Thursday, June 14, 2012

नौकरी धरी कहां हैं........।


 घर से बाहर निकलने के बाद आदमी ऐसे काम भी कर जाता है, जो उसने कभी न किए हों। करता भी न हो लेकिन दिमाग में ख्याल तो पाल ही लेता है। हमारे लिए मॉर्निंग वॉक जैसी चीजें इसी श्रेणी में आती हैं। अभी कुछ दिनों पहले की बात है, हम एक कम आबादी वाले शहर के मकान की ऊपरी मंजिल में रह रहे थे हमारी तीन और सहेलियां हमारे बाजू वाले कमरे में रह रही थी अचानक एक दिन हमारी तीन सहेलियों ने वॉक पर जाने का मन बनाया। अरे हां, वॉक मतलब वहीं धीरे-धीरे चलकर बात करते हुए  सुबह या शाम के समय किसी पार्क अथवा सड़क के किनारे पर पर निकल पड़ना, यानी उनके विचार से हम सवेरे अपनी प्रेमप्यारी निद्रा को छोड़कर उनके साथ आस-पास तक टहलने जाएं। अब टहलने जाने के लिए तो सुबह उठना जरूरी है अब हमारी बला से कुछ हो जाए, मगर जब तक ख्वाबों के परिंदों हमारी आंखों के आशियानें से न उड़ जाएं तब तक क्या मजाल कि हम पलकें भी हिलाएं।
बिस्तर से सवेरे सवेरे उठना दरअसल हमे दुनिया का सबसे बड़ा अपराध लगता है। जिस बिस्तर ने हमें रात भर चैन की नींद सुलाया सुबह उठकर उसे झट से छोड़ देना हमें बहुत अखरता है। खैर, कई आखिरी करवटें बदलने के बाद आखिरकार फिर से वापसी का वादा कर बिस्तर से विदा लेनी पड़ती है।  जिस सुबह टहलने का वादा तय हुआ था वह भी आ गई हमें लगा कि कहीं कहीं हमने गलत बात पर तो  सहमति नहीं दे दी। तीनों सहेलियां कमरे में दाखिल हुर्इं एक ने हा,हा,हा करते हुए आईने के सामने बाल संवारना शुरू कर दिया, शायद उसे किसी बात पर हंसी आई होगी, हम नींद में सुन नहीं पाए। दूसरी हमें उठाने की जुगत  में थी, क्योंकि उसे पता था कि हम बजते हुए अलार्म को भी बंद करके कुभकरण की नींद सो जाते हैं। तीसरी जो थोड़ी सफाई पसंद थी ने रात भर से सिरहाने रखे चाय के कप को देखकर हमें भला बुरा कहना शुरू किया। दरअसल उस कप में चाय खत्म होने के बाद भी कुछ मिठास बची रह गई थी, चींटियां और झिंगुर उसका खुशी से आनंद ले रहे थे, अब उन्हें क्या मालूम था कि कोई उनके रंग में भंग भी कर सकता है और उन्हें बेरहमी से बाहर कर देगा। खैर,  उसने छी....भई हद है तुझसे तो, सुधर मत जाना यह कहते हुए कप को बाहर किया। हमारे कानों ने तो अपना काम शुरू कर दिया था मगर आंखें अभी खुलने का नाम नहीं ले रही थी फिर भी जबरदस्ती एक लंबी सांस भरते हुए हमने अपनी आंखे खोली और  दोस्तों से कहा कि तुम चलो हम अभी आते हैं। हमारी खुशनसीबी थी किसी ने हमारे साथ जबरदस्ती नहीं की। उन्हें जाता देख हम थोड़ा मुस्कुराए कि चलो अब दो मिनट और लेटे रहेंगें। लेकिन ज्यादा पीछे रह जाने के डर से हमने जल्दी से उठकर कोने में पड़े स्लीपर पहने और कमरे का दरवाजा लगा जल्दी से दोस्तों के दिशानिर्देश का पालन किया, ध्यान आया कि मोबाइल भूल गए बिना मोबाइल के बिना बाहर जाना हमें गंवारा नहीं क्योंकि हम उसी से फोटोग्राफी और दूरसंचार दौनों का कार्य लिया करते थे सो दोबारा दरवाजा खोलना पड़ा फिर लगाना भी पड़ा। सुबह सुबह इतनी मशक्कत दिमाग खराब करने के लिए काफी थी सीढ़ियों से उतरते वक्त दिखा कि तीनों काफी आगे निकल चुकी थी, सो हमने तेजी से पांव रखे और बाहर रोड पर पहुंचे गर्मी के मौसम की वजह से  सड़क के किनारे की मिटÞटी रेत में परिवर्तित हो गई थी। हमने थोड़ा तेज चलना चाहा तो पांवों में थोड़ी रेत भर जाने से कभी न गलने वाली प्लास्टिक वाली स्लीपर नाराज हो गई और पांव से सरक-सरक जाती।
