रह गई किस चीज की मुझमें कमी कुछ तो कहो
किस तरह होगी मुकम्मल जिंदगी कुछ तो कहो
आज तो जलता हुआ था धूप में मौसम मगर,
फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो
आसमां सुनसान है क्यों, गुम खड़े हैं क्यों दरख्त,
शहर क्यों उजड़ा हुआ है, तीरगी कुछ तो कहो
घंटियों की क्यों सदा आती नहीं मंदिर से अब,
दूर क्यों बजती नहीं है बांसुरी, कुछ तो कहो
इस अंधेरे के सिवा दिखता नहीं क्यों और कुछ
हो गई सूरज को क्या नाराज़गी कुछ तो कहो
दूर है मुझसे तबस्सुम, गम ही गम नज़दीक है
किस तरह मरकर कटेगी जिंदगी कुछ तो कहो
गर्दिशों की रहगुजर में शाम क्यों आती नहीं
है अभी कितना सफर वीरानगी कुछ तो कहो
तक रहा था देर तक क्यों आईना डिम्पल मुझे
लग रही हूं आज क्या मैं अजनबी कुछ तो कहो
किस तरह होगी मुकम्मल जिंदगी कुछ तो कहो
आज तो जलता हुआ था धूप में मौसम मगर,
फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो
आसमां सुनसान है क्यों, गुम खड़े हैं क्यों दरख्त,
शहर क्यों उजड़ा हुआ है, तीरगी कुछ तो कहो
घंटियों की क्यों सदा आती नहीं मंदिर से अब,
दूर क्यों बजती नहीं है बांसुरी, कुछ तो कहो
इस अंधेरे के सिवा दिखता नहीं क्यों और कुछ
हो गई सूरज को क्या नाराज़गी कुछ तो कहो
दूर है मुझसे तबस्सुम, गम ही गम नज़दीक है
किस तरह मरकर कटेगी जिंदगी कुछ तो कहो
गर्दिशों की रहगुजर में शाम क्यों आती नहीं
है अभी कितना सफर वीरानगी कुछ तो कहो
तक रहा था देर तक क्यों आईना डिम्पल मुझे
लग रही हूं आज क्या मैं अजनबी कुछ तो कहो
बेहतरीन ....
ReplyDeleteधन्यवाद!
Deleteधन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद!
ReplyDeleteकमाल की ग़ज़ल है.. तख़य्युल बेहतरीन और बहर ऐसी के जैसे आबशार हो!! कम्माल! मेरे बच्चों की याद आ गयी.. स्वप्निल और दिलीप!! जीते रहिये!!
ReplyDeleteहै अभी कितना सफर वीरानगी कुछ तो कहो.
ReplyDeleteवाह बेहतरीन ..... और भी अच्छी लिखने के लिए शुभकामनाए
Bahut dhanyawad....
DeleteLajawaab.....kuch kahne ko nhi choda aapne sach... Shubhkamnaayein
ReplyDeleteसामाजिक परिवेश और परिस्थितियों से मन में उभरने वाले विचारों को प्रभावशाली शब्दों का रूप देना ही साहित्यिक कला है। आपकी प्रस्तुत रचना व अन्य लेखन में इसकी झलक साफ दिखाई देती है। बधाई
ReplyDeleteशाहिद मिर्जा शाहिद
आज तो जलता हुआ था धूप में मौसम मगर,
ReplyDeleteफिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो ..
खूबसूरत आशआर है इस लाजवाब ग़ज़ल का ... बहुत उम्दा ...
फिर हवा में आ गई कैसी नमी, कुछ तो कहो...
ReplyDeleteहो गई सूरज को क्या नाराज़गी कुछ तो कहो...
उम्दा, बहुत उम्दा.