Monday, June 11, 2018

PICS : इन 9 तस्वीरों में देखिये कैसे भावुक हो जाते हैं दुनिया की सबसे ताकतवर फौज के सिपाही


अमेरिकी सेना को यूं तो दुनिया की सबसे खतरनाक और सबसे ज्यादा ताकतवर फ़ौज का दर्जा प्राप्त है। लेकिन यह भी सच है कि कोई व्यक्ति किसी भी सेना में होने से पहले एक इंसान है और इंसान का इमोशनल होना प्राकृतिक है। भले ही कड़ी ट्रेनिंग के बाद फौजियों का दिल और दिमाग मजबूत हो जाता हो लेकिन कई बार ऐसी भी परस्थितियां आ जाती हैं जब इन जांबाज सैनिकों की आंखें भी नम हो जाती हैं। आइये आज आपको रुबरु करा रहे हैं अमेरिकी सैनिकों कि कुछ ऐसी ही तस्वीरों से जिन्हें देखकर आप भी भावुक हो जाएंगे:-

गमगीन मंजर


युद्ध कोई भी हो किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं होता। जब अपनी आंखों से कोई सैकड़ों साथियों को शहीद होते हुए देखे तो भला मन क्यों न दुखी हो।

दुखद यादें


युद्ध के मैदान में अपनों से  बिछड़ने का गम एक फौजी को भी भावुक कर देता है।

कभी घर की याद


घर के ऐश और आराम को त्यागकर कड़ी ट्रेनिंग को चुनना कोई आसन बात नहीं है। कभी घर की याद और मुश्किल ट्रेनिंग भी नए फौजियों को रुला देती हैं।

उदास शामें


संघर्ष के दौरान शान्ति कायम करना, कड़ी धूप में मीलों तक गश्त लगाना, कई बार खाना-पीना भी मुश्किल। नतीजन दिन ढलने तक कुछ इस तरह उदास हो जाते हैं सैनिक।

रुला देती है मुश्किल तैनाती


इतनी बुरी जगह मुझे तैनात कर दिया, उस पर मेरे दोस्त को भी मेरे साथ नहीं भेज रहे? मैं वहां बिलकुल नहीं जाना चाहता। शायद ऐसा सोचकर यह जवान जोर से रो पड़ा होगा।

तुम बहुत बहादुर हो


यूं ही नहीं तुम्हारा नाम याद रखेगी दुनिया। उठकर गिरे, गिरकर उठे, हर चुनौती से तुम डटकर लड़े, तभी तो मिली है जीत तुमको।

तुम्हें सलाम


तुम्हारे प्रदर्शन को इतिहास के सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। तुम्हें हमारा सलाम !

हम तुम्हें मिस करेंगे


तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता। हम तुम्हारा बलिदान बेकार नहीं जाने देंगे। तुम हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहोगी।

हमें फख्र है तुम पर


सब कुछ न्यौछावर करना पड़ता है। देश पर मर मिटना पड़ता है। तभी तो फख्र करती है दुनिया तुम पर। तुम्हें सलाम !

महिला शक्ति : फर्श से अर्श तक ऐसा था प्रथम 'महिला फाइटर पायलट' अवनि चतुर्वेदी का सफर, 7 खास बातें



इतिहास में जब भी महिलाओं के सामर्थ्य, साहस व कौशल की बात होगी तो उसमें अवनि चतुर्वेदी का नाम अनुकरणीय होगा। क्योंकि अवनि चतुर्वेदी ने सरकार के उस फैसले पर खरा उतरकर दिखाया है जिस फैसले के तहत सरकार ने महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने का एक प्रयोग के तौर पर मौका देना चाहा और आज अवनि देश की पहली महिला फाइटर पायलट के रूप में देश को गौरवान्वित कर रही हैं। दरअसल, उन्होंने अकेले फाइटर जेट मिग-21 उड़ाकर यह साबित कर दिया कि भारतीय स्त्री उस हर क्षेत्र में दखल दे सकती है जिसे अब तक पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र माना जाता रहा है। आइये जानते हैं नई पीढ़ी की लड़कियों को आगे बढ़ने का हौसला देने वाली अवनि का ये सफ़र आखिर कैसा था ?

