1930 के दशक में भारतीय वायुसेना का हिस्सा बना और कई लड़ाईयां लड़ चुका डकोटा विमान एक बार फिर भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होने जा रहा है। इस युद्धक विमान ने 1947 और 1971 में हुए भारत -पाक युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी, इन लड़ाइयों में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। एक लम्बे अरसे के बाद डकोटा की फिर से वापसी पर आइये जानते हैं इससे जुड़ी कुछ ख़ास बातें-
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि यह विमान कबाड़ हो चुका था जिसकी मरम्मत कराने का श्रेय राज्यसभा सांसद राजीव चन्द्रशेखर को जाता है। यह विमान वायुसेना को उन्होंने तोहफे में दिया है। एक कार्यक्रम में चंद्रशेखर ने वायुसेना प्रमुख बी. एस. धनोआ को इस विमान से संबंधित सभी दस्तावेज सौंप दिए हैं उम्मीद कि जा रही है कि यह विमान मार्च माह में वायुसेना के बड़े में शामिल हो जाएगा ।
1935 में डकोटा को 'रॉयल इंडियन एयरफोर्स' में शामिल किया गया था जो अब भारतीय वायुसेना के नाम से जानी जाती है। उस समय इस विमान की तैनाती लद्दाख और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में होती रही। 1947 में जब पाकिस्तान ने कबायलियों की वेशभूषा में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था तब कश्मीर को बचाने में इस विमान ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। माना जाता है कि यदि आज कश्मीर के पुंछ का इलाका हमारे पास है तो उसकी वजह डकोटा एयरक्राफ्ट ही है।
भारत-पाक के 1971 के युद्ध में भी इस विमान ने बांग्लादेश की मुक्ति में अहम भूमिका निभाई। इस विमान को डॉग्लस डीसी 3 औऱ डकोटा नाम से भी जाना जाता था। वायुसेना ने 1940 से 1980 तक इसका भरपूर इस्तेमाल किया।
ब्रिटेन ने इसे फिर से अत्याधुनिक स्वरूप प्रदान करते हुए इसका नेवीगेशन सिस्टम आज के दौर के हिसाब से दोबारा तैयार किया है। इसे नया नाम 'परशुराम' दिया गया है। डकोटा का नया नंबर होगा VP 905 । ये उसी डकोटा विमान का नंबर है, जिसने इंडो-पाक वार में सैनिकों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाया था।
विशेषज्ञों के मुताबिक विमान डगलस डीसी-3 को इसके मॉडल डीसी 2 के आधार पर बनाया गया है। निर्माताओं ने इसकी कमियों पर बारीकी से विचार किया है और इसके नए मॉडल पर ज्यादा से ज्यादा सुधार किया है। विमान की रेंज 2,400 किलोमीटर है, क्रूज स्पीड 333 किलोमीटर, तथा यह ड्यूल इंजन विमान है, जिसका विंग्सपेन 29 मीटर है। 79,500 अमेरिकी डॉलर कि लागत से बना यह विमान एयरलाइनर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस विमान ने अपनी पहली उड़ान 17 दिसंबर 1935 को भरी थी और अभी तक कुल 607 विमानों का निर्माण किया गया है। हालांकि इसके तकरीबन 300 एडवांस वर्जन विभिन्न देशों में काम कर रहे हैं। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे 'गूनी बर्ड', 'डम्बो', 'स्पूकी', 'पफ द मैजिक ड्रेगन' स्काई ट्रेन आदि कई निक-नेम दिए जा चुके हैं।
यह विमान अब बंद हो चुकी अमेरिका स्थित डगलस एयरक्राफ्ट कंपनी ने बनाया था। इनका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गठबंधन सेनाओं ने व्यापक इस्तेमाल किया। इसके दूसरे मिशनों का जिक्र करें तो विमान के एक सैन्य संस्करण ने फ्रांस में निश्चित दिन नारमंडी तट पर जवानों को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हजारों पैराट्रूपर्स को युद्धस्थल पर छोड़कर विश्व युद्ध जीतने में मदद की। स्विस कंपनी एयरोपैशन इस मौजूदा हवाई जहाज की मालिक है।
