Thursday, January 11, 2018

जिससे खौफ खाते थे मुग़ल बादशाह, पेशवा बाजीराव से जुड़ी 9 ख़ास बातें

मराठा साम्राज्य के शासक पेशवा बाजीराव प्रथम को कौन नहीं जानता ? उन्होंने अपने साहस और सैन्य व्यूह रचना से मराठा साम्राज्य का विस्तार किया। उनकी वीरता के किस्से आज भी सुनाए जाते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि उन्होंने जितनी भी लड़ाइयां लड़ीं, उसमें से कोई नहीं हारी। ऐसे वीर योद्धा से जुड़ी कुछ खास बातें आज हम आपको बता रहे हैं।

ब्राह्मण परिवार में हुआ था जन्म


पेशवा बाजीराव का जन्म 18 अगस्त सन 1700 को एक भट्ट परिवार में पिता बालाजी विश्वनाथ और माता राधा बाई के घर में हुआ था। पेशवा बाजीराव के पिताजी छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे।

ये था पेशवा का पूरा नाम


बाजीराव पेशवा (bajirao peshwa) का पूरा नाम श्रीमंत बाजीराव बल्लाळ (बाळाजी) भट्ट था। 1720 के आस-पास पिता की मृत्यु के बाद उन्हें पेशवा के पद पर मनोनीत किया गया। उस समय उनकी उम्र मात्र 20  वर्ष थी।  उनकी उम्र बहुत कम थी  इसलिए उनकी नियुक्ति का काफी विरोध हुआ। हालांकि बाजीराव पेशवा का पद पाने में सफल रहे।

किसी युद्ध में नहीं हुए पराजित


पेशवा बाजीराव जिन्हें बाजीराव प्रथम (Bajirao I) भी कहा जाता है मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पेशवा का अर्थ होता है प्रधानमंत्री। वे मराठा छत्रपति राजा शाहू के चौथे प्रधानमंत्री थे। बाजीराव पेशवा ने 41 युद्ध लड़े थे जिनमे से एक में भी वह पराजित नहीं हुए थे।अपने अद्भुत रणकौशल, अदम्य साहस और अपूर्व संलग्नता से तथा प्रतिभासंपन्न छोटे भाई चिमाजी साहिब अप्पा के सहयोग द्वारा शीघ्र ही उसने मराठा साम्राज्य को भारत में सर्वशक्तिमान बना दिया। पेशवा बनते ही बाजीराव ने अपने इरादे जाहिर कर दिए। वह मराठा ध्वज को दिल्ली में लहराते हुए देखना चाहते थे साथ ही वह मुग़ल साम्राज्य को सत्ता से बाहर करना चाहते थे। 

घुड़सवार सैनिक के रूप में लड़ने में थे माहिर


उत्तर में मराठा साम्राज्य को बढाने में बाजीराव का सबसे मुख्य योगदान रहा। इतिहास की मानें तो बाजीराव घुड़सवारी करते हुए लड़ने में सबसे माहिर थे। बहुत से लोग कहते हैं कि उनसे अच्छा घुड़सवार सैनिक भारत में आज तक नहीं  हुआ। कहा जाता है कि घोड़े पर बैठकर श्रीमंतबाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।

मुग़ल बादशाह भी पेशवा से खाते थे खौफ


मुगल बादशाह मुहम्मद शाह उनसे इतना खौफ खाता था कि वह उनसे प्रत्यक्ष भेंट से भी इनकार कर देता था। बाजीराव का सबसे मुख्य अभियान भोपाल का युद्ध था जिसमें  उन्होंने दक्कन के नवाब उल मुल्क को पुन: हराया और उसे 50 लाख रूपये युद्ध के हर्जाने के रूप में चुकाने को कहा। बाजीराव का एक और मुख्य अभियान था पुर्तगालियों को पराजित करना। जिसके बाद कोंकण क्षेत्र से पुर्तगालियो का अधिकार समाप्त हो गया और उन्होंने 7000 रुपये वार्षिक हर्जाने के रुप में मराठाओं को देना स्वीकार किया।

निज़ामुलमुल्क पर विजय


1737 ई. में बाजीराव प्रथम  सेना लेकर दिल्ली तक गया, परन्तु बादशाह की भावनाओं पर चोट पहुंचाने से बचने के लिए उसने अन्दर प्रवेश नहीं किया। इस मराठा संकट से मुक्त होने के लिए बादशाह ने बाजीराव प्रथम के घोर शत्रु निज़ामुलमुल्क को सहायता के लिए दिल्ली बुला भेजा। निजाम ने इसे बाजीराव की बढ़ती शक्ति को रोकने का अनुकूल अवसर समझा। भोपाल के निकट दोनों प्रतिद्वन्द्वियों की मुठभेड़ हुई। 27 अगस्त सन 1727 में बाजीराव ने निज़ाम के खिलाफ मोर्चा शुरू किया। निज़ामुलमुल्क पराजित हुआ तथा उसे विवश होकर सन्धि करनी पड़ी। पेशवा बाजीराव ने निज़ाम के कई राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया जैसे बुरहानपुर, और खानदेश।

गुरिल्ला युद्ध प्रणाली में निपुण 


बाजीराव प्रथम ने 29 मार्च, 1737 को दिल्ली पर धावा बोला। मात्र तीन दिन में मुग़ल सम्राट मुहम्मदशाह दिल्ली छोड़ने के लिए तैयार हो गया था। उत्तर भारत में मराठा शक्ति की सर्वोच्चता सिद्ध करने के प्रयास में बाजीराव प्रथम सफल रहे। उन्होंने  पुर्तग़ालियों से बसई और सालसिट प्रदेश भी छीन लिए। शिवाजी के बाद बाजीराव प्रथम ही दूसरे ऐसे मराठा सेनापति थे, जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया। वह 'लड़ाकू पेशवा' के नाम से भी जाने जाते हैं।
बुंदेलखंड का अभियान

बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह छेड़ा। जिसके कारण दिसम्बर 1728 में मुग़लों ने मुहम्मद खान बंगश के नेतृत्व में बुंदेलखंड पर आक्रमण कर दिया और महाराजा के परिवार के लोगों को बंधक बना दिया। महाराजा छत्रसाल के बाजीराव से मदद मांगने पर मार्च, सन 1729 में पेशवा बाजीराव ने अपनी ताकत से महाराजा छत्रसाल को उनका सम्मान वापस दिलाया।

इसलिए प्रसिद्ध है बाजीराव का दिल्ली पर हमला 


28 मार्च 1737 को मराठों ने दिल्ली की लड़ाई में मुग़लों को बुरी तरह परस्त किया। इतिहास के कई जानकारों का कहना है कि दिल्ली तक की दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में बिना रुके पूरी की और वह भी बिना थके। देश के इतिहास में ये सिर्फ दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं, एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला। 27 अप्रैल 1740 को  बीमारी के कारण उनकी असामयिक मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु अपने उन सिपाहियों के बीच हुई जिनके साथ वह आजीवन रहे।

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