एक छोटे गांव से हैं 'अवनि'


अवनि का बचपन मध्यप्रदेश के रीवा जिले के एक छोटे कस्बे दियोलैंड में बीता। उनके पिता दिनकर चतुर्वेदी पेशे से इंजीनियर हैं और मां हाउस वाइफ। उनका एक बड़ा भाई सेना में कैप्टन है। अवनि ने अपनी  शुरुआती पढ़ाई हिंदी मीडियम से पूरी की है। लेकिन वह अपने स्कूल में दसवीं व बारहवीं कक्षा की टॉपर रही हैं। आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए वह राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ चली गईं, जहां से उन्होंने कम्प्यूटर साइंस में बी-टेक किया।

ऐसे मिली लड़ाकू विमान उड़ाने की प्रेरणा


अवनि अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला के जीवन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। लेकिन भाई के सेना में होने के कारण उससे ही अवनि को देश सेवा का जज्बा मिला है। अपनी स्नातक यानी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी होने तक अवनि को यह भी मालूम नहीं था कि वह आगे चलकर फाइटर पायलट बनना चाहती हैं। लेकिन पढ़ाई के दौरान उन्हें एक फ़्लाइंग क्लब में जाने का मौका मिला। जहां उन्होंने पहली बार लड़ाकू विमान उड़ाने के बारे में जाना। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अवनि ने एयरफोर्स की टेक्निकल सर्विस ज्वाइन करने वाली परीक्षा दी, जिसमें उनका सेलेक्शन हो गया।

120 कैडेट्स में चुनी गईं थी 'अवनि'


अवनि के लिए यह काफी चुनौतीपूर्ण था क्योंकि उनसे पहले देश कोई भी किसी भी महिला को फाइटर पायलट नहीं चुना गया था। कुल 120 कैडेट्स में से अवनि के साथ दो अन्य लड़कियों भावना कंठ और मोहना सिंह को भी फाइटर पायलट के लिए चुना गया था। इन तीनों लड़कियों को हैदराबाद स्थित वायुसेना अकादमी में एक साल तक पुरुषों की ही तरह कठिन प्रशिक्षण दिया गया लेकिन अवनि खुशकिस्मत रहीं कि उन्हें सबसे पहले युद्धक विमान उड़ाने का मौका मिला। अपनी ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने 'हॉक एडवांस जेट ट्रेनर' पर उड़ान भरने से लेकर मिग-21 तक में उड़ान भरने का प्रशिक्षण लिया और अक्टूबर वर्ष 2017 में वह फाइटर पायलट के तौर पर कमीशन पाने की हकदार बनीं।

और फिर ऐसे रचा इतिहास


एक फाइटर पायलट के तौर पर 24 वर्षीय अवनि ने उस वक्त इतिहास रच दिया, जब उन्होंने 19 फरवरी, वर्ष 2018 को गुजरात के जामनगर एयरबेस से मिग -21 विमान से ऐतिहासिक उड़ान भरी और सफलता पूर्वक अपने मिशन को पूरा किया। हालंकि, वह आज भी कड़े प्रशिक्षण और अभ्यास से गुजर रही हैं, ताकि एक दक्ष फाइटर पायलट बनें। क्योंकि ऑपरेशनल फील्ड के लिए उन्हें बेहद कठिन तैयारी करनी होगी। आपको बता दें कि अवनि को टेनिस खेलना और  पेंटिग करना काफी पसंद है।  

इससे पहले महिलाओं को नहीं थी 'फाइटर प्लेन' उड़ाने की अनुमति


फाइटर पायलट होने का मतलब है कि अब वह युद्ध की स्थिति में सुखोई जैसे लड़ाकू विमान भी उड़ा सकेंगी। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह भी है की वर्ष 2016 से पहले महिलाओं को फाइटर प्लेन उड़ाने की अनुमति नहीं थी। भारतीय वायुसेना में कुल 94 महिला पायलट्स हैं लेकिन ये फाइटर जेट्स नहीं उड़ाती बल्कि हेलिकॉप्टर या दूसरे विमान ही उड़ाती थीं। वर्ष 2015 में सरकार ने एक प्रयोग के तौर पर फाइटर पायलट का प्रशिक्षण देने के लिए महिलाओं को भर्ती किया और एक साल की कठिन ट्रेनिंग के बाद अवनि ने पहली महिला फाइटर पायलट होने का तमगा अपने नाम कर लिया।

