Tuesday, May 29, 2012

भ्रष्टाचार खत्म हो गया तो........ ?


जब-जब भ्रष्टाचार से मुकाबला करने की बात आती है तो हम एक ऐसे समाज की कल्पना करने लगते हैं जहां भ्रष्टाचार नाम का शब्द  ही न हो, लेकिन जब हम खुद  भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं तो इससे मुंह भी नहीं मोड़ पाते हैं। फर्क केवल इतना है कि जब हम स्वयं किसी काम को निपटाने के लिए अतिरिक्त साधनों का सहारा लेते हैं तो भ्रष्टाचार सुविधाओं को बटोरने का माध्यम बन जाता है और यदि कोई अन्य व्यक्ति उन सुविधाओं को आप से ज्यादा रकम खर्च करके हासिल कर लेता है और आप उस सुविधा से वंचित रह जाते हैं तो, उसी पल आपके लिए यह भ्रष्टाचार के रूप में समाज की सबसे बड़ी समस्या बन जाता है। दरअसल भ्रष्टाचार का इतिहास बहुत ही पुराना है आप जिस भी विभाग में जाइए आपका काम तब तक नहीं बनेगा, जब तक कि आप पैसे खर्च नहीं करते हैं । आपको थाने में मानहानि की रिपोर्ट लिखानी हो, तो आपकी रिपोर्ट तब तक नहीं लिखी जाएगी, जब तक कि आप चाय पानी के लिए नहीं पूछते। बढिया ....  एक तो इज्जत गवांओं और ऊपर से रिपोर्ट लिखाने के लिए भी पैसे भरो। आपका फोन खराब है आप लाईनमैन को खुश करिए तभी आपका फोन सही होगा, अगर आपने लाईनमैन से यह कहा कि फोन सही करना उसकी ड्यूटी है तो, वह बहाने बना कर आपके फोन को और भी खराब बना देगा। आपको सरकारी अस्पताल में दिखाना हो, तो बावजूद सारी सुविधा के आपको दवाई नहीं मिलेगी और डॉक्टर तो आपको ऐसे घूरेंगें, कि जैसे आपने उनसे कुछ उधार लेकर दिया ही न हो। राशनकार्ड बनवाने,राशन लेने व घर की बिजली पानी की सारी सरकारी व्यवस्था के लिए भी या तो आप किसी उच्च अधिकारी से फोन कराईए या फिर रिश्वत दीजिए, क्योंकि ऊपर से लेकर नीचे तक सभी सरकारी विभागों के अधिकारी रिश्वतखोरी के अलावा कोई दूसरा काम कर नहीं सकते हैं।
ऐसी निराशाजनक स्थिति में भ्रष्टाचार के खिलाफ अवाज उठाना भी अपने जी का जंजाल बनाना है,जनता को धोखे में रखना है हाल ही के अन्ना समर्थन पर गौर कीजिए एक तरफ तो ईमानदारी से जीने के बड़-बड़े भाषण दिये जा रहे ह और दूसरी तरफ आपस में ही पॉकेटमारी से भी बाज नहीं आ रहे तो, भला किससे उम्मीद की जाए ईमानदारी के साथ शान से जीने की जनता से? अरे वह तो उन बंदरों की भूमिका अदा कर रही  हैं जो कि एक टोपी बेचने वाले की टापियां पहन-पहनकर पेड़ों पर जाकर बैठ गये और जब टोपी बेचने वाले ने अपनी टोपी उतारकर रख दी  तो सभी बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपियां उतारकर फेंक दी सो वही हाल यहां भी दिखाई पड़ रहा है, क्योंकि थोड़े दिनों की हाय-तौबा से तो भ्रष्टाचार देश से खत्म होने नहीं वाला है,अन्ना हजारे भी  उसी टोपी बेचने वाले का रोल अदा कर रहें हैं
अब आखिर भ्रष्टाचार के बिना हमारा काम भी तो नहीं चलता और अगर देखें तो वे राजनेता भला भ्रष्टाचार का खात्मा क्यों होने देंगें, जो इसी के दम पर अपनी अलकापुरी की नींव मजबूत कर रहें हैं। और वे सरकारी बाबू भला भ्रष्टाचार रूपी पेड़ को काटना क्यों पसंद करेंगें जिसके बूते वे अपनी तनख्वाह का दस गुना कमा रहे हैं,और आप व हम क्यों चाहेंगें कि भ्रष्टाचार देश से खत्म हो । चलिए कल्पना करते हैं कि यदि भ्रष्टाचार देश से खत्म हो जाए तो हमारी क्या स्थिति होगी जो इसे कोसते हैं लेकिन मौका मिलते ही इसका लाभ लेने से भी नहीं चूकते हैं । आप ट्रेन में सफर करते होंगें? कई बार ऐसा भी हुआ होगा कि बर्थ कन्फर्म नहीं हुई होगी, फिर भी निश्चिंत होकर बैठ जाते होंगें क्योंकि पता है कि टिकट चेकर कुछ पैसे लेकर बर्थ दे देगा, यदि सारे टिकट चेकर ईमानदार हो गए तो? कई लोगों के पास गैस कनेक्शन नहीं होगा और गैस ब्लैक में लेते होंगें यदि गैस डीलर गैस ब्लैक में देना बंद कर दे तो? आप दफ्तर में बीमारी के जाली सर्टिफिकेट दिखाकर छुटटी लेते होंगें यदि सारे डॉक्टर जाली प्रमाण-पत्र बनाना बंद कर दें तो? अब आपके पास गाड़ी तो होगी ही, और इसे चलाते हुए कभी ट्रेफिक रूल्स नहीं तोड़े क्या? कभी बच गए होंगें तो क भी फंस जाने पर कुछ ले-देकर छूट गए होंगें। सोचो कि वह ट्रेफिक पुलिस वाला आपका चालान करने पर आमदा हो गया होता तो? ऐसे और भी न जाने कितने मौके होंगें जब आपने भ्रष्टाचार का सहारा लेते होंगें और जाने-अनजाने यह सोचकर खुश हो जाते होंगें कि चलो कुछ रकम ही तो खर्च करनी पड़ी काम तो हो गया, वहीं दूसरे पहलु की तरफ गौर करें तो नतीजा यही निकलता है कि आज जिसकी लाठी उसकी भैंस का प्रचलन है यानी जिसकी ताकत उसकी सुविधाएं । अब जो पैसे वाला है वह रिश्वत देकर अपनी सीट कन्फर्म करा ली, दादागिरी करते हैं तो आंखे दिखाकर काम करा लिया,यदि राजनीति करते तो कल्याण ही कल्याण है,फिर ये सभी लोग जो येन -केन-प्रकारेण सारी सुविधाएं समेट लेना चाहते हैं वे भला भ्रष्टाचार का खात्मा क्यों होने देंगें,और हम आखिर हमें भी तो इसके साथ सहजता से जीने की आदत जो पड़ गई है।  

