Monday, January 15, 2018

Army Day :परमवीर चक्र अरुण खेतरपाल,जिसने अकेले उड़ा दिए थे पाकिस्तान के 7 टैंक

भारतीय सेना की जांबाजी के आपने ढेरों किस्से सुने होंगे होंगे। इन्हीं जांबाज सैनिकों में एक नाम है परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल। उन्होंने वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अकेले ही पाकिस्तानी सेना के 7 टैंक ध्वस्त कर दिए थे। उस समय अरुण खेत्रपाल की उम्र थी महज 21 वर्ष। अरुण खेतरपाल की जांबाजी के कुछ किस्से हम आपको बता रहे हैं जिन्हें जानकार आप भी भारतीय सेना के जवानों पर गर्व करेंगे।

17वीं पूना हॉर्स रेजिमेंट के थे अरुण खेत्रपाल


अरुण खेतरपाल भारत पाकिस्तान के बीच 1971 की लड़ाई के दौरान 17वीं पूना हॉर्स रेजिमेंट में थे। पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर शकरगढ़ इलाके में घुसने की कोशिश की थी। 16 मद्रास के कमांडिंग ने खबर भिजवाई थी कि एक बड़े हमले के लिए पाकिस्तानी टैंक जमा हो रहे हैं, अगर भारतीय टैंक समय पर नहीं पहुंचे तो उन्हें रोकना मुश्किल हो जाएगा। पाक आर्मी की घुसपैठ की खबर के बाद भारतीय सेना ने इस इलाके में प्रवेश किया। उन्हें 1500 वर्ग गज़ के इलाके को पार करना था जिसमें बारूदी सुरंगें बिछी हुई थीं जैसे ही पाकिस्तानियों ने जवाबी हमला शुरू किया 17 हॉर्स केबी स्क्वाड्रन के कमांडर ने पीछे से और टैंक भेजे जाने की मांग की। कैप्टन मल्होत्रा, लेफ़्टिनेंट अहलावत और सेकेंड लेफ़्टिनेंट अरुण खेत्रपाल को केबी स्क्वाड्रन की मदद के लिए भेजा गया। 16 दिसंबर की सुबह पूना हॉर्स के टैंक एक लाइन बनाते हुए आगे बढ़ गए।

जब 11 टैंकों से अकेले करना था सामना


मोर्चे पर किस्तानी सेना के 14 टैंक थे और भारतीय जवानों के पास थे सिर्फ 3 टैंक। टैंकों की संख्या के लिहाज से देखें तो मुकाबला गैर बराबरी का था लेकिन अरुण खेतरपाल और उनके साथियों को खुद पर भरोसा था। उन्होंने खुद को लड़ाई में झोंक दिया। देखते ही देखते भारतीय जवानों ने पाकिस्तानी सेना के 3 टैंक मार गिराए। मुकाबला 11 और 3 टैंकों के बीच हो गया। इस बीच भारत के 3 टैंकों में से 1 ध्वस्त हो गया। दुर्भाग्यवश दूसरे में खराबी आ गई। दुश्मन के पास 11 टैंक थे और भारत के पास केवल एक टैंक बचा था। अरुण खेत्रपाल इसी टैंक पर सवार थे।

'मेरी गन अभी भी काम कर रही है...आई विल गेट देम.....


अरुण खेतरपाल ने ने पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। दुश्मन के दो और टैंक नष्ट कर दिए। अचानक एक गोला अरुण खेत्रपाल के टैंक पर आ गिरा। टैंक में आग लग गई। रेडियो सैट पर उनका कमांडर उन्हें निर्देश दे रहा है कि अरुण टैंक को छोड़कर बाहर आ जाओ। लेकिन अरुण जवाब देते हैं 'मेरी गन अभी भी काम कर रही है...आई विल गेट देम.....' और इसके बाद वह रेडियो सैट बंद कर देते हैं। इसके बाद अरुण ने एक के बाद एक चार पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त किए। उनकी जांबाजी देख पाकिस्तानी टैंक मैदान छोड़कर भागने लगे। 

आखिरी सांस तक लड़ते रहे खेतरपाल


इस लड़ाई में कुछ ही गज की दूरी पर थे कर्नल एसएस चीमा। बीबीसी के साथ बातचीत में उन्होंने बताया, 'जिस आख़िरी टैंक पर अरुण ने निशाना लगाया वो पाकिस्तान के स्क्वाड्रन कमांडर का टैंक था। खेतरपाल ने उस टैंक पर निशाना लगाया और पाकिस्तानी टैंक ने भी खेतरपाल के टैंक पर फायर किया। पाकिस्तानी कमांडर तो कूद कर बच गया लेकिन खेतरपाल के टैंक पर एक बम गिरा और उसमें आग लग गई। अरुण अपने टैंक से बाहर नहीं निकल पाए और वहीं उन्होंने दम तोड़ दिया। अरुण खेत्रपाल के साथ टैंक में बैठे रिसालदार मेजर नत्थू सिंह भी इस युद्ध में तैनात थे। वह बताते हैं कि अरुण कितने बहादुर थे वह हमले की परवाह न करते हुए आगे बढ़ रहे थे और सिर्फ उनका मकसद था की वह ज्यादा से जयादा पाकिस्तानी टैंकों को तबाह कर दें। पाकिस्तानी कमांडर ने निशाना लगाया जो खेतरपाल के टैंक पर गिरा ये धमाका इतना तेज था कि अरुण की आंतें तक बाहर आ गई थीं लेकिन वह ऐसा वीर था जिसने हार नहीं मानी।