उद्योगपति से राजनेता बने राजीव चंद्रशेखर के पिता रिटायर्ड एयर कमाडोर भारतीय वायुसेना एम.के. चंद्रशेखर इस विमान को उड़ाया करते थे। 51 वर्षीय राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक उन्होंने इस विमान को 2009 में आयरलैंड में खरीदा था और इसे लंदन लेकर गए। उन्होंने इस एयरक्राफ्ट की पूरी तरह मरम्मत करवाई और अब यह उड़ने योग्य है। आपको बता दें चंद्रशेखर खुद कमर्शियल पायलट लाइसेंस रखते हैं। चंद्रेशखर का कहना है कि बचपन से ही उन्हें विमान और उसे उड़ाने का शौक था।उन्होंने बताया, 'मेरे 80 वर्षीय पिता एयर कमोडोर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।मैंने बचपन से ही अपने चारों तरफ विमानों को ही देखा है। मुझे याद है कि मेरे पिता मेरे ऊपर अपने विमान को उड़ाते हुए लहराते थे। उनके अनुसार वायुसेना में विमान को शामिल करने के उनके प्रस्ताव को दूसरी बार में स्वीकार किया गया।
राजीव के मुताबिक उनका इससे जुड़ाव युवावस्था में ही हो गया था। उनका कहना है कि विमान का इतिहास ही भारतीयों को गर्व से ओतप्रोत करने वाला है, इसके अलावा जब यह फिर से वायु सेना का हिस्सा बनेगा तो सभी के लिए बेहद फख्र की बात होगी। यह विमान सेना को मजबूती भी प्रदान करेगा। वह कहते हैं, “युवा पीढ़ी को इतिहास से प्रेरणा मिलती है। डकोटा विमान हमारी वायुसेना में कई सालों तक शामिल रहा था। मुझे बहुत बुरा लगता है जब मैं यह सुनता हूं कि हमारी सेनाओं के युद्धपोत और विमानों को तोड़ा जा रहा है।
कबाड़ में पहुंच चुका था यह विमान
आपको यह जानकार हैरानी होगी कि यह विमान कबाड़ हो चुका था जिसकी मरम्मत कराने का श्रेय राज्यसभा सांसद राजीव चन्द्रशेखर को जाता है। यह विमान वायुसेना को उन्होंने तोहफे में दिया है। एक कार्यक्रम में चंद्रशेखर ने वायुसेना प्रमुख बी. एस. धनोआ को इस विमान से संबंधित सभी दस्तावेज सौंप दिए हैं उम्मीद कि जा रही है कि यह विमान मार्च माह में वायुसेना के बड़े में शामिल हो जाएगा ।
पाकिस्तान से युद्ध में दिलाई थी जीत
1935 में डकोटा को 'रॉयल इंडियन एयरफोर्स' में शामिल किया गया था जो अब भारतीय वायुसेना के नाम से जानी जाती है। उस समय इस विमान की तैनाती लद्दाख और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में होती रही। 1947 में जब पाकिस्तान ने कबायलियों की वेशभूषा में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था तब कश्मीर को बचाने में इस विमान ने महत्वपूर्ण योगदान दिया था। माना जाता है कि यदि आज कश्मीर के पुंछ का इलाका हमारे पास है तो उसकी वजह डकोटा एयरक्राफ्ट ही है।
बांग्लादेश की मुक्ति में दिखाया दम
भारत-पाक के 1971 के युद्ध में भी इस विमान ने बांग्लादेश की मुक्ति में अहम भूमिका निभाई। इस विमान को डॉग्लस डीसी 3 औऱ डकोटा नाम से भी जाना जाता था। वायुसेना ने 1940 से 1980 तक इसका भरपूर इस्तेमाल किया।
नए रूप में फिर से सेवाएं देगा डकोटा, यह होगा नया नाम
ब्रिटेन ने इसे फिर से अत्याधुनिक स्वरूप प्रदान करते हुए इसका नेवीगेशन सिस्टम आज के दौर के हिसाब से दोबारा तैयार किया है। इसे नया नाम 'परशुराम' दिया गया है। डकोटा का नया नंबर होगा VP 905 । ये उसी डकोटा विमान का नंबर है, जिसने इंडो-पाक वार में सैनिकों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाया था।