Wednesday, May 23, 2012

हालात से यूं लड़ते चले गए.....

कभी दर्द दबाया कभी अश्क उमड़ते चले गए
कई-कई गुबार बारहा दिल में घुमड़ते चले गए

हुस्न-ओ-अदा-ओ-इज्जत पे कुबार्नियों का पाठ
इस ख़ैरात-ए-विरासत में पांव गड़ते चले गए

कोई नयी बात नहीं, है ये फितरत लोगों की पुरानी
वो इंसानियत के नाम पे जज्बात उधड़ते चले गए

थी बात अक्ल की उनके लिए, लाजिम थी सियासत
हम दिल से निकली हर बात पे लड़ते चले गए

सुबह-ओ-शाम का रखा जाए किस तरह हिसाब
दिन कम पड़ा तो रात पे भी झगड़ते चले गए

कभी कलम मेहरबान थी, कभी काबिल जुबान थी
हम उम्र भर हालात से बस यूं लड़ते चले गए

Tuesday, May 22, 2012

क्यों वो बचपन रूठ गया......

हाथ मेरे छोटी-सी डलिया
होतीं जिसमें फूल की कलियां
जाती थी मैं जब बन-ठन कर
होली-दिवाली गांव में घर-घर
जो तब था अब छूट गया
वक्त का दामन छूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,

गर्मी के मौसम में पेड़ों पर
चिड़िया का आशियां बनाना
चतुर गिलहरी पर छुप-छुप कर
पिचकारी से रंग गिराना
वही खिलौना कैसे जोडूं
कांच का था जो टूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,

सुरे-बेसुरे नगमे गाना
रात को दादा संग बतियाना
मैं तो बस आजाद उड़ूंगी
आसमान की सैर करूंगी
कहां वो बातें कही-अनकही
कौन वो सपने लूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया।

तस्वीरें कुछ कहती हैं...


 एक तो गर्मी ये एसी भी अभी खराब होना था।

 अगर तूने रास्ते में धोखा दे दिया तो....।

 यहां धूप तो है मगर सुकून ज्यादा है.......... ।

 इसे कहते हैं मोटर साईकिल...........

 क्रिएटिव माइंड आपने सोचा कभी ऐसा....

....अब नेटवर्क आ गए अब  आवाज आ रही है......

. आज स्कूल का रिक्शा छूट गया, तू ही छोड़ आ।



अगली बार बीवी से झगड़ा नही करेंगे.....प्रोमिस........। 

अकेले सिर के लिए तीन चोटियां दो चार होते तो ..............

  परंमआनंद यहीं है यहीं है यहीं है.........।



  देश ओ दुनिया में क्या चल रहा है।

पापा को ज्यादा काम करना पड़ता है थोड़ी मदद ही कर दूं। 

                                लगता है एमएफ हुसैन ने चित्रकारी इन्ही महाशय से सीखी होगी............।

                               जमाना  बहुत बदल गया है इब मैं भी तो बदलूं अपणे आप णे...।
जी हां दिस काल्ड हायर स्टडीज...........

... इनसे सीखिए हैडफोन का इस्तेमाल करना

चप्पल चोर भी तो कम नहीं हैं देश में। 

जिंदगी का वजन इनसे कहीं भारी है।

   कौन कहता है कि सूरज इतना बड़ा है।

साधू बनना कोई आसान नहीं है।

हवा हवाई...................

तुझे कच्चा चबा जाऊंगा।

चलो एक ही बार में सारा सामान आ गया.......Ü


Tuesday, May 15, 2012

रिश्तों की आड़ में खत्म होता जीवन............


