Monday, March 19, 2018

Army Day : हाथ घायल हुए तो पैरों से किया फायर, मेजर शैतान सिंह से जुड़ी 9 खास बातें

मेजर शैतान सिंह भारत मां का एक ऐसा लाल जिसने मरते दम तक देश के लिए मर मिटने की कसमें खाई थीं और ऐसा किया भी। 1962 में भारत-चीन युद्ध में  मेजर शैतान सिंह के साथ मात्र कुछ सैनिक बचे, लेकिन वे बुरी तरह घायल थे। इस दौरान मेजर के दोनों हाथ घायल हो चुके थे। सैनिकों ने उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाने को कहा लेकिन शैतान सिंह ने सैनिकों से कहा कि उनके पैरों के साथ लाइट मशीनगन बांध दी जाए। सैनिकों ने ऐसा ही किया और मेजर अपने पैरों से फायरिंग करते हुए शहीद हो गए। सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित मेजर शैतान सिंह हमेशा मदर इंडिया के सबसे जांबाज सपूत के रूप में याद किए जाते हैं। इस जांबाज मेजर से जुड़े कुछ ऐसी ही बातें हम आपको बता रहे हैं :-

शैतान सिंह  ने 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान बहादुरी से किया सेना का नेतृत्व 


1924 में एक दिसंबर को जोधपुर (राजस्थान) में जन्मे सिंह को वीरता और बहादुरी विरासत में मिली। उनका पूरा नाम मेजर शैतान सिंह भाटी था। उनके पिता हेमसिंह भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल रहे थे। शैतान सिंह ने 1 अगस्त 1949 को भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं बटालियन में कदम रखा था। 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान बेहद बहादुरी से सेना का नेतृत्व किया।

भारत की सबसे पुरानी कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन का किया नेतृत्व


ये उनका बहादुर व्यक्तित्व ही था कि उन्हें सिनो-इंडो वार के दौरान 13वीं बटालियन का मेजर बनाया गया। तकरीबन दो सौ साल की सेवा अवधि के साथ कुमाऊं रेजिमेंट भारत की सबसे पुरानी रेजिमेंट्स में से एक है। मेजर शैतान सिंह बटालियन के उन महान योद्धाओं में गिने जाते हैं जिनकी वीरता पर पूरे राष्ट्र को गर्व है।

दुनिया के सबसे कठिन युद्धक्षेत्र 'रेजांग ला' पर जमाया कब्जा


भारत-चीन के इस संघर्ष के दौरान मेजर शैतान सिंह ने 'रेजांग ला' में युद्धक्षेत्र में अपनी बटालियन का नेतृत्व किया। उस समय ये बटालियन चुशूल सेक्टर में तैनात थी, जो चीन सीमा से पंद्रह मील की दूरी पर दुनिया का सबसे कठिन युद्धक्षेत्र माना जाता है। रेजांग ला समुद्र तल से 5,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां सांस लेना भी जवानों के लिए एक कड़ी चुनौती होता है। अभी दिन निकला भी नहीं था कि अंधेरे और बर्फ के बीच जवानों ने देखा कि बहुत सी रोशनियां उनकी और बढ़ रही हैं जवानों को लगा कि चीनी सैनिक हमला करने के लिए बढ़ रहे हैं निर्देश मिलते ही अपनी ओर बढ़ती रोशनियों पर बंदूकें चला दीं लेकिन मेजर शैतान सिंह को यह समझते देर नहीं लगी कि उनके सैनिक जिन्हें दुश्मन समझ कर मार रहे हैं वह चीन की चाल थी। अंधेरे और खराब मौसम का फायदा उठाते हुए चीनी सेना ने याक के गले में लालटेन बांध भारतीय टुकड़ियों की तरफ भेज दिया ताकि भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म हो जाए। हथियार काम होने पर भी मेजर ने हार नहीं मानी और पीछे हटने से इनकार कर दिया।

चीनी सेना के पास सभी आधुनिक शस्त्र तथा भरपूर गोला-बारूद था


इससे पहले बटालियन को पर्वतीय क्षेत्र में युद्ध का अनुभव नहीं था और उन्हें सबसे ज्यादा शीत प्रभावित क्षेत्र में लड़ना था। उनका सामना चीन की सेना सिनकियांग से था, जो ऐसे युद्ध क्षेत्र में लड़ने की अभ्यस्त थी। चीन की सेना के पास सभी आधुनिक शस्त्र तथा भरपूर गोला-बारूद था, जबकि भारतीय सैनिकों के पास एक बार में एक गोली की मार करने वाली राइफलें थीं, मौसम की मार और हथियारों की इस स्थिति और दुश्मन सेना की ओर से भारी बमबारी के बावजूद 13 कुमाऊं की 'सी कम्पनी के मेजर शैतान सिंह ने हार नहीं मानी और गोलाबारी का डटकर सामना करते हुए दुश्मनों से जूझते रहे।

