Wednesday, February 5, 2020

7 रुपये महीना पर ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए थे मंगल पांडे, जानें उनसे जुड़ी 8 खास बातें


जब भी जंग-ए-आजादी का जिक्र होता है तो आजादी का बिगुल बजाने वाले सैनिक मंगल पांडे का नाम गर्व से लिया जाता है।  सही मायनों में देखा जाए तो आजादी के लिए संघर्ष की शुरुआत तो 1857 में ही हो चुकी थी। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे और मंगल पांडे 1857 की क्रांति के नायकों में से हैं। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें गद्दार और विद्रोही की संज्ञा दी लेकिन वह हर भारतीय के महानायक हैं। मंगल पांडे ने ऐसे विद्रोह को जन्म दिया जो जल्द ही एक संग्राम में बदल गया।

इस विद्रोह के लिए जाने जाते हैं मंगल पांडे


जी हां, वह दिन था 28 मार्च, जब मंगल पांडे ने पहली बार अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी। इस दिन को इतिहास में सैनिक विद्रोह के नाम से जाना जाता है। दरअसल, इस दिन ब्रिटिश आर्मी के भारतीय जवान मंगल पांडे ने बैरकपुर के परेड ग्राउंड में ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश अफसर पर गोली चला दी थी। हालांकि वह बच गया लेकिन मंगल पांडे ने अन्य भारतीय सिपाहियों को भी अंग्रेजों पर हमला करने के लिए प्रेरित किया।  

कौन थे मंगल पांडे ?


19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक छोटे से गांव में एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में मंगल पांडे का जन्म हुआ। उनका पूरा नाम था मंगल दिवाकर पांडे था। उनके पिता का नाम था दिवाकर पांडे। उनके दो भाई और एक बहन थी मंगल पांडे के लिए धर्म से बढ़कर कुछ नहीं था। वह सन  1949 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में तैनात हुए। वह 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री बंगाल के बैरकपुर छावनी में छठी कंपनी के 1446 नम्बर सिपाही के रूप में तैनात थे।

सात रुपये महीना पर सेना में हुए भर्ती


एक बार मंगल पांडे का किसी काम से अकबरपुर आना हुआ। उसी दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना बनारस से लखनऊ जा रही थी। कौतुहलवश मंगल पांडे भी सेना का मार्च देखने के लिए सड़क पर खड़े हो गए। एक अंग्रेज सैन्य अधिकारी ने उनकी मजबूत कद-काठी देखकर उन्हें सेना में भर्ती हो जाने का प्रस्ताव दिया। 22 वर्षीय मंगल पांडे  केवल सात रुपये महीना पर ब्रिटिश सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए।

 कैसे आए सुर्ख़ियों में ?


1850 के मध्य में मंगल पांडे को बैरकपुर (कलकत्ता) की रक्षा टुकड़ी में तैनात किया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों ने पहले ही भारतीयों के मन में नफरत भर दी थी। इस बात को और भी पुख्ता कर दिया जब अंग्रेजों द्वारा हिन्दू व मुसलमानों के बीच हिंदी और उर्दू में लिखी बाइबिल मुफ्त में बांटी जानें लगी और जब कंपनी की सेना में 'एनफील्ड पी-53' बन्दूक में नए कारतूसों का इस्तेमाल शुरू हुआ तो मामला और बिगड़ गया। सिपाहियों को जो कारतूस उपयोग करने के लिए दिए गए उन्हें मुंह से खोलना पड़ता था और ये कारतूस गाय और सुअर की चर्बी से बने थे।  मंगल पांडे ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध उठ खड़े हुए।   

अंग्रेज सैन्य अधिकारियों पर कर डाला हमला 


मंगल पांडे अंग्रेजों को इसके लिए सबक सिखाना चाहते थे। 29 मार्च को परेड ग्राउंड में सिपाहियों को जब नए कारतूस सौंपे गए तो मंगल पांडे ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उनके हथियार छीन लिए जाने तथा वर्दी उतार लेने का आदेश दिया गया। मंगल पांडे ने अंग्रेजों के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। अंग्रेजी सेना के दो अधिकारियों लेफ्टिनेंट बोग और ह्युसन पर बन्दूक से हमला कर दिया। लेकिन किसी तरह वे बच गए। मंगल पांडे ने जब पहली बार बगावत की तो अचानक ही उत्तर भारत में विद्रोह की लहर दौड़ पड़ी और कई भारतीयों ने अंग्रेजों की नौकरी छोड़ दी।

ऐसे मिली थी चर्बी वाले कारतूस की खबर


कहा जाता है कि 9 मार्च सन 1857 को दोपहर के वक्त मंगल पांडे और एक कमजोर जाति के व्यक्ति के बीच किसी बात पर कहासुनी हो गई। उस व्यक्ति ने मंगल पांडे को ताना मारा कि तुम्हें बहुत गुमान हैं अपने ब्राहम्ण होने का लेकिन तब कैसे धर्म बचाओगे जब अंग्रेज आपको गाय और सूअर की चर्बी से बने कारतूस मुहं से नोंचने को देंगे दरअसल उस व्यक्ति का एक रिश्तेदार वहां तैनात था जहां अंग्रेजी फौज के लिए कारतूस बनाये जाते थे। इसलिए मंगल पांडे को उसकी बात पर विश्वास हो गया। उन्होंने अंग्रेजों को सबक सिखाने की ठान ली।

समय से पहले दे दी गई फांसी 


लेफ्टिनेंट बोग और ह्युसन पर हमले के बाद  मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। मंगल पांडे को अपने सीनियर अफसरों पर हमला करने और सैनिकों में विद्रोह भड़काने के जुर्म में फांसी की सजा सुना दी गई। यह पहली बार था जब किसी भारतीय ने किसी अंग्रेज पर हमला किया हो। 18 अप्रैल को उन्हें फांसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेजो ने विद्रोह भड़क जाने के डर से  7 अप्रैल को फांसी देने का निर्णय लिया। मंगल पांडे की पूरी पलटन के सैनिकों को सस्पैंड कर दिया गया।

और यह भी ...


भारत सरकार ने 5 अक्टूबर 19 48 को मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था, जिस स्थान पर मंगल पांडे को फांसी दी गई। वहां शहीद मंगल पांडे उद्यान बना दिया गया। यही नहीं, जेडी स्मिथ ने अपने पहले उपन्यास 'व्हाइट टीथ' में भी मंगल पांडे का जिक्र किया है और मंगल पांडे के जीवन-चरित्र पर आमिर खान द्वारा अभिनीत फिल्म भी बनाई गई है।
 फोटो : google 

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