 देहरादून की सामान्य गृहणी को उसके  इंजीनियर पति के  द्वारा अनगिनत टुकड़ों में काटकर फ्रिजर में रख दिया गया,नोएडा की एक फैशन डिजाइनर की उसके पति ने निर्मम हत्या कर दी,तो हाल ही में एक महिला ने अपने ही हाथों अपने सास ससुर पति व बच्चों को जहर देकर मार डाला।  आत्मीय  रिश्तों को तार-तार करने वाली ऐसी और न जाने कितनी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती  हैं। क्या पढ़े लिखे समाज में इस तरह के दुस्साहस भरे कार्य हमें शोभा देतें हैं। अगर गौर करें तो कुछ ही दिनों पहले गुड़गांव के रुचि मर्डर केस पर भी काफी बवाल हुआ, जोकि काफी देर से सामने आया इनके अलावा और भी न जाने कितनी ही  ऐसी घटनाएं होती हैं, जो कभी सामनें भी नहीं आ पाती हैं। लेकिन अगर सोचा जाए तो कहीं न कहीं हर कत्ल के पीछे की वजह कोई न कोई रिश्ता होता हैं
 ऐसी घटनाएं न सिर्फ पति पत्नी के बीच ही नहीं होती हैं बल्कि बेटा बाप का, भाई बहन का अथवा और न जाने कितने ही रिश्तों में आज यूं बदले की भावना पनप रही है कि, व्यक्ति एक दूसरे का खून तक करने से नहीं चूकता हैं। आज यादि कहा जाए कि व्यक्ति का निजी जीवन भी ग्लोब्लाईज्ड हो गया है तो गलत नहीं होगा,इस भागदौड़ भरी जिंदगी में शायद रिश्तों की कीमतें शून्य हो गई है। जमीन जायदाद न मिल पाए तो, लोग अपने जन्मदाताओं, भाई या किसी अन्य परिवारिक सदस्य का कत्ल करने से गुरेज नहीं करतें हैं,
बालिग होने पर भी यदि कोई अपनी मर्जी से शादी कर ले तो उनकी जान पर बन आती है। पति पत्नी के  रिश्तें में यदि दौनों में से किसी की अन्य व्यक्ति से घनिष्ठता हो जाए तो बात, मारा मारी और हत्या तक पहुंच जाती है। क्या हम अपनी संकीर्ण सोच से अभी तक नहीं उबर पाए है या वाकई जिंदगी इतनी सस्ती हो गई है कि  किसी लड़की द्वारा  पेम का प्रपोजल ठुकराए जाने पर उसकी जान लेने के लिए बंदूक की एक गोली काफी हैं । तुम उसके साथ क्यों चली गई,तुम पार्टी में उस व्यक्ति से बात क्यों कर रहीं थी बस इन्हीं बातों पर पति पत्नी के रिश्तें में एक दूसरे की नींदे हराम हो जाती हैं। यह सब अक्सर टीवी सीरियल व फिल्मों में अधिकतर देखने को मिलता है लेकिन जब हम इस सब से रूबरू होतें हैं तो यकीन आता है कि यह हकीकत आम जिंदगी से किसी भी तरह अलग नहीं है । किसी शादीशुदा इंसान के किसी और से लगाव हो जाने को अवैध संबंध करार देने में किसी को कोई परहेज नहीं होता। क्या आपसी व व्यक्तिगत जीवन में किसी को जगह देने का मतलब अपने निजी रिश्तों से मुंह मोड़ लेना है। क्या जरूरी है इन संबंधों का अंजाम एक दूसरे का खून हो? क्या ऐसा रास्ता नहीं ढूंढा जा सकता कि इन मसलों पर साथ बैठकर बात की जाए तथा इन समस्याओं का समाधान ढूंढा जाए। बात जब पति पत्नी के रिश्ते की ही हो रही है तो जरा सोचिए कि जो शुरूआत में एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खातें हैं वहीं कुछ दिनों बाद उसी रिश्तें में समाज के सामने एक दूसरे के प्रति प्रेम का दिखावा करने की नौबत क्यों आ जाती है।  क्या कोई फायदा है इस प्रकार से रिश्तों को ढोने का, जिन्हें परिवार या समाज को दिखाने के लिए खींचना पड़ रहा हो।
क्यों वे  अपनी झूठी शान के लिए साथ रहने या प्रेम करने का नाटक करते हैं? ऐसे मौकों पर कहां चला जाता है उनका प्यार, जो कहता था कि वे एक-दूसरे की खुशी के लिए जान भी दे देंगे। जब हम शादी करते हैं तो एक-दूसरे का साथ निभाने के साथ-साथ शायद एक-दूसरे को समझनें व  खुश रखने की भी कसम खाते हैं। लेकिन जब बात आती है उन आधारों पर चलने की तो  हम पीछे क्यों हट जाते हैं? शायद आज के समाज में इन बातों पर लोगों को विश्वास नहीं होता है शायद हम यह न जानतें हों कि एक खराब रिश्ता अपनी जिंदगी के साथ अन्य रिश्तों वआने वाली पीढ़ियों में भी दरार पैदा कर देता है। वहीं उन बच्चों पर क्या गुजरती होगी जिनके पिता ने उनके ही सामने उनकी मां का खून कर दिया हो या फिर किसी गहन विवाद के चलते माता पिता ने खुद को मौत के हवाले कर दिया हो। क्या बड़े होने पर उन बच्चों के जेहन में उन हादसों से जुड़े सवाल खड़े नहीं होतें होंगें ।
क्या इन सब में समाज का दोष नहीं है कि अपने आप को खुश रखने के लिए अलग हुई किसी महिला व अकेले रह रहे या फिर एक दूसरे के सम्मान हेतु तलाक होने पर भी हम किसी महिला व पुरूष को गिरी हुई नजरों से देखने लगतें हैं। क्या कोई अपने जीवन को सुख शांति से जीने के लिए रिश्तों रूपी बेड़ियों को नहीं तोड़ सकता। यह कौन सा न्याय है कि केवल रिश्तों की आड़ में आकर हम एक दूसरें के प्रति हिंसा व घृणा का शिकार होते हैं।  पति अपनी पत्नी का किसी और से बात करना या नजदीकी बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि यह उसके मेल इगो के खिलाफ है, एक पत्नी अपने पति का किसी और से अफेयर बर्दाश्त नहीं करती लेकिन वह इसे लेकर कोई बात नहीं करती है क्योंकि उसे डर है कि उसका पति उसे छोड़ देगा ,रिश्तों को तोड़ना सही नहीं है, पर क्या नजदीकी  रिश्ते में किसी का खून करना सही है? शायद जरूरी है कि हमें अपने  रिश्तों को लेकर पारदर्शी होना चाहिए और  सोचना चाहिए ताकि एक दूसरे को समझकर आने वाली जिंदगी में खुश रहा जा सके ।     

खुरापात.........






