Thursday, March 22, 2018

जब भारतीय सैनिकों के लिए अस्पताल में बदल दिया गया था इंग्लैण्ड का यह 'शाही पैलेस'

आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान,इंग्लैण्ड के एक शाही पैवेलियन को ब्रिटिश भारतीय सेना के घायल हुए सैनिकों के लिए एक अस्पताल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। और यह ब्रिटेन में सबसे प्रसिद्ध सैन्य अस्पतालों में से एक बन गया। सन 1914 से 1916 तक यह पश्चिमी मोर्चे पर युद्धक्षेत्र में घायल हो गए भारतीय सैनिकों के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद 1916 से 1920 तक यह पैवेलियन उन ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक अस्पताल के रूप में इस्तेमाल किया गया था जिन्होंने युद्ध में हाथ या पैर खो दिए थे।

पश्चिमी मोर्चे पर डटे थे भारतीय सैनिक


प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती कुछ महीनों में ब्रिटिश भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पश्चिमी मोर्चे पर फ़्रांस में भयंकर युद्ध में डटी हुई भारतीय सेना के सैनिक बड़ी संख्या में हताहत हो रहे थे जिन्हें चिकित्सकीय सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता थी लेकिन फ़्रांस में न तो सुविधाएं और न ही कोई विशेषज्ञता थी। इसलिए उन्हें वहां से इंग्लैण्ड लाने की योजना बनाई गई।

हॉस्पिटल में तब्दील कर दिए गए ब्राइटन के तीन स्थान


ऐसे में ब्राइटन को घायल और बीमार भारतीय सैनिकों की देखभाल के लिए समर्पित किया गया और इसे सैन्य अस्पतालों के परिसर के स्थान के रूप में चुना गया था। इस उद्देश्य के लिए शहर के अधिकारियों द्वारा तीन भवनों को दिया गया: वर्क हाउस (जिसका नाम बाद में Kitchener अस्पताल में बदला गया), द यॉर्क प्लेस स्कूल और रॉयल पैवेलियन। इन तीन स्थानों को सैन्य अस्पताल परिसर के रूप में इस्तेमाल किये जाने के लिए तैयार किया जाने लगा।

ब्राइटन का पहला भारतीय सैनिकों के लिए अस्पताल


ब्राइटन में सैनिकों के लिए खुलने वाला रॉयल पैविलियन भारतीय सैनिकों के लिए पहला अस्पताल था। इसके दो महल डोम और कॉर्न एक्सचेंज (एक ऐसी इमारत थी जहां किसानों और व्यापारियों ने अनाज का कारोबार किया) दो सप्ताह से भी कम समय में चिकित्सा सुविधा के रूप में परिवर्तित हो गए थे।

2,300 से भी ज्यादा मरीजों का हुआ इलाज


यहां नई पाइपलाइन और शौचालय की सुविधा स्थापित की गई, और नए वार्डों में 600 बिस्तरों की स्थापना की गई। यही नहीं, एक्स-रे उपकरण भी स्थापित किए गए royal पैलेस कि आलीशान रसोई को दूसरा ऑपरेटिंग थिएटर बना दिया गया। दिसंबर 1914 की शुरुआत में इस पैवेलियन में मरीजों का आना शुरू हुआ। इसके अगले ही वर्ष तकरीबन 2,300 से अधिक भारतीय सैनिक मरीजों का यहां इलाज हुआ।

सैनिकों का रखा गया विशेष ध्यान


ख़ास बात यह भी थी कि अस्पताल को न केवल सैनिकों की चिकित्सा आवश्यकताओं की देखभाल के लिए डिज़ाइन किया गया था बल्कि मरीजों की धार्मिक सांस्कृतिक और खानपान जरूरतों के लिए भी विशेष सुविधाएं दी गईं।

लॉन में बनाई गईं थीं नौ रसोईयां


खुले मैदान में ही नौ रसोईयां बनाईं गईं। पूर्वी लॉन में प्रार्थना के लिए जगह बनाई गई।