भारत के लिए बड़ी उपलब्धि


पड़ोसी मुल्कों की बात करें तो पाकिस्तान में वर्ष 2006 से ही महिलाएं फाइटर पायलट की भूमिका में हैं। वहां इस समय 21 महिला फाइटर पायलट्स हैं। चीन में 2004 महिलाएं फाइटर जेट्स उड़ा रही हैं। भारतीय वायुसेना के लिए यह घटना बेहद महत्वपूर्ण है कि अब एयरफोर्स में महिलाएं भी लड़ाकू विमान उड़ाने की जिम्मेदारी उठा सकेंगी। भारत के लिए बेशक यह एक बड़ी उपलब्धि है।

अमेरिकी संसद ने भी व्यक्त की थी खुशी


सभी वर्जनाएं तोड़कर अकेले लड़ाकू विमान की पायलट बनने पर अमेरिका की एक शीर्ष सांसद मार्था मैक्सैली ने फ़्लाइंग ऑफिसर अवनि चतुर्वेदी को उनकी इस कामयाबी के लिए ट्वीट कर बधाई दी।  मार्था को भी अमेरिका की पहली फाइटर पायलट  बनने का गौरव प्राप्त है। उन्होंने 26 वर्ष तक अमेरिकी वायुसेना में अपनी सेवाएं दी हैं। वह वर्ष 2010 में कर्नल के पद से रिटायर हुईं थीं। वर्ष 1995 में इराक़ के डेविस- मोंटन एयरफोर्स बेस से A-10 वार्थहॉग फाइटर जेट से उड़ान भर अपना पहला युद्धक अभियान शुरू किया था।
बहरहाल, स्वागत कीजिये बड़ी उपलब्धि का, जिसने हजारों-लाखों महिलाओं के जज्बे को हौंसला और सपनों को पंख दिए हैं। ऐसे में यह देश के लिए और भी महत्वपूर्ण है जब देश की रक्षा मंत्री एक महिला हैं। यकीनन, भविष्य में रक्षा सेवाओं में तमाम भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ेगी।ऐसा अवनि के जज्बे और जोश ने साबित कर दिया है।

PICS : हिमालय का गौरव हैं ये जांबाज, देखें ITBP की खास 9 तस्वीरें


परिस्थितियां कितनी भी विषम क्यों न हों, भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (ITBP) के जवान उससे निपटने के लिए हरदम तैयार रहते हैं। ITBP ने अपनी यात्रा के दौरान कई बुलंदियों को छूने में कामयाबी हासिल की और कई मील के पत्थर भी पार किए। आईटीबीपी के जवान चुनौतीपूर्ण भूमिका निर्वाह भी पूरी जिम्मेदारी के साथ करते हैं। आइये तस्वीरों के जरिये देखते हैं इन जांबाजों कि कुछ खास तस्वीरें :-

परख लें ताकत


हिम्मत के साथ-साथ अगर शरीर में ताकत भी हो तो बड़े से बड़ा दुश्मन आपको देखकर मैदान छोड़ दे।

हिमालय की चोटियों को ऐसे बनाते खूबसूरत


जी हां, हिमालय की इन चोटियों पर जब विजय पताकाएं लहराती हैं तो इनकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है।

रुके न तू थमे न तू..


व्योम छूते, दुर्गम हिमालय के शिलाओं को चीरते आगे बढ़ते ITBP के हिमवीर जवान।

निरंतर अपने पथ पर अग्रसर


निरंतर बढ़ते अपने पथ पर, हम कर्मवीर हरदम तत्पर।

हिम्मत के जांबाज प्रहरी


यकीनन जहां बर्फीले तूफ़ान हर कदम पर बाधा बनते हैं लेकिन फिर भी डटे रहते हैं अपने पथ पर ये जवान।

मेकिंग इन सोल्जर


पहाड़ से जीतना है तो उसके जैसा ही बनना पड़ता है मजबूत, विशाल और हमेशा अडिग।

सर्वदा चौकन्ना


दुश्मन को दूर से ही तबाह कर सकते हैं यह जांबाज! भला कौन जुर्रत करेगा इनके सरहदों में आने की।

 राह कैसी भी हो हिम्मत नहीं खोते..


सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते। विघ्नों को गले लगाते हैं, कांटों में राह बनाते हैं।

PICS : योग से लेकर खतरनाक ट्रेनिंग तक CISF की हर हलचल, देखें 9 तस्वीरें

सेना के जवान न सिर्फ देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं बल्कि देश के भीतर भी हर परिस्थिति से लड़ने और हर मुश्किल घड़ी में अपने देशवासियों का साथ देने के लिए तत्पर रहते हैं। आइये तस्वीरों में देखते हैं CISF की कुछ खास गतिविधियां :-

'मेकिंग इन कमांडो'


हर रोज गिरते हैं। रपटते हैं। घिसटते हैं लेकिन फिर से उठते हैं। तभी तो बनते हैं परफेक्ट सोल्जर्स। ट्रेनिंग के दौरान CISF की महिला कमांडो।

ताकत परखते जांबाज


आरटीसी मुंडाली, ओडिशा में ताकत, सहनशक्ति और धीरज का शानदार प्रदर्शन करते सीआईएसएफ प्रशिक्षक।

बेहतर कल के लिए


इसे पौधे नहीं बल्कि आने वाला कल कहा जाए तो ज्यादा बेहतर है। पौधारोपण करते जवान। 

स्पोर्ट्स मीट



ISP बुरंपुर में वार्षिक स्पोर्ट्स मीट के दौरान अपने क्रिकेट स्किल्स का प्रदर्शन करते CISF जवान।

योग से हो दिन की शुरुआत


हर दिन एक नई शुरुआत है। इसलिए लंबी सांस लेकर मन मष्तिष्क को शान्ति दें और एक बेहतरीन दिन की शुरात करें।   

लक्ष्य की ओर बढ़ते जवान


खुद में विशवास करें अपनी सीमाएं बाधाएं और जीवन के शानदार अनुभव लें और अपने लक्ष्यों को जीतें।

रूट मार्च


हर पल को जियें और आगे बढ़ें शरीर चट्टान सा मजबूत हो और हौसला मजबूत तो मुश्किलें क्या हैं। राजस्थान में रूट मार्च करते हुए आरटीसी देवली CISF के जवान।

 मेरा भारत स्वच्छ


'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत आरटीसी देवली के प्रशिक्षुओं ने सफाई का जिम्मा उठाया।
 सभी फोटो : twitter

RUNWAY-1 'एयरक्राफ्ट रेस्तरां' एक विमान जो रेस्टोरेंट में बदल गया, जानें इससे जुड़ी खास 6 बातें



अगर आप सोचते हैं कि हवाईयात्रा का अनुभव सिर्फ आकाश मे लिया जा सकता है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब आप दिल्ली-अंबाला हाइवे पर भी हवाई यात्रा का आनंद ले सकते हैं। इस हाइवे पर एक पुराने विमान को बतौर रेस्तरां इस्तेमाल किया जा रहा है। जहां दूर-दूर से लोग खाने का आनंद उठाने आते हैं

पुराना विमान है यह रेस्तरां


दरअसल यह एयर इण्डिया का एक पुराना A-320 विमान है, जो अब रनवे पर नहीं बल्कि दिल्ली-अंबाला हाइवे के किनारे पर खड़ा है। अब यह एक रेस्तरां यानी रेस्टोरेंट बन चुका है। जिसका नाम है 'रनवे-वन' (RUNWAY-1)। इस ख़ास रेस्तरां में डाइनिंग के लिए प्रतिदिन तकरीबन पांच सौ लोग आते हैं। 

यह थी वजह


इस विमान को एक रेस्टोरेंट में तब्दील किया है 30 वर्षीय क्षितिज कक्कड़ ने। क्षितिज के मुताबिक, हाइवे के आस-पास बहुत से गांव हैं और ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होनें कभी हवाई यात्रा नहीं की है। ऐसे में हम उन लोगों को एक नया अनुभव दे रहे हैं, जो कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे।

स्टाफ को मिली है ख़ास ट्रेनिंग


यहां खाना परोसने वाले वेटर आपको हवाई जहाज के आकर की ट्रे में ही खाना परोसते हैं। विमान के पूरे स्टाफ को ट्रेनिंग दी है क्षितिज की पत्नी ने। जो पहले विमानन क्षेत्र में काम कर चुकी हैं। यहां के स्टाफ के लिए विशेष यूनिफॉर्म भी दी गई है।

हर मेहमान को स्पेशल फील कराना रहती है स्टाफ की कोशिश


रेस्तरां के एक कर्मचारी रोहित के अनुसार हम सर्व करते वक्त हर चीज का ख्याल रखते हैं ताकि मेहमान को विमान जैसा ही महसूस हो और वह यह महसूस न कर वह एक आम रेस्तरां में बैठे हैं।