प्रिय मित्रों इन चित्रों में कुछ  आंखें हैं आपकों यह बताना है कि ये आंखें किन -किन जानवरों प्राणियों  की हैं तो चलिए पहचानिए जरा.............

Wednesday, May 9, 2012

 वो हर कदम पे हमें आजमाते रहे,
 अपना वादा था कि  फिर भी साथ निभाते रहे
 उनका रिवाज था इश्क-ए-दरिया का तैर कर पार करना
 हमारी फितरत थी कि इश्क किए और डूब जाते रहे।

Saturday, May 5, 2012

आप भी हुए हैं इमोशनली चीट........


भावनात्मक धोखेबाजी जिसे हम इमोशनल चीटिंग के रूप में ज्यादा समझते हैं हम में से हर कोई किसी न किसी रूप में इसका शिकार होता है।  इमोशनल चीटिंग के दो पहलू होते हैं एक तो यह कि खुद इमोशनल चीटिंग का शिकार होना और दूसरा किसी अन्य व्यक्ति को भावनात्मक रूप से धोखा देना अथवा इमोशनली चीट करना। इमोशनल चीटिंग दरअसल एक सामान्य विषय है जो हमारे पारिवारिक  व सामाजिक पारिवेश में महत्वपूर्ण दखल रखता है।




क्या है इमोशनल चीटिंग-

हम समय समय पर अपने काम निकलवाने अथवा अपनी बात मनवाने के लिए  किसी झूठ या बहाने को सहारा बनाते हैं, जिसके बल हम अपने काम निकलवाने में सक्षम भी हो जाते हैं, उस समय तो वह सारी बातें सामान्य लगती हैं, मगर सच सामने आने पर हमारे व्यक्तिगत रिश्तों को खोखला बनाकर उन्हें उम्रभर ढोने के लिए मजबूर करती है। दरअसल, इमोशनल चीटिंग का अर्थ हैं अपने फायदे के लिए किसी विश्वासपात्र के मन को ठेस पहुंचाना। जहां 'अफैक्शन विद कंडीशन ' को साधन बनाया जाता है। आपने अक्सर देखा होगा कि हम अपने पेरेंट्स से किसी काम को अपने पारिवारिक व सामाजिक रिश्तों की खुशी के लिए किसी कार्य को कर तो देतें हैं, मगर उसके  पीछे उनके विश्वास में आकर अपना स्वार्थ भी पूरा करते रहते हैं। एक शार्ट टम पीरियड में तो यह सब फलता-फुलता नजर आता हैं, लेकिन जब जमीनी हकीकत सामने आती हैं तो रिश्ते कमजोर बनने लगते हैं और उनमें कड़वाहट भरने लगती हैं।

पीढ़ियों का फासला

अक्सर देखा जाता है, कि बच्चों और माता-पिता के बीच इमोशनल चीटिंग थोड़े-थोड़े समय पर अपना असर दिखाती रहती है। बच्चा कोई दूसरा करियर अपनाना चाहता है लेकिन पेरेंट्स उसे किसी और फील्ड में भेजना चाहते हैं इसी तरह वह अपनी पसंद से विवाह करना चाहे मगर पैरेंट्स कुछ और चाहते हैं। ऐसे में बच्चा अपने मां बाप के खिलाफ भी नहीं जाना चाहता और मन से उसे को अपनान भी नहीं चाहता। ऐसे में पैरेंट्स के निर्णय को अपना तो लेता है, लेकिन वह उन्हें धोखे में रखकर उसके प्रति लापरवाह हो जाते हैं,और जब हकीकत सामने आती है तो खुद का भी नुकसान होता है और विश्वास को भी ठेस पहुंचती है। कई बार मां बाप अपने बच्चे के भले के लिए इमोशनल चीटिंग का सहारा लेते हैं, तो वहीं बच्चे अपने पेरेंट्स से अपनी बात मनवाने के लिए भावनात्मक धोखेबाजी को हथियार बना लेते हैं। यहां न सिर्फ  बच्चों के संदर्भ में यह बातें देखी जाती हैं, बल्कि बड़े होने पर भी कई बार बच्चे अपने बुजुर्ग होते मां-बाप क ो भी इमोशनली चीट करने लगते हैं। जमीन जायदाद के मामलों में इस तरह की बातें ज्यादा सामने आती है। आपने देखा होगा कि कई लोग अपने माता-पिता का खूब ध्यान रखते हैं, उनकी खूब सेवा करते हैं अथवा उन्हें अपने साथ केवल इसलिए रखते हैं कि वह अपनी वसीयत उनके नाम कर दें  अथवा जमीन जायदाद से उन्हें बेदखल न कर दें।  