मृतकों के अंतिम संस्कार की थी अलग व्यवस्था


ब्राइटन अस्पतालों में मारे गए उन भारतीय सैनिकों के लिए भी विस्तृत व्यवस्था की गई,जिनमें से 18 का रॉयल पैवेलियन में इलाज के दौरान निधन हो गया था। सिखों और हिंदुओं को पचाम के पास खुली हवा में अंतिम संस्कार के लिए एक स्थल प्रदान किया गया था और मुस्लिमों को वोकिंग में बने एक कब्रिस्तान की कब्र में दफनाया गया था।

अब अस्पताल नहीं है यह 'रॉयल पैलेस'


बाद में 1915 में ब्रिटिश ने मध्य-पूर्व में भारतीय सेना की तैनाती करने का निर्णय लिया और ज्यादातर भारतीय सैनिकों को यूरोप से वापस बुला लिया गया। नतीजतन, ब्राइटन के भारतीय अस्पतालों को धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। जनवरी 1916 में इस पैवेलियन को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। अप्रैल 1916 में, ब्रिटिश विकलांगों के लिए एक अस्पताल के रूप में इसे फिर से खोला गया। और इस अस्पताल में ऐसे 6000 सैनिकों का उपचार किया गया जिन्होंने युद्ध के दौरान हाथ या पैर खो दिए थे।

विरासत के रूप में संजोया गया है रॉयल पैविलियन


वर्तमान में इसे एक विरासत के रूप में संजोया गया है रॉयल पैविलियन इंग्लैंड में राजकुमार रीजेंट, बाद में किंग जॉर्ज IV ने 1787 और 1823 के बीच निर्मित करवाया था। यह अपने अदभुत वैभव और वास्तुशिल्प कला रोमांचक खूबसूरती और संस्कृति की उम्दा मिसाल है। अपनी बाहरी भव्य वास्तुकला से यह शाही पैलेस भारत में मुगल काल की किसी मस्जिद या महल के सामान नजर आता है।

Wednesday, March 21, 2018

उत्तर प्रदेश पुलिस का यह मानवीय चेहरा देखकर आप भी करेंगे 'सलाम,' देखें 7 तस्वीरें

यूपी पुलिस अपनी इमेज को लेकर अक्सर सुर्खियों में  रहती है। लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं कि यूपी पुलिस अपनी छवि बदलने  को लेकर लगातार प्रयासरत है। कहने को जनता भले ही यूपी पुलिस को दबंग पुलिस के रूप में जानती हो लेकिन उत्तरप्रदेश पुलिस का एक और मानवीय चेहरा भी है जिसे हम कम ही देख पाते हैं। आज हम जो तस्वीरें आपके लिए लाएं हैं उन्हें देखकर आपको भी यूपी पुलिस पर गर्व होगा:-

ऑन ड्यूटी 'नायक'


उत्तरप्रदेश पुलिस के हेड कॉन्स्टेबल भूपेंद्र सिंह तोमर ने फर्ज अदायगी की एक मिसाल पेश की। यूपी 100 पर तैनात भूपेन्द्र अपनी ड्यूटी पर थे कि उन्हें दो फोन आए। पहले फोन पर एक लड़के के घायल होने कि खबर मिली और दूसरे पर उनकी नवविवाहिता बेटी कि एक्सीडेंट में हुई मौत की खबर मिली लेकिन उन्होंने अपनी ड्यूटी को पहले चुना और घायल लड़के  को अस्पताल पहुंचाया उन पर हाल ही में 'On Duty' नाम से एक डॉक्युमेंट्री फिल्म भी बनाई गई है।

मानवता की मिसाल


ये हैं नीमगांव खीरी के इंस्पेक्टर संजय सिंह जिन्होनें मानवता की एक और मिसाल पेश की। हाल ही में उनके थाने में एक गरीब फरियादी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ पहुंचा, बच्चों की दशा देख इंस्पेक्टर संजय सिंह ने तुरन्त बच्चों के लिए कपड़े व चप्पल मंगाकर उन्हें पहनाए और पूरे परिवार को मदद का भरोसा दिया।

किसी जिन्दगी के लिए



उन्नाव जनपद की बांगरमऊ कोतवाली मे तैनात पुलिस कर्मी  प्रमोद व तरूण  को जैसे ही यह मालूम चला कि घायल बच्ची को रक्त की जरुरत है तो वे रक्तदान के लिए तुरंत दौड़ पड़े। वह बच्ची दुर्घटना में घायल हो गई थी।

