Monday, July 14, 2014

कुछ तो कहो.............

रह गई किस चीज की मुझमें कमी कुछ तो कहो
किस तरह होगी मुकम्मल जिंदगी कुछ तो कहो
आज तो जलता हुआ था धूप में मौसम मगर,
फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो
आसमां सुनसान है क्यों, गुम खड़े हैं क्यों दरख्त,
शहर क्यों उजड़ा हुआ है, तीरगी कुछ तो कहो
घंटियों की क्यों सदा आती नहीं मंदिर से अब,
दूर क्यों बजती नहीं है बांसुरी, कुछ तो कहो
इस अंधेरे के सिवा दिखता नहीं क्यों और कुछ
हो गई सूरज को क्या नाराज़गी कुछ तो कहो
दूर है मुझसे तबस्सुम, गम ही गम नज़दीक है
किस तरह मरकर कटेगी जिंदगी कुछ तो कहो
गर्दिशों की रहगुजर में शाम क्यों आती नहीं
है अभी कितना सफर वीरानगी कुछ तो कहो
तक रहा था देर तक क्यों आईना डिम्पल मुझे
लग रही हूं आज क्या मैं अजनबी कुछ तो कहो

11 comments:

  1. कमाल की ग़ज़ल है.. तख़य्युल बेहतरीन और बहर ऐसी के जैसे आबशार हो!! कम्माल! मेरे बच्चों की याद आ गयी.. स्वप्निल और दिलीप!! जीते रहिये!!

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  2. है अभी कितना सफर वीरानगी कुछ तो कहो.
    वाह बेहतरीन ..... और भी अच्छी लिखने के लिए शुभकामनाए

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  3. Lajawaab.....kuch kahne ko nhi choda aapne sach... Shubhkamnaayein

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  4. सामाजिक परिवेश और परिस्थितियों से मन में उभरने वाले विचारों को प्रभावशाली शब्दों का रूप देना ही साहित्यिक कला है। आपकी प्रस्तुत रचना व अन्य लेखन में इसकी झलक साफ दिखाई देती है। बधाई
    शाहिद मिर्जा शाहिद

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  5. आज तो जलता हुआ था धूप में मौसम मगर,
    फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो ..
    खूबसूरत आशआर है इस लाजवाब ग़ज़ल का ... बहुत उम्दा ...

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  6. फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो...
    हो गई सूरज को क्या नाराज़गी कुछ तो कहो...

    उम्दा, बहुत उम्दा.

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