लव अफेयर-

यदि आप किसी रिलेशनशिप में हैं, तो वहां यदि एक दूसरे के भले के लिए आप एक दूसरे को थोड़ा बहुत चीट कर रहे हैं  यानी हम यदि यह ध्यान रखते हैं कि आप जिसे चीट कर रहें हैं उसे सच बताने की गुंजाइश रहे तो ठीक है। अक्सर हम अपने निजी रिश्तों में एक हक के दायरे में भी अपनी बात मनवा लेते हैं, मगर यदि बात नहीं मानी जाती है, तो व्यक्ति इमोशनल चीटिंग का सहारा लेने लगता है। आप चाहते हैं कि आपका पार्टनर आपके कहे अनुसार चले, वह आपकी बात माने और यदि इसके विपरीत स्थिति उत्पन्न होती है तो हम किसी न किसी रूप में हम अपना स्वार्थ सिद्ध करने के तरीके खोजने लगते हैं, इन्हीं में शामिल होती है इमोशनल चीटिंग, कपिल नीति को बहुत पसंद करता है, लेकिन वह चाहता है कि वह जॉब न करे, जबकि नीति जॉब नहीं छोड़ना चाहती। ऐसे में वह उसे सीधे सीधे  कहता है तो उसे डर है, कि वह नीति को खो न दे, मगर उसने दूसरा रास्ता अपनाया और नीति की जॉब छुड़वाने में कामयाब भी रहा, मगर जब नीति को यह मालूम चला कि उसे धोखा देकर यह सब किया गया, तो उसे बहुत हर्ट फील हुआ और अंतत: दोनों को रिश्ता टूट गया। इससे न सिर्फ  दौनों के विश्वास को ठेस पहुंची बल्कि रिश्तों में दरार बनी । कई बार हम अपन ेपार्टनर की हर बात को ध्यान में रखते हुए भी उसे किसी तरह से धोखे में रखकर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश करते हैं, जो एक तरफ हमारी भावनाओं को संतुष्टि देता है वहीं हमारे निजी और प्राथमिक रिश्तों को खोखला बनाता रहता है ।

मैरिड रिलेशन-


कई बार यह हम छोट छोटे विवादों से बचने के लिए भी अपनों या अपने पार्टनर के प्रत्येक बिहेवियर को झेलते रहते है और अपने आप में घुटते रहते हैं। तब विश्वास और जिम्मेदारी के दोराहे से बचकर एक दूसरा रास्ता निकाल लिया जाता है, जोकि इमोशनल चीटिंग के रूप में सामने आता है। मैरिड लाईफ मे सबसे ज्यादा इमोशनल चीटिंग एक्स्ट्रा मैरिटियल रिलेशनशिप के तौर पर देखने को मिलती है। जिसमें पति व पत्नि में से कोई भी केवल अपनी खुशी को ध्यान में रखते हुए  एक दूसरे को इमोशनल चीट करते हैं जो धीरे धीरे बढ़ जाता  है और विकराल रूप धारण कर लेती हैं यहीं कारण है कि आॅनरकिलिंग आत्महत्या जैसी घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं दरअसल हमारे निजी रिश्ते विश्वास की नींव पर टिके होते हैं जब वहां डिस्आॅनेस्टी क्रिएट होने लगती है तो रिश्तों के महल धराशायी होने लगते हैं।
 आदतें बनती हैं कारण-  किसी भी भाव की अधिकता हमारी आदत बनती है। हर व्यक्ति में  कोई न कोई भाव प्रमुखता से होता ही है। कोई गुस्सेबाज होता है, कोई बहुत भावुक और जज्बाती होता है, कोई ईष्यावान होता है अथवा शक्कीमिजाज या सनकी भी हो सकता है। हम किसी भी आदत के शिकार जब होते हैं जब हम उन्हें अपनी दिनचर्या और जिंदगी में शामिल करने लगते हैं इमोशनली चीट करने या फिर स्वयं इमोशनल चीटिंग का शिकार होने के पीछे हमारा स्वयं का भी हाथ होता है। क्योंकि हम अपने आपसी रिश्तों में एक खुला व्यवहार बनाकर नहीं चलते और अपने अंदर शक व असुरक्षा की भावना को पनपने देते हैं। हम प्यार की आड़ में अपनी शर्ते मनवाने लगते हैं। हम अपनी बात को सीधे न कहकर इस बात की फि क्र करते हैं कि  इससे कहीं रिश्तों पर फ र्क न पड़े। और होता वही है, हम एक छोटा सुराख न बनाने के चक्कर में पूरी खाई बना बैठते हैं जिसे भरना बेहद मुश्किल होता है नतीजतन अलगाव, तलाक, ब्रेकअप्स, बेदखली जैसे मामल सामने आते हैं ।

कैसे करें पहचान-

जब कोई छोटा बच्चा चोरी से कुछ काम कर दे और उससे यह पूछा जाए कि यह तुमने किया तो यही कहता है कि मैंने यह नहीं किया। इसी तरह यदि किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए  आर यू चीटिंग आॅन मी तो वह कभी भी यह नहीं कहेगा कि यस आई एम, मगर इंसान के बहारी हाव भाव उसकी बॉडी लैंग्वेज उसके मनोभावों को जानने के लिए क ाफी होती है।
अक्सर इमोशनल चीटिंग करने वाला व्यक्ति सामने वाले से आईकांटेक्ट बनाने से बचने लगता है। इससे अलग कई बार वह आपके प्रति ज्यादा केयरिंग भी दिख सकता है। व्यक्ति से यदि कोई सवाल पूछा जाए तो वह बिना कहे ही डिटेल में उसका उत्तर देने की कोशिश करता है। यदि आप उनके निजी दिनचर्या के बारे में बात करेंगे तो वह आपका ध्यान बांटने की कोशिश करेगा। वह क्या, कब, कौन आदि शब्दों को प्रयोग अधिक करने लगता है। अक्सर बातों को छिपाते वक्त व्यक्ति अपने चेहरे कान नाक आदि को बार बार छूने लगता है। उसकी आदतों  व वर्किंग शेड््यूल,ड्रेसिंग सेंस में अचानक कुछ बदलाव होने लगता है। ईमेल आईडी व मोबाइल आदि के पासवर्ड, नंबर आदि चेंज करना व आम बोलचाल की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बोलने लगता है यानी आप इन बदलावों पर गौर करेंगे तो आप यह जान सकते हैं कि सामने वाला कहीं आपको इमोशनली चीट तो नहीं कर रहा है।