बुजुर्ग को मिला जीवनदान


व्यक्तिगत और पारिवारिक परेशानियों से तंग आकर एक वृद्ध आगरा फ़ोर्ट रेलवे स्टेशन पर आ रही ट्रेन के सामने पटरी पर लेट गए। यह देखकर वहां  ड्यूटी पर मौजूद कॉन्स्टेबल  विकल, रामपाल सिंह और रंजीत शर्मा ने तुरंत पटरियों पर कूदकर वृद्ध की जान बचायी। इन तीनों आरक्षियों को इस साहसिक कार्य के लिए इनाम भी दिया जा चुका है।

सौहार्द व भाईचारे की एक अनोखी मिसाल


ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले की है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों का दाग़ मिटाने और पूरे UP में हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द स्थापित रखने की दिशा में यूपी पुलिस का यह कदम  सराहनीय है। यहां होली के अवसर पर थाना प्रभारी सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने एक अनोखी पहल करते हुए मदरसों के बच्चों को अपने हाथ से भोजन परोसा और उनके साथ  खाना खाकर भाईचारे की एक अनोखी मिसाल पेश की। इसमें बच्चों के साथ-साथ मदरसे के वरिष्ठ  लोग भी शामिल हुए।  

पुलिस अफसर की नायाब पहल


साथ बैठे पुलिस अंकल, बच्चों का बदलेंगे कल ।जी हां यह तस्वीर है चंदौली पुलिस के डीएसपी त्रिपुरारी पांडे की। नक्सल प्रभावित इलाके में इस अधिकारी ने बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाया है यहां उन्होंने 200 परिवारों के बच्चों को सफाई का पाठ पढ़ाया, टॉफियां व किताबें बांटी और नाई बुलवाकर उनके बाल भी कटवाए। यही नहीं अब ये बच्चे हर रोज स्कूल जाते हैं।

दुःख के साथी


यह तस्वीर लखनऊ में हुई भीषण दुर्घटना के दौरान की है। जहां कई लोग घायल हुए इनमें कई बच्चे भी शामिल थे।पुलिस ने जरा भी देरी न करते हुए घायल बच्चों को अस्पताल पहुंचाया।    

सुरक्षा से शिक्षा तक


SP मिर्जापुर के मार्गदर्शन में गठित नक्सल प्रभावित गांव भवानीपुर, हिनौता, भीटी में ग्रीन ग्रुप की महिलाओं को आत्मरक्षा हेतु प्रशिक्षण दिया गया। पुलिस के सहयोग से उत्तर प्रदेश की यह ग्रीन ब्रिगेड अब बदमाशों को सबक सिखाने और किसी भी वक्त अपनी सुरक्षा करने के लिए तैयार है।

Tuesday, March 20, 2018

बकरी और बाज से लेकर नेवले तक, ये हैं विदेशी सेनाओं के शुभंकर

-dimple sirohi
पुराने समय से ही आर्मी की अलग-अलग यूनिट्स में विभिन्न जानवरों को शुभंकर के रूप में रखा जाता है। शुभंकर या यूं कहें कि भाग्यशाली। ये पशु या जानवर सैन्य इकाई का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं और प्राचीन समय से ही विभिन्न सैन्य इकाइयों की पहचान बने रहे हैं। पहले और दूसरे विश्वयुद्ध कि कई तस्वीरें इस बात का प्रमाण हैं कि कुत्ते, बन्दर, भालू, कछुए व खरगोश आदि जानवरों को सैन्य टुकडियां अपने साथ रखती थीं। कुछ सेनाओं में आज भी  इन्हें यूनिट के लिए भाग्यशाली माना जाता  है। कई देशों की सेना में आज भी एनिमल्स को शुभंकर के रूप में रखा जाता है आइये जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें :-

लिटिल पोनी



स्कॉटलैंड की रॉयल रेजिमेंट में एक छोटे आकार का (pony) टट्टू है। नाम है र्पोरल क्रूचान IV। उसे हर सैन्य आयोजन में रेजीमेंट के शुभंकर के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है।ख़ास बात यह है कि उसके कई प्रमोशन भी हो चुके हैं। 