बोर्डिंग पास से होती है इस हवाई जहाज में एंट्री


इस हवाई जहाज में जाने के लिए आपको बोर्डिंग पास लेना पड़ता है। विमान में इमरजेंसी गेट से लेकर एकदम असली दिखने वाला कॉकपिट भी है। यही नहीं, आप हवाई जहाज में बैठकर खाने का लुत्फ तो उठा ही सकते हैं। साथ ही हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी म्यूजिक का भी आनंद ले सकते हैं। इस खास रेस्तरां के प्रति लोगों की दीवानगी काफी है। और यहां आने वाला हर शख्स यहां से लौटते वक्त सेल्फी लेना नहीं भूलता।

 एक दिन ख़ास लोगों के लिए


ख़ास बात यह भी है कि प्रत्येक मंगलवार को रनवे-वन ओल्ड एज होम (वृद्ध आश्रम) में रहने वाले वरिष्ठ लोगों को तथा असहाय बच्चों को आमंत्रित करता है और उन्हें निशुल्क भोजन उपलब्ध कराता है। यही नहीं इस दिन बच्चों के लिए यहां विभिन्न खेलों का भी आयोजन किया जाता है।

स्वदेश लौटी INSV तारिणी, मिलिए देश की 6 साहसिक बेटियों से

भारतीय महिलाएं आज घर की चहारदीवारी से बाहर निकलकर पुरुषों के वर्चस्व के क्षेत्रों में भी अपने कदम मजबूती, शिद्दत और जिम्मेदारी से रख रही हैं। जमीन, आसमान, समंदर, बर्फीली पहाड़ियों, तपते रेगिस्तान, खतरनाक जंगल अब उनसे अछूते नहीं रहे हैं। फाइटर प्लेन उड़ाना हो या कोर्ट में फैसला देना हो। पुलिस की वर्दी में अनूठे काम करने हों या जंग के मोर्चे पर या समंदर का चक्कर लगाकर नया इतिहास लिखना हो। सभी क्षेत्रों में निष्ठा, समर्पण, साहस, शौर्य, पराक्रम की स्याही से वह कामयाबी की नई इबारत लिख रही हैं। इस स्तंभ के अंतर्गत आज हम आपको  से मिलवा रहे हैं उन छह साहसी महिलाओं से जिन्होनें 7 महीनों के दौरान समद्र की यात्रा कर नारी शक्ति का एक सशक्त उदहारण प्रस्तुत किया है। आइये जानते हैं -

लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी की अगुवाई में 'INSV तारिणी' पर सवार 'नाविका सागर परिक्रमा' के अपने मिशन को पूरा कर भारतीय नौसेना का महिला दल सकुशल देश लौट चुका है जहां उनका जोर-शोर से स्वागत किया गया। ख़ास बात यह है कि केवल छह महिलाओं की इस टीम ने इस मिशन को बिना किसी पुरुष की सहायता के सफलतापूर्वक पूरा किया है, जो पूरे विश्व के लिए महिला शक्ति की उम्दा मिसाल है। इस टीम में शामिल सभी छह महिलाएं आज लाखों युवतियों की प्रेरणा बन रहीं हैं 'नाविका सागर परिक्रमा' इस महिला टीम का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी कर रही थीं। टीम के अन्य पांच सदस्यों में लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल, लेफ्टिनेंट कमांडर पी स्वाति, लेफ्टिनेंट ऐश्वर्या बोडापति, लेफ्टिनेंट एस. विजया देवी और लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता शामिल रहीं।

कई रिकॉर्ड बना चुकी हैं लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी 


लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी ऋषिकेश (उत्तराखंड) के उग्रसेन नगर की रहने वाली हैं। उनकी मां डा. अल्पना जोशी, ऋषिकेश डिग्री कॉलेज में प्रवक्ता और पिता डॉ. प्रदीप कुमार जोशी गढ़वाल केन्द्रीय विवि श्रीनगर (उत्तराखंड) में प्रोफेसर हैं। वर्तिका ने अपनी पढ़ाई श्रीनगर और ऋषिकेश से पूरी की है। उन्होंने एमिटी विवि से एरोस्पेस इंजीनियरिंग में बीटेक और आईआईटी दिल्ली से एमटेक किया।
वर्ष 2010 में वर्तिका नौसेना में अधिकारी बनी थीं। इंडियन नेवी ज्वाइन करने के बाद से वर्तिका नौसेना के साहसिक अभियानों में लगातार शामिल होती रही हैं। नौसेना में भर्ती होने के बाद वह ब्राजील के रियो डि जिनोरियो से दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन तक पांच हजार नॉटिकल मील का समुद्री अभियान तय कर चुकी हैं। वर्तिका ने अपनी जिम्मेदारी सकुशल निभा कर यह साबित किया है कि देश की बेटियां किसी से कम नहीं।

