जब किसी युद्ध में जानवरों के योगदान की बात आती है, तो जेहन में कुत्तों और घोड़ों का ही ख्याल आता है, लेकिन क्या आपने कभी 'जैकी बबून' या 'लीजी हाथी' के बारे में सुना है? शायद नहीं, लेकिन ऐसे बहुत से जानवर हैं, जिन्होंने सैनिकों की तरह ही युद्धभूमि में अपना योगदान दिया है। कोई भी जानवर खुद युद्ध में जाने के विकल्प को नहीं चुनता, लेकिन जब उनका इस्तेमाल किया जाता है तो वे निस्वार्थ भावना से अपना कर्तव्य निभाते हैं। उनका यही नेचर एक जानवर को भी 'सच्चा हीरो' बना देता है। आइये जानते हैं ऐसे ही कुछ जानवरों के बारे में जिन्होंने कई लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मोर्चे पर भी अपना कौशल दिखाते हैं कुत्ते
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स्टेब्बी ने गैस अटैक सबसे पहले ही अपने सैनिकों को सचेत कर दिया है |
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान तकरीबन बीस हजार कुत्तों ने युद्ध में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी, जिनमे 'सार्जेंट' और 'स्टेब्बी' डॉग्स प्रुमख हैं। स्टेब्बी ने सबसे पहले अपने सैनिकों को गैस अटैक की चेतावनी दी थी। वहीँ रोमन सेना के पास कुत्तों की पूरी एक कंपनी थी, जिन्हें खास कॉलर और पैरों में एंकल पहनाए जाते थे। कुत्तों को बारुदी सुरंग सूंघने और बम धमाकों में घायल लोगों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, इन्हें एंटी टैंक डॉग्स कहा जाता था।
साउथ अफ्रीकन 'बबून सोल्जर'
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अपने हैंडलर के घायल हो जाने पर 'जैकी बबून सोल्जर' ने उसकी तब तक मदद की जब तक स्ट्रेचर नहीं पहुँच गया |
बबून सोल्जर 'जैकी बबून' प्रथम विश्व युद्ध में 3 साउथ अफ्रीकन (3-SA) इन्फैंटरी का शुभंकर था। बाद में उसे ट्रांसवाल रेजिमेंट का शुभंकर बनाया गया और उसे बटन वाली यूनिफार्म व कैप भी दी गई थी। जैकी ने युद्धक्षेत्र में सैनिकों को राशन भेजा, उसे बाकायदा अपने अफसरों को सैल्यूट करना भी आता था। युद्धक्षेत्र में ही अपने बचाव के लिए पत्थरों की दीवार बनाने की कोशिश करते हुए वह घायल हो गया। जैकी की टांग में गोली लगी थी, उसका ऑपरेशन कर उसकी सेवा रोक दी गई।
दुश्मन की खूब खबर देते हैं कबूतर
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फ्रेंच ट्रूप्स कबूतरों को खास ट्रेवलिंग बास्केट और गैस प्रूफ बॉक्स में रखते थे |
संदेश वाहक के रूप में कबूतर का तकरीबन 5,000 साल से भी अधिक समय से इस्तेमाल किया गया है। उनके महत्वपूर्ण संदेशों ने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हजारों लोगों के जीवन को बचाया। उनके अच्छे दिशा ज्ञान के कारण दूसरे विश्व युद्ध में सिर्फ ब्रिटेन ने दूर दराज में संदेश भेजने के लिए दो लाख कबूतर इस्तेमाल किए।'चेरअमी' नाम के कबूतर को अपने साहस संदेश वितरण के लिए 'डिकिन' सम्मान दिया गया था, जिसने घायल होने के बावजूद कई सैनिकों की जान बचाई थी।
हर युद्ध का प्रमुख हिस्सा रहे घोड़े
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युद्ध स्थल में तैनात घोड़े के साथ सैनिक |
इन्सान
ने 4,000 ईसा पूर्व के मध्य एशिया में घोड़ों का पालन शुरू किया था और उनका इस्तेमाल इतिहास के ज्यादातर युद्धों में किया गया। घोड़ों ने अनगिनत लड़ाइयों में भाग लिया है। प्रथम विश्व युद्ध में तकरीबन आठ लाख से अधिक घोड़ों की मौत हो गई थी। '61 कैवलरी रेजिमेंट' भारतीय सेना की एक मात्र 'अश्वारोही हॉर्स कैवलरी रेजिमेंट' है।
ऊंट के बेहतर साथ को देखते हुए बनाई गई 'कैमल ब्रिगेड'
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घायलों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाते थे ऊंट |
घायलों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाते थे ऊंट
साल 1915 में कैमल ब्रिगेड का गठन हुआ लेकिन रोमन साम्राज्य के बाद से युद्ध में ऊंट का इस्तेमाल किया गया है। यहां 1917 के दौरान बड़ी संख्या में ऊंटों का इस्तेमाल घायल सैनिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने में किया जाता था। दोनों विश्वयुद्ध में जौहर दिखाने वाले ये 'सिपाही' अपने आप में अद्भुत हैं और आज भी बीकानेर (राजस्थान) की ऊंट रेजिमेंट बीएसएफ का अभिन्न हिस्सा है।
हाथी ने भी खूब दिखाया दम-खम
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रोमन सेना ने हाथियों को सामन ढोने मलबा हटाने के लिए युद्धक्षेत्र में रखा था |
हैनिबल युद्ध (रोम)में हाथियों को पहली बार युद्ध में शामिल किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध में 'लीजी' नामक हाथी को टॉमी वार्ड के कारखाने में मदद करने के लिए शामिल किया गया। यहां कई हाथी युद्ध के मैदानों में भारी हथियारों और युद्ध सामग्री ढोने में सहयोग करते थे।
जहाज के शुभंकर बनाए गए कछुए
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जहाज के शुभंकर के रूप में रखे जाते थे कछुए |
'अली पाशा' और 'ब्लैक' ऐसे ही कछुए हैं जिन्हें अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता है। पहले कछुओं का इस्तेमाल शुभंकर के रूप में किया गया था। टिमोथी, क्रीमियन युद्ध में जहाज के शुभंकर के रूप रखा जाता था और 'जोनाथन' नाम का कछुआ बोअर युद्ध में सैनिकों के साथ दिखाई दिया था।
पानी के भीतर खतरे से सावधान करती थीं डॉल्फ़िन
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पानी के नीचे खतरों को भांप लेती थी डॉलफिन |
सैन्य प्रशिक्षित डॉल्फ़िन पानी के नीचे की माइंस को खोजने और नौसैनिक तैराकों को बचाने का काम करती थी। पानी के नीचे बिछाई गई बारुदी सुरंगों का पता लगाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता था। उनका प्रशिक्षण सैन्य कुत्तों के प्रशिक्षण के समान ही किया जाता था लेकिन उन्हें ये ट्रेनिंग पानी के भीतर दी जाती थी।
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