‘छोटेबेटिया’ से पैदल  गश्त के लिये निकले दल में शामिल  थे। इस दल पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। मुख्य आरक्षक रमेश चंद के साथ दल की अग्रिम पंक्ति में शामिल  मुख्य आरक्षक महावीर सिंह की टुकड़ी पर भारी तादाद में फायर आया।
पार्टी कमांडर मुख्य आरक्षक रमेश चंद के घायल होने के बाद की जवाबी कार्रवाई में दल की अग्रिम पंक्ति में तैनात सज्जन सिंह ने अपनी हिम्मत, रणचातुर्य और आयुध कौशल से नक्सलियों के हौसले पस्त कर दिये।
मुख्य आरक्षक सज्जन सिंह द्वारा प्रदर्शित  टीम भावना, ओजपूर्ण सामरिक कार्रवाई एवं रणक्षेत्र में शौर्य  के अनुपम प्रदर्शन  से आभारी राष्ट्र  ने सीमाओं के इस सजग प्रहरी को 2017 के गणतंत्र दिवस पर वीरता के लिये 'पुलिस पदक' प्रदान किया।

आरक्षक अरुण कुमार 09वीं बटालियन

आरक्षक अरुण कुमार 09वीं बटालियन

दिनांक 31 दिसंबर 2014 को सीमा चौकी ‘रीगल’ (09वीं बटालियन,जम्मू सीमांत) की जीरो लाईन पेट्रोल पर पाक रेंजरों द्वाराकी गई गोलाबारी के दौरान आरक्षक अरुण कुमार एम.एम.जी. पर तैनात थे। गोलीबारी शुरू  होते ही, अरुण ने ‘जीरो लाइन पेट्रोलिंग’ को सपोर्ट फायर देना आरंभ किया। इस सपोर्ट फायर से बल के जीरो लाइन पेट्रोल दस्ते को संबल मिला और वे रेंजरों पर हावी हुए।
पाकिस्तानी पोस्ट को लक्ष्य कर किये जा रहे उनके निरंतर फायर से एक रेंजर मारा गया जिससे पाकिस्तानी खेमे में खलबली मची और उनकी बंदूकें नीची हुईं। पूरे घटनाक्रम के दौरान आरक्षक अरुण कुमार ने एक बार फिर से सीमा सुरक्षा बल को मजबूती से ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की प्रथम पंक्ति’ के रूप में प्रस्तुत किया।
आरक्षक अरुण कुमार के विशिष्ट रण कौशल, उत्कृष्ट आयुध संचालन और यौद्धक पराक्रम के सामयिक प्रदर्शन के प्रतिदान में राष्ट्र ने 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर इन्हें वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से सम्मानित किया।

आरक्षक जगजीत सिंह, 122वीं बटालियन

आरक्षक जगजीत सिंह, 122वीं बटालियन

आरक्षक जगजीत सिंह भी सीमा सुरक्षा बल और छत्तीसगढ़ पुलिस के उस 10 सदस्यीय गश्त  दल के सदस्य थे, जिसका सामना दिनांक 02 फरवरी 2015 को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के 'हबलपरास' गांव के समीप नक्सलियों से हुआ था। आरक्षक जगजीत सिंह के पास यु.बी.जी.एल. (अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर) था।
नक्सलियों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने हेतु रणनीतिक निर्णय लेते हुए जगजीत सिंह ने व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह न करते हुए पोजिशन बदल उन पर सामने से फायर किया। नक्सली पीछे हटे। जगजीत ने फिर पोजिशन बदली, सड़क के दूसरी तरफ गये और नक्सलियों के बड़े जमावड़े पर फायर किया । बहादुर जगजीत की इस शौर्यपूर्ण  सामरिक कार्रवाई ने नक्सली खेमे में खलबली मचा दी।  गश्ती दल का उत्साह बढ़ा जिसकी परिणति एक माओवादी के मारे जाने और बाकियों के हथियार छोड़ भागने के रूप में हुई। आरक्षक जगजीत सिंह के युद्ध कौशल, साहस और सामरिक कार्रवाई की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए भारत सरकार ने इस जांबाज सीमा प्रहरी को सन् 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से सम्मानित किया।