लेफ्टिनेंट कमांडर पायल ने MNC की नौकरी छोड़कर ज्वाइन की थी इंडियन नेवी 


देहरादून रेसकोर्स निवासी पायल गुप्ता के पिता विनोद गुप्ता व्यापारी और मां नीलम गृहिणी हैं। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा कारमन स्कूल से की इसके बाद उन्होंने देहरादून से ही बीटेक किया। ग्रेजुएशन के बाद पायल को गुड़गांव की एक कंपनी में प्लेसमेंट मिला। लेकिन पायल के अनुसार कम्प्यूटर के सामने बैठना उन्हें पसंद नहीं था। इसलिए उन्होंने नौसेना को चुना।

हिमाचल की इकलौती महिला नेवी अधिकारी हैं प्रतिभा जामवाल



हिमाचल के कुल्लू की रहने वाली लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा के घर में खुशी का माहौल है। क्योंकि उनकी बेटी ने एक खास अभियान से सफलतापूर्वक लौटकर विश्व रिकॉर्ड बनाया है। नौसेना में आने के बाद उन्होंने सेलिंग अभियान में हिस्सा लेना शुरू किया। वह गोवा में तैनात हैं और 2 वर्ष से वह सागर परिक्रमा के लिए विशेष प्रशिक्षण ले रही थीं। अपने इस सफर के दौरान प्रतिभा ने बताया कि, 'दक्षिणी महासागर चुनौती दे रहा है सिकुड़ती ठंड, माइनस 55 डिग्री तापमान, ऊंची-ऊंची लहरें, तूफ़ानी हवाएं... इन सबका सामना अब हमें ही करना है, लेकिन इसी में तो थ्रिल है। इस अभियान से लौटकर प्रतिभा जून माह में अपने घर कुल्लू जाएंगी।

काई अभियानों का हिस्सा रह चुकी हैं लेफ्टिनेंट कमांडर पी. स्वाति 


स्वाति का बचपन विशाखापत्तनम में गुज़रा हैं। जहां नौसेना के बोट क्लब में सेलिंग प्रतियोगिता होती थी। स्वाति की मां उन्हें इन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए हमेशा प्रेरित किया करती थीं और तब से ही यह उनके शौक में शुमार हो गया। भारतीय नौसेना ज्वाइन करने के बाद वह विभिन्न अभियानों में अब तक पांच बार भूमध्यरेखा पार कर चुकी हैं। लेकिन दक्षिणी महासागर में सेलबोट से जाने का अनुभव उनके लिए नया था।

अपने क्षेत्र का गौरव हैं मणिपुर की विजया देवी 


लेफ्टिनेंट कमांडर विजया देवी भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की रहने वाली हैं। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में डिग्री ली है। बोट के डेक पर खड़े होकर समंदर देखना उन्हें अच्छा लगता है।विजया और उनकी टीम के बाकी सदस्यों का कहना है कि समंदर यात्रा के दौरान कोई तनाव नहीं रहता। इसलिए तनाव दूर करने के लिए कुछ अलग करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।

सपने को जी रही हैं लेफ्टिनेंट कमांडर ऐश्वर्या 


हैदराबाद की रहने वाली ऐश्वर्या बोडापति के मुताबिक उन्होंने अपने पिता को बचपन से नौसेना की वर्दी में देखा है। इसलिए इंडियन नेवी में जाना उनका बचपन का सपना रहा है। ऐश्वर्या की हाल ही में सगाई हुई है और इस अभियान के पूरा होने के बाद शादी करने वाली हैं। इस अभियान के बारे में एश्वर्या का कहना है कि तारिणी और ये दोस्त ही मेरा परिवार हैं। हममें से अगर एक नहीं हो तो कुछ अधूरा-सा लगता है।