मिस्टर लिलवेलिन



ब्रिटिश 'द रॉयल वेल्श' की दूसरी बटालियन का शुभंकर है एक बकरा जिसका नाम है लिलवेलिन और उसे फ़्यूसिलियर(a member of any of several British regiments) का पद प्राप्त है। बकरियां सेना में बहुत लोकप्रिय हैं।

लांस कॉर्पोरल डर्बी XXX


ब्रिटिश सेना के मेर्सियन रेजिमेंट में एक मेंढा (बकरी) भी है - लांस कॉर्पोरल (a rank of non-commissioned officer) डर्बी XXX

लांस कॉर्पोरल बॉबी


'बॉबी'  द रॉयल वार्विकशायर फ्यूसिलियर्स लांस कॉर्पोरल ।

'द आयरिश गार्ड्स'


'द आयरिश गार्ड्स' का ऑफिशियल शुभंकर, Wolfhound Domhnall of Shantamon

सर नील्स ओलाव


सर नील्स ओलाव एक किंग पेंगुइन है। वह नॉर्वे के किंग्स गार्ड के कर्नल-इन-चीफ भी है। इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि वह अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहा है।

समझदार नेवले


ब्रिटिश आर्मी की यार्कशायर रेजीमेंट का शुभंकर बेहद छोटे दिखने वाले नेवले हैं। इन्हें बाकायदा सेना की ट्रेनिंग देकर समझदार बनाया जाता है और फिर रैंक और तनख्वाह भी दी जाती है।

Lance Corporal Pegasus V


लांस कॉर्पोरल पेगासस पांचवा ब्रिटिश सेना के पैराशूट रेजीमेंट का शुभंकर है। पोनी मेजर नाम के एक व्यक्ति द्वारा इसकी देखभाल की जाती है।

रेंजर USA


संयुक्त राज्य अमेरिका की सैन्य अकादमी के पश्चिम प्वाइंट में दो खच्चर शुभंकर हैं। यहां उनकी रैंक हैं - रेंजर III और स्ट्रेकर।

Quintus Rama The Tiger


रॉयल ऑस्ट्रेलियाई रेजिमेंट की 5 वीं बटालियन में उनके शुभंकर के रूप में क्विंटस राम नामक बाघ को रखा गया है। इस तस्वीर में आप उसे पिंजरे में देख रहे हैं क्योंकि सैन्य परेडों के आसपास उसके रहने के लिए पिंजरे में लाया जाता है।

साहसी शिकारी


ऑस्ट्रेलियाई कैवलरी रेजिमेंट में एक फैली-पूंछ वाला ईगल शुभंकर है, जिसे साहस के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में फैली हुई पूंछ वाले बाज सबसे बड़े शिकारी पक्षी हैं।

शुभंकर कंगारू


ऑस्ट्रेलियाई सेना का शुभंकर सबसे कूल है। पुराने जमाने की इस तस्वीर में मिस्र में ऑस्ट्रेलियाई इंपीरियल फोर्स की 9वीं तथा 10वीं बटालियन अपने शुभंकर कंगारू के साथ नजर आ रही हैं।

शुभंकर एक बकरी


संयुक्त राज्य अमेरिका की नौसेना अकादमी का शुभंकर भी एक बकरी है।

Monday, March 19, 2018

शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से जुड़ी ये 5 अहम बातें


शौर्य, पराक्रम, वीरता, साहस और अदम्य उत्साह से भरे अनेक वीरों सपूतों ने देश के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर दिया। कितने ही देश भक्तों ने बिना अपनी जान की परवाह किए ज़रुरत पड़ने पर जानलेवा हालात का सामना किया। ऐसे ही वीरों के जज्बे को सराहने के लिए अनेक वीरता पुरस्कार भी दिए जाते है। 69वें गणतंत्र दिवस के मौके पर यह पुरस्कार वायुसेना के गरुड़ कमांडो ज्योतिप्रकाश निराला को मरणोपरांत प्रदान किया गया वह जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे। आज हम आपको शांतिकाल के इस सबसे बड़े वीरता पुरस्कार 'अशोक चक्र' से जुड़े कुछ अहम बातें बताने जा रहे हैं:

अशोक चक्र भारत का शांतिकाल का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान


जिस तरह परमवीर चक्र युद्धकल का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है, उसी तरह ही अशोक चक्र भारत का शांतिकाल का सबसे बड़ा सैन्य सम्मान है। ये सम्मान उन लोगों को दिया जाता है जो ज़रुरत पड़ने पर अतुल्य साहस और बहादुरी का परिचय देते है।

आम नागरिक भी अशोक चक्र से सम्मानित किए जाते हैं


ज़रुरत पड़ने पर हिम्मत और जज्बे भरे कार्य को अंजाम देने पर सुरक्षाकर्मियों के अलावा आम नागरिकों को भी अशोक चक्र से सम्मानित किया जाता है। भारतीय नीरजा  भनोट को  भी अशोक चक्र प्रदान किया जा चुका है । अपनी जान की परवाह न करते हुए 23 वर्षीय नीरजा ने 380 लोगों की जान बचाई थी ।
अमेरिका के 'मेडल ऑफ़ ऑनर' और ब्रिटेन के 'जॉर्ज क्रॉस' के समान है अशोक चक्र

अशोक चक्र अमेरिका के शांतिकाल सम्मान 'मेडल ऑफ़ ऑनर' और ब्रिटेन के 'जॉर्ज क्रॉस' के समान है।

 अशोक चक्र पर वृत्ताकार मेडल पर सोने का पानी चढ़ा होता है


अशोक चक्र का निर्माण 4 जनवरी, 1952 को किया गया था। इस वृत्ताकार मेडल पर सोने का पानी चढ़ा होता है और बीच में अशोक चक्र बना होता है। अशोक चक्र का रिबन 32 MM के गहरे हरे रंग का होता है और बीच में 2 MM का केसरिया रंग की धारी होती है।

इस सम्मान से अब तक 64 लोग नवाजे जा चुके हैं


अनूठी वीरता का प्रदर्शन और निस्वार्थ सेवा के लिए अब तक 64 लोगों को अशोक चक्र से सम्मानित किया जा चुका है।

इस मंदिर पर पाकिस्तान ने गिराए थे 450 बम, लेकिन सब हो गए बेअसर, अब BSF करती है देखभाल


राजस्थान के जैसलमेर से लगभग 125 किलोमीटर दूर तनोटराय माता का मंदिर है। यह मंदिर अपने चमत्कारों के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। माता तनोट राय के मंदिर को श्री आवड़ देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐसा मंदिर है, जिसकी देख-रेख तथा पूजा अर्चना का काम भी सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) द्वारा ही किया जाता है।1965 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान जहां हर तरफ भारी नुकसान हुआ था लेकिन मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ। आखिर क्यों ख़ास है यह मंदिर आइये जानते हैं।

यहां दुश्मन ने गिराए थे तीन हजार बम


इस मंदिर को हिंगलाज माता के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान में हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलोचिस्तान में स्थित है। लेकिन तनोट माता का मंदिर के बारे में आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1965 के दौरान हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने इस मंदिर को एक पोस्ट के रूप में इस्तेमाल किया था। इस दौरान पाकिस्तान ने इस स्थान पर तकरीबन 3000 बम गिराए। लेकिन इस मंदिर का कुछ न बिगाड़ सके। इस चमत्कार को देखकर भारतीय सेना में इस स्थान के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। इस युद्ध में पाकिस्तान को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। 

इतिहास में दर्ज है कुछ ऐसी कहानी


इस मंदिर के बनने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। बताया जाता है कि यह मंदिर तकरीबन 1200 वर्ष पहले अस्तित्व में आया था। प्रचलित कथाओं के मुताबिक राजस्थान के जैसलमेर में एक छोटे गांव में एक व्यक्ति रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी। तब वह हिंगलाज की पैदल यात्रा के लिए गया और वहां माता से प्रार्थना की कि वह उसके घर दिव्य रूप में जन्म लें। बहुत पूजा-पाठ के बाद उसे एक पुत्री हुई जिसका नाम आवड़ देवी रखा। बड़ी होने पर वह अपने चमत्कारों के कारण काफी प्रसिद्ध हो गई। बाद में स्थान का नाम तनोट होने के कारण वह तनोट राय माता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। तनोट के अंतिम राजा भाटी तनुराव थे, जिन्होंने इस मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई थी। वर्तमान समय में यह मंदिर भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है।