आरक्षक रामधन गुर्जर, 122वीं बटालियन


दिनांक 02 फरवरी 2015 को, छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के 'हबलपरास' गांव के समीप सीमा सुरक्षा बल की 122वीं बटालियन की पार्टी का सामना 50 से अधिक नक्सलियों से हुआ था। आरक्षक रामधन गुर्जर भी  गश्त दल में शामिल  थे। नक्सलियों के फायर से उनकी बाईं आंख और दाहिनी एड़ी जख्मी हो चुकी थी।
आरक्षक रामधन की जख्मी आंख से खून रिस रहा था, घायल एड़ी हौसले का इम्तिहान ले रही थी, किंतु वे दुश्मनों से यूं जूझ रहे थे जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो। नक्सली, जो दक्षिण दिशा की तरफ से फायर करते हुए आगे बढ़ना चाहते थे, रामधन की मौजूदगी के कारण सफल नहीं हो पाए।
वे दुश्मनों से तब तक लोहा लेते रहे, जब तक पीछे से रिइन्फोर्समेंट नहीं आई। दृष्टिहीन होने की हद तक जख्मी होने के बावजूद भी आरक्षक रामधन गुर्जर ने सीमा प्रहरी की प्रतिज्ञा का पालन किया।
आरक्षक रामधन गुर्जर के इस अतुलनीय जीवट, अदम्य साहस और अनुकरणीय वीरता का गुणगान करते हुए भारत सरकार ने सन् 2016 के गणतंत्र दिवस पर इन्हें वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से अलंकृत किया।

आरक्षक विजय कुमार,122वीं बटालियन


दिनांक 02 फरवरी 2015 को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले ‘हबलपरास’ गांव  के निकट सीमा सुरक्षा बल की 122वीं बटालियन की गश्त पार्टी का सामना 50 से अधिक नक्सलियों से होने के पश्चात  नक्सलियों द्वारा चलाई गोली दल के सदस्य आरक्षक विजय कुमार की दाहिनी कलाई में लगी थी जिससे उनका दाहिना हाथ फायर करने में अक्षम हो गया था।
दल को अधिक नुकसान पहुंचाने के इरादे से कुछ नक्सली सड़क पार कर पेड़ों के पीछे जाने की कोशिश  कर रहे थे। बाएं हाथ से आयुध संचालन कर रहे सतर्क विजय ने उनपर ऐसा कारगर फायर डाला कि उनके मंसूबे धरे रह गये। मुठभेड़ के दौरान नक्सली के ढेर किये जाने और अम्युनिशन-विस्फोटक बरामद होने में आरक्षक विजय कुमार की भूमिका बेहद अहम् रही।
बहादुरी, साहस और कर्त्तव्यपरायणता के उच्चतम आदर्शों को यथार्थ में परिणत करने हेतु भारत सरकार द्वारा सीमाओं के इस बहादुर सिपाही को सन् 2017 में वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से सम्मानित किया गया।

आरक्षक अभिजीत कुमार सिंह,50 बटालियन


पंजाब सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की तस्करीरोधी अभियानों की लगातार सफलता से तस्करों के हौसले पस्त थे। हेरोइन जैसे नशे  की तस्करी से प्राप्त अवैध लाभ के लिये तस्कर फिर भी जोखिम उठाकर मौसम या जमीनी कठिनाई का फायदा उठाने से नहीं चूकते थे।
दिनांक 28-29 मार्च 2015 की मध्य रात्रि को सीमा चौकी ‘रतन खुर्द’ के जिम्मेवारी के इलाके में तारबंदी के पास तैनात सतर्क प्रहरी आरक्षक अभिजीत ने अपने निगरानी उपकरण एच.एच.टी.आई. (हैंड हेल्ड थर्मल इमेजर) पर कुछ हरकत दर्ज की। जमीनी हालात और तस्करों की सुचालित गतिविधि को देखते हुए किसी साथी को बुलाने का अवसर नहीं था। सेट पर जानकारी देने के बाद आरक्षक अभिजीत ने तुरंत पोजिशन ली। AK-47 से लैस तस्करों के सामने वह अपनी  INSAS रायफल के साथ रेंगते हुए पहुंचा और समर्पण करने के लिये ललकारा। तस्करों ने अपने स्वचालित हथियारों से अभिजीत पर फायर करना शुरू  किया जिसका जवाब अपने अचूक फायर से देते हुए अभिजीत ने दोनों हथियारबंद तस्करों को ढेर कर दिया। तलाशी  के बाद करोड़ों की हेरोइन के साथ ए.के.सीरीज की रायफल व अम्युनिशन  की भी जब्ती हुई।
अद्भुत रणकौशल,अद्वितीय निर्णय क्षमता, अप्रतिम साहस और अनुकरणीय पहल के लिये आरक्षक अभिजीत सिंह को भारत सरकार ने सन् 2017 के गणतंत्र दिवस पर वीरता के लिये 'पुलिस पदक' से नवाजा।

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