Monday, March 19, 2018

वतन पर मर-मिटने का जज्बा पैदा करता संगीत, 'इंडियन मिलट्री बैंड' की 8 रोचक बातें


युद्ध और संगीत यूं तो एक दूसरे के विपरीत बातें हैं लेकिन जो संगीत एक तरफ रूह को सुकून देता है। वहीँ, जंग के मैदान में दुश्मन के खिलाफ जवानों में कुछ कर गुजरने के भाव भी भर देता है। युद्ध के मैदान में बजने वाला संगीत जवानों में अपने वतन के लिए प्रेम और मर-मिटने का जज्बा पैदा करता है।
हर वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान होने वाली बीटिंग रिट्रीट हर देशवासी का मन मोह लेती है। बीटिंग रिट्रीट एक ऐसा अवसर होता है जो हर देशप्रेमी को रोमांचित कर देता है। बीटिंग रिट्रीट में भारतीय सेना के तीनों अंगों के मिलिट्री बैंड एक साथ भारत के राष्ट्रपति को सलामी देते हैं। आखिर क्या है भारतीय मिलिट्री बैंड की खूबियां और कितनी खास हैं सेना के संगीत की धुनें, आइये जानते हैं। :-

1950 में बना 'मिलिट्री स्कूल ऑफ म्यूजिक'


आज हम जिस भारतीय मिलिट्री बैंड से परिचित हैं, उसकी कहानी 300 साल के ब्रिटिश मिलिट्री बैंड के इतिहास से जुड़ी है। ब्रिटिश राज खत्म हुआ तो मिलिट्री बैंड का भारतीयकरण शुरू हुआ। कमांडर इन चीफ फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने इस चुनौती को स्वीकार किया और 1950 में मध्य प्रदेश के पचमढ़ी में 'मिलिट्री स्कूल ऑफ म्यूजिक' की नींव रखी। इसे 'नेलर हॉल ऑफ इंडिया' भी कहा जाता है। यही वह समय था जब भारतीय धुनों पर आधारित हिंदुस्तानी मिलिट्री बैंड को आकार दिया गया।

भारतीय लोकगीतों से ली गईं हैं बैंड की धुनें


प्राचीन युद्ध और हिन्दुस्तानी संगीत की परंपराओं में रची-बसी हिंदुस्तानी और विदेशी वाद्य यंत्रों पर बजाई गई धुनें भारतीय मिलिट्री बैंड की खासियत है। भारतीय मिलिट्री बैंड द्वारा बजाई जाने वाली धुनें बैंड मास्टरों ने पंजाब, राजस्थान, मारवाड़, गढ़वाल और कोंकण के लोकगीतों से ली हैं। इनमें वीर गोरखा का किस्सा, कोंकण सुंदरी की कहानी, अल्मोड़ा-मार्च, चन्ना-बिलौरी की गाथा, पटनी टॉप और हंसते लुशाई के गीत-गाथा आदि शामिल हैं।

प्रोफेसर ए लोबो ने रचा प्रसिद्ध संगीत


मिलिट्री म्यूजिक के कंपोजीशन में सबसे आगे थे मेजर रॉबर्ट्स और हैरोल्ड जोसेफ, एलबी गुरंग, जनरल निर्मल चंद्र विज और मेजर नाजिर हुसैन जैसे अफसर। इन्होंने विभिन्न मौकों के हिसाब से अलग-अलग धुनें तैयार कीं, जिनमें राष्ट्रीय उत्सवों पर अक्सर बजाई जाने वाली क्विक मार्च कैटेगरी की धुन-'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी शामिल है। प्रोफेसर ए लोबो ने इसका संगीत दिया।

भारतीय थलसेना में रेजिमेंटल स्तर पर म्यूजिकल बैंड


भारतीय मिलिट्री बैंड में हालांकि चार बड़े बैंड शामिल हैं - आर्मी, एयरफोर्स, नेवी और पैरामिलिट्री बैंड। लेकिन आर्मी बैंड के दो हिस्से हैं- पाइप्स एवं ड्रम्स, जिसे अलग-अलग रेजीमेंटल सेंटर्स के जवान प्रस्तुत करते हैं। भारतीय वायुसेना और भारतीय नौसेना में जहां कमांड स्तर पर म्यूजिकल बैंड हैं तो वहीँ, भारतीय थलसेना में हर रेजीमेंटल स्तर पर म्यूजिकल बैंड अपनी प्रस्तुति देते हैं। राजपूताना रेजीमेंटल सेंटर का बैंड है, जिसकी प्रस्तुति सिंहगढ़ है, जो राजपूताना शौर्य को समर्पित है।