ये हैं विमान की खूबियां
विशेषज्ञों के मुताबिक विमान डगलस डीसी-3 को इसके मॉडल डीसी 2 के आधार पर बनाया गया है। निर्माताओं ने इसकी कमियों पर बारीकी से विचार किया है और इसके नए मॉडल पर ज्यादा से ज्यादा सुधार किया है। विमान की रेंज 2,400 किलोमीटर है, क्रूज स्पीड 333 किलोमीटर, तथा यह ड्यूल इंजन विमान है, जिसका विंग्सपेन 29 मीटर है। 79,500 अमेरिकी डॉलर कि लागत से बना यह विमान एयरलाइनर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
विभिन्न देशों में इन नामों से पहचान जाता है 'डकोटा'
इस विमान ने अपनी पहली उड़ान 17 दिसंबर 1935 को भरी थी और अभी तक कुल 607 विमानों का निर्माण किया गया है। हालांकि इसके तकरीबन 300 एडवांस वर्जन विभिन्न देशों में काम कर रहे हैं। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे 'गूनी बर्ड', 'डम्बो', 'स्पूकी', 'पफ द मैजिक ड्रेगन' स्काई ट्रेन आदि कई निक-नेम दिए जा चुके हैं।
द्वीतीय विश्व युद्ध में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका
यह विमान अब बंद हो चुकी अमेरिका स्थित डगलस एयरक्राफ्ट कंपनी ने बनाया था। इनका द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गठबंधन सेनाओं ने व्यापक इस्तेमाल किया। इसके दूसरे मिशनों का जिक्र करें तो विमान के एक सैन्य संस्करण ने फ्रांस में निश्चित दिन नारमंडी तट पर जवानों को पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हजारों पैराट्रूपर्स को युद्धस्थल पर छोड़कर विश्व युद्ध जीतने में मदद की। स्विस कंपनी एयरोपैशन इस मौजूदा हवाई जहाज की मालिक है।
इनके प्रयास से भारत में हो रही है वापसी
उद्योगपति से राजनेता बने राजीव चंद्रशेखर के पिता रिटायर्ड एयर कमाडोर भारतीय वायुसेना एम.के. चंद्रशेखर इस विमान को उड़ाया करते थे। 51 वर्षीय राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक उन्होंने इस विमान को 2009 में आयरलैंड में खरीदा था और इसे लंदन लेकर गए। उन्होंने इस एयरक्राफ्ट की पूरी तरह मरम्मत करवाई और अब यह उड़ने योग्य है। आपको बता दें चंद्रशेखर खुद कमर्शियल पायलट लाइसेंस रखते हैं। चंद्रेशखर का कहना है कि बचपन से ही उन्हें विमान और उसे उड़ाने का शौक था।उन्होंने बताया, 'मेरे 80 वर्षीय पिता एयर कमोडोर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं।मैंने बचपन से ही अपने चारों तरफ विमानों को ही देखा है। मुझे याद है कि मेरे पिता मेरे ऊपर अपने विमान को उड़ाते हुए लहराते थे। उनके अनुसार वायुसेना में विमान को शामिल करने के उनके प्रस्ताव को दूसरी बार में स्वीकार किया गया।
देशवासियों के लिए फख्र की बात
राजीव के मुताबिक उनका इससे जुड़ाव युवावस्था में ही हो गया था। उनका कहना है कि विमान का इतिहास ही भारतीयों को गर्व से ओतप्रोत करने वाला है, इसके अलावा जब यह फिर से वायु सेना का हिस्सा बनेगा तो सभी के लिए बेहद फख्र की बात होगी। यह विमान सेना को मजबूती भी प्रदान करेगा। वह कहते हैं, “युवा पीढ़ी को इतिहास से प्रेरणा मिलती है। डकोटा विमान हमारी वायुसेना में कई सालों तक शामिल रहा था। मुझे बहुत बुरा लगता है जब मैं यह सुनता हूं कि हमारी सेनाओं के युद्धपोत और विमानों को तोड़ा जा रहा है।
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