हाउ टु कम ओवर-

 किसी भी स्थिति से उबरने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है। इसलिए अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए अपनी कमियों को सुधारें।
 पूरी पिक्चर को ध्यान से देखें और निर्णय लें कि आदतों में बदलाव आने के क्या कारण हो सकते हैं।
आपके भीतर जो चीजें कॉमन हैं उन पर डिस्कशन करें।
प्यार को शर्तों में न बांधे बल्कि फर्ज अदा करें और यह ध्यान रखें कि सभी के अपने अधिकार इस्तेमाल करने की स्वतंत्रता है ।
छोटी छोटी आदतों में बदलाव को शक के नजरिए से न देखें, बल्कि यह विचार करें कि इन बदलावों के क्या कारण हैं।
अपनों से अधिक अपेक्षाएं न रखें, तथा छोटी छोटी बातों पर शर्त न रखें।
गुजरे वक्त की तुलना आज के वक्त से न करें। हर छोटी बात पर विवाद व बहस न करें, क्योंकि छोटे विवाद ही कम्युनिकेशन गैप का कारण बनते हैं।
एक दूसरे को चैलेंज न करें। समय समय पर अपने विचार बातें अपनों के साथ शेयर करते रहें।
 ''अक्सर हम अपने रिश्तों में अपनी बात मनवाने के लिए कोई शर्त रख देते हैं और जब वह शर्त पूरी नहीं होती तो इमोशनल चीटिंग का सहारा लिया जाता है। जिसमें हमारा स्वयं का स्वार्थ निहित होता है। हम किसी को भावनात्मक रूप से चोट जब पहुंचाते हैं जब हमारे भीतर लालच की भावना आ जाती है। जिसे पूरा करने के लिए हम अपनों के साथ  चापलूसी करने लगते हैं या ज्यादा केयरिंग हो जाते हैं और प्यार का बहारी दिखावा करते हैं। इसका एहसास शार्ट टर्म में नही होता और हम एक लंबी डिस्आॅनेस्टी क्रिएट कर लेते हैं और अति होने पर रिश्तों से मुंह मोड़ लेने पर मजबूर करते हैं।यदि आपसी समझ और अंर्डस्टेंडिंग के साथ शुरूआत में ही दिक्कतों को खत्म कर देना चाहिए।'' 
                                                                              मनोचिकित्सक  डा0 पूनम देवदत्त
सालों बाद जब मिला तो गले लग कर बहुत रोया ,
जाते हुए जिसने कहा था कि तुम जैसे हजार मिलेंगे।



 

अंकों का खौफ........786,13,11,3........







 जिस दिन से मानव ने अंकों के विषय में अध्ययन शुरू किया अथवा उनका अपने दैनिक जीवन में महत्व को समझा, तभी से कुछ अंको को उनके निश्चित चरित्र के लिए पहचाना जाने लगा। कुछ अंक भाग्यशाली अंको के रूप में पहचाने गए, जबकि कुछ अंको का प्रयोग भी नकारात्मक दृष्टि से किया जाने लगा। ऐसा न सिर्फ हिंद धर्म में बल्कि पूरे वैश्विक अंकशास्त्र में दर्शित होता है। चीन जापान, अफ्रीका, भारत आदि सभी देशों में समान रूप से अंको पर अध्ययन किए गए और इन्हें अलग अलग कारणों के लिए शुभ और अशुभ अंक माना गया। चलिए क्यों न आज देश ओ दुनिया के इन्हीं कुछ शुभ व अशुभ अंकों पर चर्चा करें।


वैश्विक अंकशास्त्रों केअनुसार अंको के महत्व को अलग अलग मान्यताओं के तौर पर देखा जाता है यहीं नहीं इन सभी अंकों के अतिरिक्त भी  विभिन्न देशों में सत्रह, बाईस, छब्बीस, उनसठ, आदि अंकों को भी अशुभ करार दिया गया है। हिंदु संस्कृति के अनुसार इन अंको को अशुभ माना जाता है जिनमें कोई शुभ कार्य, कोई निर्णय, गृह प्रवेश, विवाह या अन्य संस्कार अथवा यात्रा आदि करना अशुभ माना जाता है।
अंक सात- अधिकतर अंक सात को एक भाग्यशाली अंक के रूप में जाना जाता है मगर क्यों, सभी धर्मों में अंक सात को जड़ अंक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है, कि ईश्वर ने संसार की रचना सात दिनों के भीतर की थी । करीब 1800 ईसा पूर्व के इतिहास में भी अंक सात को वर्णन मिलता है। जिसमें सौर मण्डल में सात ग्रहों का जिक्र किया गया है।
अंक तीन- अंक तीन को भारतीय संस्कृति में अनलकी नंबर के तौर पर देखा जाता है ऐसा माना जाता है कि  भगवान शिव की तीसरे नेत्र खुलने पर सृष्टि का नाश हो गया था। इसके विपरीत चीनी सभ्यता में इस अंक को आदर्श नंबर माना जाता है।
अंक चार- यह अंक बैड लक के तौर पर देखा जाता है। जापानी संस्कृति में इस अंक का उच्चारण अंग्रेजी के डैथ शब्द के समान किया जाता है,इसलिए जापान,कोरिया और चीन में इस अंक को मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। ऐशिया के कुछ हिस्सों में क ई इमारतों में फोर्थ फ्लोर नहीं होता है। इसके अलावा अधिकतर अपशब्दों को फोर लैटर वर्डस के तौर पर परिभाषित किया जाता है।
अंक पांच- अंक पांच को एक गुड लक नंबर के रूप में देखा जाता है।  ऐसा माना जाता है कि यह नंबर पांच तत्वों पृथ्वी अग्नि जल वायु आकाश को प्रदर्शित करता हैं और इन पांच तत्वों ही संसार की सृष्टि हुई है।
666- सिक्स हंडरेड सिक्स्टी सिक्स एक रोचक नंबर के रूप में देखा जाता है। यह कहीं पर लकी और कहीं पर अनलकी नंबर के रूप में प्रयोग किया जाता है ।  एशियन कल्चर में 666 क  थिंग्स गोर्इंग स्मूदली के रूप में उच्चारित किया जाता है। कई स्थानों पर शॉपकीपर अपनी दुकानों के आगे इस अंक को एक गुड लक चार्म के रूप में भी लटका कर रखते हैं।