एयरफोर्स के बैंड ने 1971 युद्ध के बाद निकाला पहला एलपी रिकॉर्ड


इंडियन एयरफोर्स के बैंड का इतिहास भी बेहद शानदार है, जिसे साउंड बैरियर जैसी कंपोजीशन में महारथ हासिल है। इसमें आपको एयरफोर्स के मूल तत्व हवा और आकाश की बेजोड़ संगीतबद्ध ध्वनि सुनाई पड़ेगी। बांसुरी-तबला और मृदंग के साथ वायलिन और क्लैरिनेट का संगम ताज्जुब में डाल देता है। एयर बैटल, ईवनिंग स्टार, एयर वॉरियर्स और टिको-टिको जैसी धुनें इंडियन एयरफोर्स के बैंड की खास पहचान हैं। 1971 की लड़ाई के बाद निकाला गया पहला एलपी रिकॉर्ड परमवीर चक्र विजेता निर्मलजीत को समर्पित किया गया था। एयरफोर्स ने भारतीय नेवी को भी एक धुन समर्पित की है।

'मार्च ऑफ द मरीनर्स' नेवी की लोकप्रिय धुन


नेवी बैंड का इतिहास भी उतना ही गौरवशाली रहा है। उनकी प्रमुख धुनों में एक है 'वैष्णवजन...' जैसे गीत पर आधारित मिलिट्री धुन, जिसे खुद महात्मा गांधी ने लिखा था। इसके अलावा 'मार्च ऑफ द मरीनर्स', नॉटिलस और पोसीडॉन जैसी नई धुनें।

विदेशी बैंड्स को ट्रेनिंग भी देता है इंडियन मिलिट्री बैंड


भारतीय मिलिट्री बैंड ने कई विदेशी बैंडवादकों को भी ट्रेनिंग दी है। इनमें श्रीलंका, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, फिजी, घाना, केन्या और मॉरीशस भी शामिल हैं। मिलिट्री म्यूजिक में भारतीय सेना की अलग पहचान है। भारतीय सेना के बैंड का नाम गिनीज बुक में भी दर्ज है, जिसमें सिर्फ एक कंडक्टर के साथ करीब साढ़े चार हजार संगीतकारों ने बेहद अनूठी ग्रेस धुन बजाकर ये रिकॉर्ड बनाया था।

बीटिंग रिट्रीट पर तीनों सेना एक साथ दिखाती हैं संगीत का हुनर


यूं तो कई ऐसे मौके आते हैं, जब भारतीय सेनाओं के बैंड अलग-अलग प्रस्तुति देते हैं। लेकिन राजधानी दिल्ली में रायसीना हिल्स पर होने वाली 'बीटिंग द रिट्रीट' एक ऐसा मौका होता है जब सेना के तीनों अंगों के बैंड एक साथ अपना हुनर दिखाते हैं। बीटिंग रिट्रीट के साथ एक और खासियत भी जुड़ी है, जब तीनों सेनाओं के प्रमुख और भारत के राष्ट्रपति 'विजय चौक' के लिए निकलते हैं, तब 200 साल पुरानी परंपरा वाला एक बिगुल बजाया जाता है जिसे पहली बार जर्मन और ब्रिटिश सेना ने प्रयोग किया था।

फ्रांस ने जंग में पहली बार बजाय था ट्रंपेट



साउंडिंग ऑफ रिट्रीट भी एक पुरानी परंपरा है। जब सैनिक जंग के मैदान से शाम को अपने ठिकानों की तरफ लौटते थे तो उन्हें नगाड़ों या बिगुल के जरिए कैंपों में वापस बुलाया जाता था। इसलिए बीटिंग रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह का समापन भी होता है और ये समापन होता है एक खास धुन पर। ब्रिटिश सेना ने फ्रांस के साथ एक युद्ध में इस संगीत की खासियत को पहली बार महसूस किया और पहली बार जंग के मैदान में ट्रंपेट बजाया था।

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