चीनी सैनिकों के खिलाफ मजबूत प्रदर्शन


18 नवंबर 1962 की सुबह सबसे ज्यादा खूनी संघर्ष वाली सुबह में से एक थी, क्योंकि चीनी सेना ने भारतीय सैनिकों को फंसा लिया था। हालांकि, मेजर शैतान सिंह की अगुवाई वाले साहसी सैनिकों ने आत्मसमर्पण करने और राइफल्स, हल्की मशीनगनों, ग्रेनेड और मोर्टारों के खिलाफ पीछे हटने से इनकार कर दिया। चीनी सेना ने दोनों छोरों पर हमला किया, मेजर ने भारत के बहादुर सैनिकों को अपने उत्तम प्रोत्साहन और दिशा निर्देशों के साथ दुश्मन को मारने का निर्देश दिया। भारतीय सेना इस निर्देश पर चीनी सेना पर टूट पड़ी।

जब खुद को सुरक्षित जगह पर ले जाने से कर दिया इंकार !


'जब कोई काम हमारे लिए मुश्किल हो जाता है, तो मुश्किल ही काम हो जाता है' ये एक ऐसा वाक्यांश है, जो मेजर शैतान सिंह के साहसी नेतृत्व को सही ढंग से व्यक्त करता है। मेजर शैतान सिंह खुद कंपनी की पांचों प्लाटून पर पहुंचकर अपने जवानों की हौसला-अफजाई कर रहे थे। इस बीच कुमाऊं कंपनी के लीडर मेजर शैतान सिंह गोलियां लगने से बुरी तरह जख्मी हो गए। दो जवान जब उन्हें उठाकर सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे तो चीनी सैनिकों ने देख लिया। शैतान सिंह अपने जवानों की जान किसी भी कीमत पर जोखिम में नहीं डाल सकते थे। उन्होनें खुद को सुरक्षित स्थान पर ले जाने से साफ मना कर दिया। उन्होंने अपने  सैनिकों से अपने पैरों में लाईट मशीनगन बांधने को कहा और पैरों से फायर करते हुए शहीद हो गए।

निडरता से आखिरी सांस तक करते रहे देश सेवा 


जख्मी हालत में भी मेजर शैतान सिंह अपने जवानों के बीच ही बने रहे। वहीं, पर अपनी बंदूक को हाथ में लिए उनकी मौत हो गई।18 नवम्बर को 123 में से 109 जवान जिनमें कंपनी कमांडर मेजर शैतान सिंह भी शामिल थे देश की रक्षा करते मौत को गले लगा चुके थे। लेकिन इसका नतीजा ये हुआ कि भारतीय सैनिकों की गोलियां तक खत्म हो गईं। बावजूद इसके बचे हुए जवानों ने चीन के सामने घुटने नहीं टेके।

देश सेवा करते हुए मरना चाहते थे मेजर और उन्होंने ऐसा ही किया


भारतीय बहादुर सैनिक अपनी मातृभूमि को दुश्मनों से बचाने के लिए अपनी जिंदगी की भी परवाह नहीं करते, मेजर शैतान सिंह उनमें से एक थे। भारतीय सेना में हर सैनिक के समान, मेजर ने भी अपनी अंतिम सांस तक अपने राष्ट्र की सेवा करने का सपना देखा था। अपने हाथों में हथियारों के साथ अंतिम सांस ली और अपने सपने को वास्तविकता में बदला। उस बर्फ से ढ़के रण क्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर तीन महीने बाद प्राप्त हुआ था।

सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पदक परम वीर चक्र से सम्मानित


109 कुमाऊंनी शहीदों में मेजर शैतान सिंह के मृत शरीर को युद्धक्षेत्र में उसी जगह से बरामद किया गया, जहां वह अपने साथियों के साथ तैनात थे। उनका जोधपुर में पूर्ण सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। मेजर को बाद में अपने असाधारण नेतृत्व और देशभक्ति के लिए सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। परमवीर चक्र के साथ दिए गए प्रशस्ति पत्र में ये भी जिक्र किया गया कि कैसे मेजर ने एक दुर्गम-क्षेत्र में लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर दुश्मन के भारी हमलों के खिलाफ रेजिमेंट की कमान संभाली। उस मोर्चे पर उन्होंने अदम्य साहस, कुशल नेतृत्व क्षमता तथा देश के प्रति गहरी समर्पण भावना का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसके लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया।

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