 नकाब सरकने के बारे में तो शायरों ने न जाने कितना लिखा, पांव के नीचे से जमीन सरकने की बात भी लिखी गई मगर चप्पल सरकने की बात किसी ने नहीं लिखी। अब क्या आलम था हम ही जाने हमने तीनों को आवाज देकर रोका तब जाकर उनमें शामिल हो पाए। हमारी व्यथा सुनकर सभी ने हमपर ही दोष मढ़ना शुरू कर दिया किसी ने चप्पल बनाने वाली कंपनी और मैटिरियल पर अंगुली  नहीं उठाई। बस मन ऊब गया, सो मजबूरी में प्रकृति की हरियाली को निहारने का नाटक करते हुए कभी कभी उनकी बातों पर हां, हूं कर देते। उधर सूर्यदेव भी अपनी लालिमा लिए समान भाव से रोशनी बांटने के लिए आ पहुंचे जैसे किसी कंपनी में कोई कर्मचारी पहले दिन नए उत्साह और जोश के साथ अपनी ड्यूटी ज्वाईन करता है वह अलग बात है कि वह कुछ दिनों बाद हठी और कामचोर हो जाता है।
कुछ ही  दूरी पर एक चाय की दुकान थी साथियों का मन हुआ कि वहां बैठकर चाय पी जाए । वहां पहुंच गए देखा कि दो बुजुर्ग पहले से ही चाय की आनंद ले रहे थे। अखबार वाला भी बड़े तैश में अखबार ऐसे पटककर गया कि जैसे चायवाले ने उसका कितने महीनों का उधार न दिया हो। खैर, सबसे पहले हम अखबार की तरफ लपके पत्रकारिता से खास लगाव जो था भले ही नौकरी के लिए जद्दोजहद चल रही थी, मगर किसने गलत हैडिंग दिया है या किस अखबार में कितनी भाषाई अशुद्धियां हैं यह तो हम ऐसे बखान करते कि जैसे इन अखबारों के संपादक हम ही हों। अखबार कबूतर के पंखों की तरह वहां बैठे लोगों में एक एक पन्ना करके फैल गया। आज अखबार में  शहर की बिजली  के रात भर गुल रहने की खबर अहम थी। प्रधानमंत्री का विदेश दौरा रात भर से ही चर्चा का विषय बना हुआ था। आगरा में अपराध की घटना को सुनकर दौनों बुजुर्ग आगरा में इस तरह की घटनाओं से पर्यटकों की आमद घटने को लेकर काफी चिंतित दिखाई दिए। चाय बनकर तैयार हो गई थी। चाय फिर से उसी कभी न गलने वाली प्लास्टिक से बने गिलास में मिली थी जिससे बनी चप्पल हमारे पांवों से सरक-सरक जा रही थी हमें डर था कि कहीं चाय को छोड़कर न सरक जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दौनो बुजुर्ग ने किसी बात पर थोड़ी नाराजगी जताई ध्यान गया तो मालूम पड़ा कि उनका बेटा काफी पढ़ा लिखा है मगर उसे नौकरी नहीं मिली मतलब साफ था कि हमारी कैटेगिरी का ही होगा। थोड़ी देर में सड़क पर कुछ युवा लड़के-लड़कियां दौड़ लगाते हुए सड़क से होकर निकले।  उन्हें देखकर चाय वाले ने ताल लगाई कि जनाब सारे बालक उसी के यहां परांठा खाने आते हैं सब एमबीए और इंजीनियरिंग के विद्यार्थी  हैं। उन खिन्न बुजुर्ग से रहा न गया और बोले कि अब एमबीए कर लो या दौड़ लगाओ नौकरी धरी कहां हैं। चाय खत्म हो चुकी थी और हम चारों  वहां से वापस अपने कमरे पर पहुंचे याद आया कि आज दोपहर में एक इंटरव्यू के लिए जाना है। हम तैयार होकर जैसे ही बाहर पहुंचे तो सुबह बुजुर्ग व्यक्ति की कही बात याद आई कि नौकरी धरी कहां है.....?




2 comments:

  1. बढ़िया। यूं ही लिखते और पढ़ते रहो।

    ReplyDelete
  2. ऐसा लगता है कि लिखने में इतनी मशगूल हो गर्इं आप कि पैराग्राफ बनाना भूल गर्इं। छोटा मैटर हो तो एक पैराग्राफ चल जाता है, लेकिन लंबी ‘लंतरानी’ में कुछ पैराग्राफ हों, तो अच्छा रहता है। बहरहाल, अच्छा लिखा है।

    ReplyDelete