परमवीर चक्र पाने वाले जवान सबसे कम उम्र के जवान


आखिरी सांस तक लड़ने वाले भारत के इस सपूत को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस समय उनकी उम्र महज 21 बरस थी। उस वक्त परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले सबसे कम उम्र के जवान थे। उनके घर पर खबर पहुंची, 'डीपली रिगरेट टु इनफ़ॉर्म यू यॉर सन आईसी 25067, सेकेंड लेफ़्टिनेंट खेत्रपाल रिपोर्टेडली मर्टियर इन एक्शन 16 दिसंबर.।

पाकिस्तानी सेना के अफसर ने अरुण के पिता को कहा, मैं आपके बेटे को सेल्यूट करता हूं


अरुण के शहीद होने के बरसों बाद उनके पिता ब्रिगेडियर एमएस खेत्रपाल पाकिस्तान स्थित जन्मभूमि सरगोधा गए। लाहौर में एक पाकिस्तानी ब्रिगेडियर नासेर ने अपने घर में ठहराया। और उन्हें कहा कि  16 दिसम्बर 1971 की सुबह आपका बेटा मेरे हाथों ही मारा गया था। मैं और वह आमने-सामने थे। वह अपने देश के लिए लड़ रहा था और मैं अपने देश के लिए। आपका बेटा बहुत बहादुर था। हम दोनों ने साथ-साथ एक दूसरे पर निशाना लगाया था लेकिन भाग्य से मैं बच गया और उसे दुनिया से जाना पड़ा। यह तो मुझे बाद में पता चला कि उस समय वह सिर्फ 21 साल का था। मैं आपके बेटे को सेल्यूट करता हूं। आपको भी सेल्यूट करता हूं। आपकी परवरिश ने ही उसे इतना बहादुर बनाया। 

कमांडर ने युद्ध में शामिल करने से कर दिया था इन्कार


अरुण मोर्चे पर पहुंचे तो उनके कमांडर हनूत सिंह ने उन्हें लड़ाई में शामिल करने से मना कर दिया क्योंकि वह यंग ऑफ़िसर्स कोर्स पूरा नहीं कर पाए थे। अरुण ने यह कह कर उन्हें मनाया कि अगर वह इस युद्ध में भाग नहीं ले पाए तो शायद ही उन्हें अपने जीवन के दौरान युद्ध में शामिल होने का मौका मिल पाएगा। कर्नल हनूत सिंह मान तो गए लेकिन अरुण को निर्देश दिया कि उनके साथ एक वरिष्ठ सूबेदार भेज रहा हूं और हर मामले में वह सूबेदार की सलाह लें। लेकिन एक्शन शुरू होने के एक घंटे के अंदर ही उस सूबेदार के सिर में गोला लगा और वह शहीद हो गए।

लाहौर में गोल्फ खेलूंगा और जीत की पार्टी में पहनूंगा ब्लू सूट


अरुण उस समय अहमदनगर में यंग ऑफिसर्स कोर्स कर रहे थे जब उन्हें रेजिमेंट में भेजने का फैसला लिया गया। रास्ते में दिल्ली में वह कुछ देर के लिए अपने घर पर रुके। मोर्चे के लिए रवाना होने से पहले अरुण ने एक नीला सूट और गोल्फ स्टिक भी अपने सामान में रखी। पिता ने पूछा तुम लड़ाई पर जा रहे हो वहां इनका क्या करोगे।  अरुण ने कहा, मैं लाहौर में गोल्फ़ खेलूंगा और, जीत के बाद डिनर पार्टी तो होगी ही..., तब ये नीला सूट पहनूंगा। इसलिए ये सब ले जा रहा हूं।'

बस नहीं आई तो स्कूल से तीन किलोमीटर  पैदल चलकर पहुं गए घर


अरुण खेत्रपाल कभी घबराए नहीं। छोटी से उम्र में भी नहीं। उस वक्त वह सिर्फ सात वर्ष के थे। स्कूल से उन्हें घर जाना था लेकिन गाड़ी आई नहीं। वह अपना और अपने छोटे भाई का बैग कंधे पर लादकर घर की तरफ चल दिए। घर तीन किलोमीटर दूर था। रास्ते में छोटा भाई कई बार रोया लेकिन उसे समझाबुझाकर वह घर तक पहुंच गए। 

गरीब बच्चे को दे दिया था अपना स्वेटर


अरुण सिर्फ साहसी नहीं दयालु भी थे। स्कली दिनों में सर्दियों में उन्होंने अपना स्वेटर एक गरीब बच्चे को दे दिया था क्योंकि उसके पास स्वेटर नहीं था।  (सभी फोटो : साभार गूगल )

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