आज भी मंदिर में मौजूद हैं दुश्मन के जिंदा बम


भारत और पाकिस्तान के बीच हुए 1965 में युद्ध हुआ था। इस युद्ध में पाकिस्तान ने जैसलमेर बॉर्डर पर हमला किया। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने तनोट राय माता मंदिर पर भी जबरदस्त हमला किया। इस युद्ध में पाकिस्तान की ओर से तकरीबन 3000 बम इस क्षेत्र पर गिराए गए। ये मंदिर भी युद्ध के दौरान चपेट में आया। यही नहीं, 450 बम मंदिर परिसर में ही गिरे लेकिन, तनोट राय माता का चमत्कार ही कहा जाता है कि इनमें से एक भी बम नहीं फटा। इन सभी बमों को तनोट राय माता मंदिर में बने संग्रहालय में रखा गया है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु इन बमों को तनोट राय माता के चमत्कार के रूप में देखते हैं।

'पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह' बनी थी यह जगह


ऐसा ही एक चमत्कार 1971 के युद्ध में भी देखने को मिला, जब जैसलमेर बॉर्डर पर स्थित लोंगेंवाला में पाकिस्तान की एक पूरी ब्रिगेड ने भारतीय सेना की एक छोटी सी टुकड़ी पर हमला कर दिया था। लोंगेवाला की जंग के दौरान इस मौके पर भारतीय फौजियों की एक छोटी-सी टुकड़ी ने पाकिस्तानी सेना की पूरी ब्रिगेड और उनके टैंकों को नेस्तनाबूद कर दिया था। कहा जाता है कि तनोट राय माता मंदिर के नजदीक ही ये जंग हो रही थी। लेकिन इस मंदिर को इस जंग में भी कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

तत्कालीन प्रधानमंत्री भी इस चमत्कार को देखने पहुंची थीं 


इस जंग के बारे में कहा जाता है कि यह तनोट राय माता का ही आशीर्वाद था कि भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला को आज भी पाकिस्तानी टैंकों की कब्रगाह के रूप में याद किया जाता है। इस युद्ध के खत्म होने के पश्चात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इस मंदिर के दर्शन करने पहुंची थीं। लोंगेवाला की विजय के बाद मंदिर परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया। जहां अब हर वर्ष 16 दिसंबर को सैनिकों कि याद में उत्सव मनाया जाता है।

पाकिस्तानी सेना भी झुकाती है सिर


1965 का युद्ध खत्म होने के बाद पाकिस्तानी सेना ने भी तनोट राय माता के चमत्कार को माना। यही नहीं युद्ध खत्म होने के बाद पाकिस्तानी सेना के ब्रिगेडियर शहनवाज खान भी तनोट राय माता के दर्शन करने भारत आए थे। तनोट राय माता के दरबार में नतमस्तक होते हुए उन्होंने माता के दरबार में चांदी का एक छत्र अर्पित किया। पाकिस्तान के सैनिक ‘माता तनोट राय’ की शक्ति के आगे सिर झुकाते हैं।

BSF ने लिया है मंदिर के रख-रखाव का जिम्मा


1965 के चमत्कार और 1971 की लोंगेवाला जंग की विजय के बाद से बीएसएफ ने यहां एक चौकी स्थापित कर दी। साथ ही इस मंदिर के रखरखाव का पूरा जिम्मा लिया। बीएसएफ द्वारा मंदिर की पूजा और प्रबंध संचालन के लिए एक ट्रस्ट भी बनाया गया है। इस चमत्कारी मंदिर की मान्यता इतनी है कि बीएसएफ के जवान ड्यूटी पर निकलने से पहले तनोट राय माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते। कई मौकों पर बीएसएफ के जवान यहां रात्रि भजन कीर्तन का भी आयोजन करते रहते हैं। उनका भरोसा है कि तनोट राय माता के आशीर्वाद से दुश्मन उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता है।
#indianarmy #BSF

देश के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं NCC कैडेट्, नेशनल कैडेट कोर से जुड़ी ये 9 खास बातें


भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में नेशनल कैडेट कोर (NCC) को और अधिक सशक्त बनाने की बात की है। साफ है कि सरकार युवाओं के बीच इस कोर और लोकप्रिय करना चाहती है। NCC का उद्देश्य युवाओं में चरित्र, मिल-जुलकर काम करने की क्षमता का विकास करना है। इसके अलावा NCC युवाओं में नेतृत्व की क्षमता और सेवा की भावना भी विकसित करता है। यह युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करता है और पहले से तैयार एक रिज़र्व बल बनाता है ताकि इसका उपयोग राष्ट्रीय आपातकाल के समय सशस्त्र बल के रूप में किया जा सके। आइये जानते हैं NCC से जुड़ी कुछ खास बातें :

जर्मनी में हुई थी शुरुआत

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) को सबसे पहले जर्मनी में 1866 में शुरू किया गया था। भारत में राष्ट्रीय कैडेट कोर की स्थापना 16 अप्रैल, 1948 में की गई थी।

नई दिल्ली में है मुख्यालय

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
कर्नल गोपाल गुरुनाथ बेवूर को 31 मार्च 1948 को राष्ट्रीय कैडेट कोर का पहला निदेशक बनाया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है और इसके वर्तमान महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल बी. एस. सहरावत हैं।

तीनों सेनाओं का मेल है ये कोर

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
'एकता और अनुशासन' कोर का आदर्श वाक्य है। देश के युवाओं को संवारने में लगे हुए सेना,  नौसेना और वायु सेना का एक त्रिकोणीय सेवा संगठन है।

ऐसा होता है NCC का फ्लैग

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
NCC के झंडे में तीन रंग होते हैं जो तीनों सेनाओं को प्रदर्शित करते हैं। लाल आर्मी के लिए, गहरा नीला नेवी के लिए और हल्का नीला वायुसेना के लिए।

छात्रों को दिया जाता है प्रशिक्षण

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
भारत में राष्ट्रीय कैडेट कोर के माध्यम से उच्च विद्यालयों, महाविद्यालयों और पूरे भारत में विश्वविद्यालयों के कैडेटों को छोटे हथियारों और परेड में बुनियादी सैन्य प्रशिक्षण प्रदान करता है।

प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं NCC कैडेट

नरेंद्र मोदी-नेशनल कैडेट कोर (NCC)
वर्ष 1948 में केवल बीस हजार कैडेट्स के साथ शुरू हुई NCC के आज पूरे देश में तकरीबन 13 लाख कैडेट्स हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी NCC कैडेट्स रह चुके हैं।

होल टाइम लेडी ऑफिसर

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
NDA और IMA की ही तरह लड़कियों को भी NCC ज्वाइन करने की स्वतंत्रता है और उन्हें भी लड़कों की ही तरह ट्रेनिंग दी जाती है। महिलाओं के लिए अलग रेजिमेंट है जिसे होल टाइम लेडी ऑफिसर कहा जाता है। करीब 100 से भी ज्यादा महिलाएं भारतीय सेना में अधिकारी हैं।

कई रिकॉर्ड कर चुका है कायम

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
एनसीसी समाज कल्‍याण के कार्यों में भी आगे रहा है। पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर करीब साढ़े नौ लाख NCC कैडेट्स ने लेह, कन्याकुमारी और अंडमान निकोबार द्वीप समूह सहित 1805 केन्द्रों पर योग किया था।

यूपी सबसे बड़ा निदेशालय

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
उत्तर प्रदेश का 'एन.सी.सी. निदेशालय' देश के सबसे बड़े निदेशालयों में से एक है। यहां करीब 1.19 लाख कैडेट राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। कई कैडेट्स ने निशानेबाजी और घुड़सवारी में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनेक सम्‍मान अर्जित किये हैं।

इस दिन होता है NCC डे

नेशनल कैडेट कोर (NCC)
राष्ट्रीय कैडेट कोर दिवस प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह के चौथे रविवार को मनाया जाता है। भारत के सभी राज्‍यों की राजधानियों में एनसीसी का स्‍थापना दिवस मनाया जाता है, जिसमें कैडेट मार्च पास्‍ट, सांस्‍कृतिक कार्यक्रम और सामाजिक विकास के कार्यक्रमों में हिस्‍सा लेते हैं।