Monday, June 11, 2018

हिटलर की फ़ौज भी जिससे खाती थी खौफ, जानिये ख़तरनाक महिला स्नाइपर की 7 खास बातें


एक ऐसी महिला स्नाइपर की कहानी जिसे इतिहास के सबसे खतरनाक स्नाइपर्स में गिना जाता है। ऐसी खतरनाक लेडी स्नाइपर जिसने हिटलर की नाज़ी फ़ौज की नाक में दम कर दिया। जी हां, ऐसी ही शार्प शूटर थी ल्यूडमिला पवलिचेंको। आइये जानते हैं उनसे जुड़े कुछ ख़ास पहलू :

कौन थी ल्यूडमिला पवलिचेंको ?


Lyudmila Mykhailvna Pavlichenko का जन्म 1916 में युक्रेन के पास बालाया Tserkov, में हुआ था। उनके पिता सेंट पीटर्सबर्ग के एक कारखाने में काम करते थे। उनकी मां शिक्षिका थी। पवलिचेंको को जब स्कूल भेजा गया तो वह काफी चुलबुली और नटखट थीं। वह बेहतरीन एथलीट थीं। वह लड़कों को भी हरा देती थीं। महज 25 वर्ष की उम्र में उन्होंने हिटलर के 309 सैनिकों को निशाना बनाया। उन्हें दुनिया के बेहतरीन स्नाइपर शूटर्स में गिना जाता है।

महज 14 साल की उम्र में ल्यूडमिला पवलिचेंको कीव में पहली बार हथियारों के संपर्क में आईं। दरअसल, वह अपने परिवार के साथ यूक्रेन में अपने पैतृक गांव से आकर कीव में बस गई थीं। हेनरी साकैडा की किताब 'हीरोइन्स ऑफ़ द सोवियत यूनियन' के मुताबिक पवलिचेंको एक हथियारों की फ़ैक्ट्री में काम करती थीं। अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान उन्होंने बताया था कि मेरे पड़ोस में रहने वाला एक लड़का अच्छी शूटिंग करता था और सभी को चिढ़ाता था। तब उन्होंने ठान लिया कि लड़कियां भी ऐसा कर सकती हैं। उन्होंने कीव के ओसोआवियाजिम शूटिंग एसोसिएशन में दाखिला लिया। वहां उन्होंने हथियारों के इस्तेमाल की ट्रेनिंग ली। इसके लिए उन्होंने कड़ा अभ्यास किया और कुछ ही दिनों में इसमें महारत हासिल कर ली।

शूटिंग से रेड आर्मी तक का सफ़र


22 जून, 1941 में जर्मनी ने जर्मन-सोवियत के बीच की आक्रमण न करने की संधि तोड़ दी और 'ऑपरेशन बारबरोसा' शुरू कर दिया। इस ऑपरेशन के तहत जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कर दिया। सोवियत यूनियन युद्ध के दौरान जब आर्मी में युवाओं को भर्ती करना शुरू किया तो ल्यूडमिला पवलिचेंको ने अपने देश की रक्षा के लिए कीव के विश्वविद्यालय में चल रही इतिहास की पढ़ाई छोड़कर आर्मी में जाने का फ़ैसला किया। सोवियत आर्मी में पहले तो उन्हें लेने से इनकार कर दिया गया, लेकिन जब उन्होंने निशानेबाज़ी में अपना हुनर दिखाया तो उन्हें मौका दिया।

मिलिट्री ट्रेनिंग


'स्नाइपर इन एक्शन' नाम की मशहूर निशानेबाज़ों पर लिखी अपनी किताब में चार्ल्स स्ट्रोंज ने पवलिचेंको के हवाले से लिखा है, 'मैंने कीव के एक स्कूल में बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग ली थी, जहां मैंने रीजनल टूर्नामेंट में बैज जीता था। आर्मी ऑडिशन में पवलिचेंको को एक राइफ़ल थमा दी गई और उन दो रोमन सैनिकों पर निशाना लगाने के लिए कहा गया जो जर्मनी के लिए काम कर रहे थे। पवलिचेंको ने बड़ी आसानी से निशाना लगा दिया। इससे उन्हें 25वीं चपायेव फ़ूसीलियर्स डिवीज़न में एंट्री मिल गई।