अंक तेरह-  दुनिया भर मे अंक तेरह को लेकर कई प्रकार के मिथक और भ्रम फैले हुए हैं 13 से जुड़ी हर चीज को लोग पूरी तरह से अशुभ मानते हैं। तेरह तारीख को यदि शुक्रवार हो तो उसे और भी बेकार माना जाता है, इस दिन को फ्राईडे आॅन थर्टीन के रूप में देखा जाता है,इस दिन लोग कोई नया काम शुरू करने व कोई बड़ा फैसला लेने से कतराते हैं। केवल दो कारणों से अंक तेरह को बुरा माना जाता है एक तो यह कि ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाने से पहले उनके आखिरी भोजन में कुल तेरह लोग शामिल हुए थे, जिसके बाद कुछ पुराने चर्चों ने इसे मनहूस करार देकर वर्जित मान लिया। दूसरा प्रमुख कारण है  अंक तेरह का प्रतीक, यह एक नर कंकाल है जिसके हाथ में हसिया एक धारदार हथियार है और वह किसानों की फसलों को काटकर उनका नुकसान कर रहा है, इसलिए इसे एक बुरा संकेत माना गया है, अंक तेरह को लेकर लोगों में एक अनजान सा भय रहता है। राजस्थानी में एक कहावत है कि तीन तेरह होना यानी परेशान होना या फिर किसी को नुकसान देना।  अधिकांश लोग आज भी तीन तेरह के भय से अंक तेरह को पश्चिमी सभ्यता में सामान्य रूप से सभी स्थानों पर अनलकी नंबर घोषित किया है। चौदहवीं शताब्दी के शुरूआत से  अंक तेरह को एक बैडलक नंबर के तहर जाना गया।
अंक ग्यारह- अंक ग्यारह को भी हिंदु संस्कृति में एक शुभ अंक का दर्जा दिया जाता है। इस अंक को सृष्टि का शुरूआती अंक माना जाता है।

अंक उन्नतीस- अंक उन्नतीस को भी अंक तेरह की ही तरह सऊदी अरब में मनहूस अंक का दर्जा दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि सऊदी अरब में कोई व्यक्ति इस नंबर को नहीं रखना चाहता और न ही वहां किसी इमारत में इस नंबर का कोईफ्लोर होता है और होटल आदि के कमरों में भी उन्नतीस के स्थान पर तीस और अठाईस अंक को रखा जाता है। यहां तक कि यहां के लोग स्वयं उन्नतीस अंक लेने से परहेज करते हैं।
अंक सात सौ छयासी- याद कीजिए फिल्म दीवार को जिसमें अमिताभ बच्चन को गोली लगती है और उन्हे कुछ नहीं होता बल्कि गोली उनके बिल्ला नंबर 786 से टकराकर बेकार हो जाती है, फिर फिल्म कुली में भी वही चमत्कारी बिल्ला लगाते हैं, वह जबरदस्त हमले मे घायल होते हें मगर जीत जिंदगी की होती है।आज वह और उनका परिवार वास्तविक जीवन में भी इस अंक को शुभ मानते हैं। दरअसल यह एक अरबी भाषा का शब्द है अबजद, जिसका मतलब होता है विद्या सीखने की पहली स्थिति यानी अलिफ बे ते, एबीसीडी अथवा कखगघ आदि सीखना। जो दूसरा अर्थ निकलता है वह एक प्रकार की विद्या है यह किसी भी शब्द के नंबर निकालने की विद्या है। इसमें किसी  भी शब्द में जिन अक्षरों का प्रयो ग होता है उनको गिनकर जोड़कर जो योग निकलता है वही उस शब्द के अंक होते हैं। इसी हिसाब में अबजद से बिस्मिल्लाह हिर रहमानिर रहीम जिसके अर्थ होते हैं शुरू करता हुं उस अल्लाह के नाम से जो बेहद रहम वाला है यदि आप पूरे वाक्य के अंक अबजद से निकालेंगें तो 786 अंक मिलेगा।  यहीं नहीं यदि हरे रामा, हरे कृष्णा के जोड़ को योग भी 786 ही निकलेगा। इस तरह यह हिंदु मुस्लिम एकता का प्रतीक भी है ।

बोर होने भी दीजिए..............

