Monday, February 26, 2018

युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है पैदल सेना, इन्फेंट्री के 7 बड़े ऑपरेशन


भारत के खिलाफ दुश्मन ने जब भी अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की हिमाकत की तब भारतीय थल सेना की पैदल सैन्य टुकड़ियों ने न केवल उन्हें नाकाम किया बल्कि अपनी ताक़त, बहादुरी और पराक्रम का ऐसा परिचय दिया है जो पूरे विश्व के लिए उदाहरण बन गया। भारत ही नहीं बल्कि हर देश की सेना में इन्फेंट्री की महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इन्फेंट्री के बिना किसी भी देश के लिए युद्ध के मैदान में दुश्मन से जीतना लगभग असंभव ही है। आज हम आपको भारतीय सेना की इन्फेंट्री के कुछ ऐसे ही ऑपरेशंस के बारे में बता रहे जिनमें पैदल सेना ने दुश्मन को मुहंतोड़ जवाब दिया।

ऑपरेशन विजय (गोवा मुक्ति)


देश की आजादी के बाद हुई किसी बड़ी कार्रवाई के तौर पर गोवा मुक्ति के बारे में आप शायद ही जानते हों। आर्मी इन्फेंट्री द्वारा किये गए इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने गोवा दमन व दीव को साढ़े चार सौ वर्ष के पुर्तगाली आधिपत्य से आजाद काराया था। गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों का शासन था भारत सरकार की बातचीत की मांग को पुर्तगालियों ने ठुकरा दिया नतीजन भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय चलाया और सेना की छोटी टुकड़ी भेजी। 18 दिसंबर 1961 के दिन कार्रवाई की गई। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। 4 राजपूत रेजीमेंट, 1 पैरा, 2 पैरा, 2 सिख लाइट इन्फेंट्री बटालियन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण कर दिया।

भारत-चीन युद्ध 1962


चीन में 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद जब भारत ने दलाई लामा को शरण दी तो भारत- चीन सीमा पर हिंसक घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गयी। चीन ने भारत पर हमला कर दिया। चीन के 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए भारत की ओर से मैदान में बेशक सैनिक कम थे लेकिन भारतीय जवानों ने उनका दिलेरी से सामना किया। लगभग एक महीने चले इस युद्ध में भारतीय जवानों मेजर धनसिंह थापा, सूबेदार जोगिंदर सिंह और मेजर शैतान सिंह को उनके साहस के लिए परमवीर चक्र प्रदान किया।

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965


पाकिस्तान ने सोचा तो यह था कि तीन वर्ष में एक और युद्ध भारत झेल नहीं पाएगा लेकिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान को ऐसा जवाब दिया कि उसे मुंह दिखाना मुश्किल हो गया। दरअसल पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा करने की फिराक में था। उसने प्रशिक्षित और आधुनिक हथियारों से लैस अपने 33,000 लड़ाकों को कश्मीर में दाखिल करा दिया। पाकिस्तान की साजिश का भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। 28 अगस्त 1965 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान में हाजी पीर और दूसरी पोस्ट पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना की 15 इन्फेंट्री डिवीजन ने 6 सितंबर 1965 को लाहौर और सियालकोट को निशाना बना ऐसे हमले किए कि पाकिस्तान की चाल उसी पर भारी पड़ गई। कश्मीर हासिल करने की तो छोड़िए उसे लाहौर बचाना मुश्किल पड़ गया। पाकिस्तान के तमाम हथकंडे बेकार गए और उसे मुंह की खानी पड़ी। जिन टैंकों पर पाकिस्तान को बेहद घमंड था उन्हें असल उत्तर की लड़ाई में अकेले अब्दुल हमीद ने उड़ा दिया। 4 ग्रेनेडियर्स के अब्दुल हमीद को उनकी असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया। युद्ध के बाद भारतीय सेना की यूनिटों को उनके पराक्रम और साहस के लिए 16 Battle Honours और 3 Theatre Honours प्रदान किए गए।

भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971


छह वर्ष बाद 1971 में पाकिस्तान को अपनी हरकतों की वजह से एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को हर मोर्चे पर मात दी। लगभग दो हफ्ते तक चले इस युद्ध में भारतीय जांबाजों के सामने पाकिस्तान सेना को घुटने टेकने पड़े। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को सिर्फ पराजित ही नहीं किया बल्कि एक नए देश बांग्लादेश का उदय भी हुआ। भारतीय सेनाओं के हमले ने पाकिस्तान की ऐसी गत कर दी कि उनके सेनापति जनरल एके नियाजी को युद्ध विराम की प्रार्थना करनी पड़ी। 16 दिसंबर 1971 को जनरल एके नियाजी ने 90,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। इतनी बड़ी फौज के साथ आत्मसमर्पण करने की यह अनोखी घटना है। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह के दर्प को भारतीय सेना ने चकनाचूर कर दिया था। लांस नायक एल्बर्ट एक्का (14 गार्ड्स) को मरणोपरांत और मेजर होशियार सिंह (3 ग्रेनेडियर्स) को उनकी असाधारण वीरता के लिए परमवीर चक्र प्रदान किया गया। 

1984 'ऑपरेशन मेघदूत


सियाचिन ग्लेशियर पर पाकिस्तानी सेना को भारतीय सरहद से परे ढकेलने के लिए भारतीय थलसेना और वायुसेना के ऑपरेशन को कोड नाम ‘ऑपरेशन मेघदूत’ दिया गया था। 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने बर्फीली चोटियों को पार कर अपना मोर्चा संभाला और सियाचिन से पाकिस्तानी की घुसपैठ की गतिविधियों को खत्म कर दिया। सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है, जहां तमाम परेशानियों के बावजूद भारतीय सैनिक चट्टान की तरह सरहद की सुरक्षा करते है। 

करगिल युद्ध 1999 'ऑपरेशन विजय'


वर्ष 1998 की सर्दियों में पाकिस्तान के घुसपैठियों ने करगिल की पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया। वर्ष 1999 की गर्मियों की शुरुआत में इस कब्जे की बात पता चली। अपनी जमीन से दुश्मन को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय शुरू किया। दुश्मन ऊंचाई पर बैठा था। एक तरह से वह फायदे की स्थित में था। इन विपरीत हालातों में भारतीय सेना के जवानों ने गजब का पराक्रम दिखाया। दुश्मन को खदेड़ने के लिए उन चोटियों तक भारतीय जवानों का पहुंचना जरूरी था। कैप्टन मनोज कुमार पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन संजय कुमार और ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव सरीखे सैकड़ों जवानों के असाधारण पराक्रम ने घुसपैठियों को मार भगाया। करगिल युद्ध में युवा अधिकारियों ने शानदार और अनुकरणीय प्रदर्शन करते हुए एक सुनहरी विजयगाथा लिखी जो इन्फेंट्री के दम पर ही संभव हुई।

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में योगदान


पड़ोसी देशों के साथ युद्ध के अलावा समय-समय पर देश में आतंरिक सुरक्षा और आपदा राहत कार्यों में भी भारतीय सेना हमेशा आगे रही है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भी भारतीय सेना ने अपना योगदान दिया है। कांगो, कोरिया, सुडान तथा अन्य कई जगह शांति स्थापित करने की कार्रवाई में भी भारतीय सेना ने अपना योगदान दिया।

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