'एक नाज़ी को मारकर मैं कई लोगों की जान बचाती हूं'


सेना में रहते हुए उन्होंने ग्रीस और मोलदोवा की लड़ाइयों में हिस्सा लिया। पवलिचेंको जल्द ही सेना में मशहूर हो गईं। युद्ध के पहले 75 दिनों में ही उन्होंने 187 नाज़ी सैनिकों को मार गिराया। आज के यूक्रेन के दक्षिण में बसे ओडेसा के युद्ध में ख़ुद को साबित करने के बाद उन्हें सेवास्टोपोल के युद्ध में लड़ने के लिए क्राइमिया भेज दिया गया। (30 अक्टूबर, 1941 से 4 जुलाई 1942) सेवास्टोपोल के युद्ध में उन्हें कई चोटें आईं, लेकिन उन्होंने तब तक मैदान नहीं छोड़ा, जब तक नाज़ी आर्मी ने उनकी पोज़ीशन को बम से उड़ा नहीं दिया। उनके चेहरे पर गंभीर चोटें आईं। वह युद्ध में चार बार घायल भी हुईं। कई उपलब्धियों के चलते उन्हें लेफ़्टिनेंट पद पर पदोन्नति मिली और उन्होंने दूसरे निशानेबाज़ों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। लेफ़्टिनेंट पद मिलने के कुछ दिनों बाद ही उन्हें वॉशिंगटन भेजा गया। अमेरिका की यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था, 'ज़िंदा रहने वाला हर जर्मन महिलाओं, युवाओं,बच्चों और बूढ़ों को मार देता, इसलिए एक नाज़ी को मारकर मैं कई जानें बचाती थी।'

किरदार पर सवाल...



कहा जाता है ल्यूडमिला पवलिचेंको कई बार पत्रकारों के कुछ सवालों से ख़फ़ा भी हो जाती थीं। एक बार किसी पत्रकार ने पूछा कि क्या आप युद्ध के मैदान पर मेकअप करके जाती हैं? तब पवलिचेंको ने जवाब दिया, 'ऐसा कोई नियम नहीं है कि आप युद्ध में मेकअप करके नहीं जा सकते, लेकिन युद्ध में किसके पास ये सोचने का वक्त होता है कि युद्ध के मैदान में आपकी नाक कितनी चमकीली है?' एक बार उनकी स्कर्ट के ज्यादा लंबी होने पर भी सवाल उठाया गया था। इसके जवाब में उन्होंने कहा था, 'अपनी यूनिफ़ॉर्म को इज़्ज़त से देखती हूं इसमें मुझे लेनिन का ऑर्डर नज़र आता है और ये युद्ध के लहू में लिपटी है।'

हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन


सोवियत संघ लौटते हुए पवलिचेंको ब्रिटेन भी गईं। यहां भी उन्होंने ब्रिटेन से वेस्टर्न फ़्रंट में शामिल होने की अपील की। युद्ध और हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन के उच्च सम्मान से नवाज़े जाने के बाद उन्होंने कीव यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई पूरी की और एक इतिहासकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की।1945 से 1953 के बीच उन्होंने सोवियत नौसेना के मुख्यालय के साथ काम शुरू किया और बाद में वह सोवियत कमेटी ऑफ़ वॉर वेटेरन्स की सक्रिय सदस्य रहीं।
वह उन 2,000 बंदूकधारियों में से थीं जो द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े और उन 500 में से एक थीं जो युद्ध में ज़िंदा बचे थे। 10 अक्टूबर 1974 में 58 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।

No comments:

Post a Comment