 अभी कल ही की बात है कि हम बैठे-बैठे बोर हो गए, जरा बहुत नहीं फुलटु तरीके से। कैसे हुए? चलिए आपको यह भी बता देते हैं। जैसे ही हमें लगा कि हम थोड़ी देर में बोर होने वाले हैं, तो हम पहले बिना कुछ किए ही बैठे रहे, फिर सोचते-सोचते पूरे ब्रहमाण्ड की सुर नगरी का चक्कर लगाया, फिर अपनी किस्मत को कोसा तब जाकर थोड़े अनमने से हुए। मतलब थोड़ी उदासी पल्ले पड़ी और फाईनली  बोर होकर ही माने।
कुछ देर बाद जब बोर होने का दूसरे पहलु का आनंद उठाना चाहा , तो एक शुभचिंतक ने आकर तपाक से अपना सवाल ठोक दिया हमारे सिर पर। क्या था सवाल? अजी सवाल था बोर हो रहे हो ? उन्होनें कहा तो धीरे से ही था, मगर आजकल कान  भी तो कम तेज नहीं होते लोगों के, सो आ गए सब के सब  एक सवाल का उत्तर दिया नहीं था  कि दुसरा फिर थोप दिया गया।
बोर हो रहे हो तो फिर हंस क्यों रहे हो...? लो जी उन्हें मेरे बोर होने से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि मेरी  मरी सी मुस्कुराहट से एतराज था।  दोस्ती का लिहाज कर गए होंगे वरना सीधा यही कहना चाह रहे होंगे कि बोर होते समय मुस्कुराते हुए शर्म नहीं आती।
 इतने में एक और मित्र ने तान लगाई बोर हो रहे हो..... हा, हा, हा,हा.!
हमने कहा कि लो अब हम खुद थोड़े ही चाह रहे हैं बोर होना, अब स्थिति ही ऐसी है। इतना कहा ही था कि सलाह देने के लिए सब के सब जान को आ गए। एक ने कहा कि इस वेबसाइट को क्लिक करो सारी बोरियत दूर हो जाएगी, शायद उन्हें पता नहीं होगा कि उससे हमारी छोटी बोरियत दूर होकर बड़ी बोरियत जरूर मिल जाएगी। कुछ बोले अखबार पढलो दुनिया की खैर खबर लो। एक बोले योगा कर लो..,अब उन्हें क्या मालूम कि 90 डिग्री से ज्यादा मुड़ते ही हमें अपनी रीढ़ की हड्डी टूटने का डर रहता है। खैर, एक दो ने चाय पी लेने की सलाह दी उनकी सलाह थोड़ी ठीक लगी, लेकिन खर्चे क डर से बोरियत को ही तरजीह दी, लेकिन मतलब यही था कि वह हमसे बोरियत को छीनना चाहते थे। वो तो बस हमने अपनी इच्छाशक्ति को कमजोर नहीं होने दिया वरना इतनी मेहनत से पाली पोसी बोरियत का खून हो जाता मेरे हाथों। वह सभी तो चले जाते, मगर हम बोरियत के कत्ल के इल्जाम में खुद को बरी न कर पाते। मेरा मानना है कि एक पूर्ण रूपेण दुखी जीवन जीने वाले व्यक्ति को बोर होते रहना चाहिए, यानी घर से बाहर निकलते ही बोरियत को  बिंदास तरीके से सिर पर ओढ लेना चाहिए। और दोस्तों की बिल्कुल मत सुनिए, वरना बोर नहीं होने देंगे आपको। अब वही तो हम भी कर रहे थे आज हमे एहसास हो रहा था कि पहली बार हम पूरा दिन ठीक से बोर हो पाए। थोड़ी देर बाद हमारे किसी प्रियजन का फोन आ गया हमने बोर होते-होते ही फोन उठाने वाले शुभ कार्य में देर नहीं की। उनकी कोई समस्या थी जो हल नहीं हो रही थी, हमने भी मरी सी आवाज में तरीके सुझाए और पूछते रहे कि हल हुआ या नहीं, मगर वह समझ नहीं पाए। थोड़ी देर बाद वह बोले कि वह बोर हो गए...।  हमने कहा कि आप बोरियत में तीन पांच करवाओगे तो यही होगा। बोरियत में कैलकुलेशन गड़बड़ा ही जाता है। हमने क हा ठीक है अब तुम बोर हो लो, हम जरा एक काम से शहर तक घूम आएं। अब निकलते ही दो -चार कदम चलते ही देखा कि एकदम चकाचक ट्रेफिक है। रोड के एक कोने से दूसरे कोने तक बेफिक्र फैला हुआ है। अब किसलिए फैला है? निठल्ला है न। कोई काम धाम है नही इसे, रोज सुबह आकर पूरे शहर में मकड़जाल की तरह फैल जाता है अब ऐसे ही थोड़े ही मेहनत लगती है जाम को इस तरह फैलने मे, सबसे पहले लापरवाह होना पड़ता है फिर जल्दबाज और  बिंदास बनना पड़ता हैं। तब जाकर कांफिडेंस के साथ फैलता है।  खैर किसी तरह हम अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने सफल हुए मगर वहां जिन महाशय से मिलना था उनके आने में थोड़ा समय था। सो हम हॉल में पड़ी कु र्सियों पर टिक गए वहां एक युवक नीचे मुंह करे बेंच पर बैठा अपने बराबर में बैठी युवती की बातों को सुन रहा था। मेरी नजर उन पर गई उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि दौनों कुछ ही दिन पहले मिले होंगे फिर मुझे लगा कि वह युवक भी बोर हो रहा था, सो मैंने उनकी बातों पर गौर किया। युवती ने कहा कि  उसके लखनऊ वाले मामा के यहां एक पार्टी है और वह उसे वहां बुलाना चाहती है मगर युवक किसी जरूरी मीटिंग का वास्ता देते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था कोई भी समझने को तैयार नहीं था दौनों एक दूसरे पर खीझ रहे थे। अंतत: वह युवक वहां से उठकर चला गया उसके पीछे वह युवती भी वहां से चली गई मतलब साफ था वह उस युवक को जबरदस्ती बोर करने पर तुली हुई थी, जबकि वह बोर नहीं होना चाहता था और एक हम थे जो खुद बोर होने के लिए मेहनत कर रहे थे।
वह दौनों तो चले गए और हम फिर से इंतजारी महाशय के इंतजार में लंबी सांस लेते हुए अकेले बैठकर बोर होने लगे ।अब आपको ही देख लीजिए, असर आ ही गया न हमारी बोरियत का आप पर भी, लेकिन हम अकेले ही बोर होना चाहते हैं, कहीं आप ने हमारी बोरियत बांट ली तो हमारी तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। इसलिए आप कुछ मत सोचिए बेफिक्र रहिए हमे ही बोर होने दीजिए।