अभी कल ही की बात है कि हम बैठे-बैठे बोर हो गए, जरा बहुत नहीं फुलटु तरीके से। कैसे हुए? चलिए आपको यह भी बता देते हैं। जैसे ही हमें लगा कि हम थोड़ी देर में बोर होने वाले हैं, तो हम पहले बिना कुछ किए ही बैठे रहे, फिर सोचते-सोचते पूरे ब्रहमाण्ड की सुर नगरी का चक्कर लगाया, फिर अपनी किस्मत को कोसा तब जाकर थोड़े अनमने से हुए। मतलब थोड़ी उदासी पल्ले पड़ी और फाईनली बोर होकर ही माने।
कुछ देर बाद जब बोर होने का दूसरे पहलु का आनंद उठाना चाहा , तो एक शुभचिंतक ने आकर तपाक से अपना सवाल ठोक दिया हमारे सिर पर। क्या था सवाल? अजी सवाल था बोर हो रहे हो ? उन्होनें कहा तो धीरे से ही था, मगर आजकल कान भी तो कम तेज नहीं होते लोगों के, सो आ गए सब के सब एक सवाल का उत्तर दिया नहीं था कि दुसरा फिर थोप दिया गया।
बोर हो रहे हो तो फिर हंस क्यों रहे हो...? लो जी उन्हें मेरे बोर होने से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि मेरी मरी सी मुस्कुराहट से एतराज था। दोस्ती का लिहाज कर गए होंगे वरना सीधा यही कहना चाह रहे होंगे कि बोर होते समय मुस्कुराते हुए शर्म नहीं आती।
इतने में एक और मित्र ने तान लगाई बोर हो रहे हो..... हा, हा, हा,हा.!
हमने कहा कि लो अब हम खुद थोड़े ही चाह रहे हैं बोर होना, अब स्थिति ही ऐसी है। इतना कहा ही था कि सलाह देने के लिए सब के सब जान को आ गए। एक ने कहा कि इस वेबसाइट को क्लिक करो सारी बोरियत दूर हो जाएगी, शायद उन्हें पता नहीं होगा कि उससे हमारी छोटी बोरियत दूर होकर बड़ी बोरियत जरूर मिल जाएगी। कुछ बोले अखबार पढलो दुनिया की खैर खबर लो। एक बोले योगा कर लो..,अब उन्हें क्या मालूम कि 90 डिग्री से ज्यादा मुड़ते ही हमें अपनी रीढ़ की हड्डी टूटने का डर रहता है। खैर, एक दो ने चाय पी लेने की सलाह दी उनकी सलाह थोड़ी ठीक लगी, लेकिन खर्चे क डर से बोरियत को ही तरजीह दी, लेकिन मतलब यही था कि वह हमसे बोरियत को छीनना चाहते थे। वो तो बस हमने अपनी इच्छाशक्ति को कमजोर नहीं होने दिया वरना इतनी मेहनत से पाली पोसी बोरियत का खून हो जाता मेरे हाथों। वह सभी तो चले जाते, मगर हम बोरियत के कत्ल के इल्जाम में खुद को बरी न कर पाते। मेरा मानना है कि एक पूर्ण रूपेण दुखी जीवन जीने वाले व्यक्ति को बोर होते रहना चाहिए, यानी घर से बाहर निकलते ही बोरियत को बिंदास तरीके से सिर पर ओढ लेना चाहिए। और दोस्तों की बिल्कुल मत सुनिए, वरना बोर नहीं होने देंगे आपको। अब वही तो हम भी कर रहे थे आज हमे एहसास हो रहा था कि पहली बार हम पूरा दिन ठीक से बोर हो पाए। थोड़ी देर बाद हमारे किसी प्रियजन का फोन आ गया हमने बोर होते-होते ही फोन उठाने वाले शुभ कार्य में देर नहीं की। उनकी कोई समस्या थी जो हल नहीं हो रही थी, हमने भी मरी सी आवाज में तरीके सुझाए और पूछते रहे कि हल हुआ या नहीं, मगर वह समझ नहीं पाए। थोड़ी देर बाद वह बोले कि वह बोर हो गए...। हमने कहा कि आप बोरियत में तीन पांच करवाओगे तो यही होगा। बोरियत में कैलकुलेशन गड़बड़ा ही जाता है। हमने क हा ठीक है अब तुम बोर हो लो, हम जरा एक काम से शहर तक घूम आएं। अब निकलते ही दो -चार कदम चलते ही देखा कि एकदम चकाचक ट्रेफिक है। रोड के एक कोने से दूसरे कोने तक बेफिक्र फैला हुआ है। अब किसलिए फैला है? निठल्ला है न। कोई काम धाम है नही इसे, रोज सुबह आकर पूरे शहर में मकड़जाल की तरह फैल जाता है अब ऐसे ही थोड़े ही मेहनत लगती है जाम को इस तरह फैलने मे, सबसे पहले लापरवाह होना पड़ता है फिर जल्दबाज और बिंदास बनना पड़ता हैं। तब जाकर कांफिडेंस के साथ फैलता है। खैर किसी तरह हम अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने सफल हुए मगर वहां जिन महाशय से मिलना था उनके आने में थोड़ा समय था। सो हम हॉल में पड़ी कु र्सियों पर टिक गए वहां एक युवक नीचे मुंह करे बेंच पर बैठा अपने बराबर में बैठी युवती की बातों को सुन रहा था। मेरी नजर उन पर गई उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि दौनों कुछ ही दिन पहले मिले होंगे फिर मुझे लगा कि वह युवक भी बोर हो रहा था, सो मैंने उनकी बातों पर गौर किया। युवती ने कहा कि उसके लखनऊ वाले मामा के यहां एक पार्टी है और वह उसे वहां बुलाना चाहती है मगर युवक किसी जरूरी मीटिंग का वास्ता देते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था कोई भी समझने को तैयार नहीं था दौनों एक दूसरे पर खीझ रहे थे। अंतत: वह युवक वहां से उठकर चला गया उसके पीछे वह युवती भी वहां से चली गई मतलब साफ था वह उस युवक को जबरदस्ती बोर करने पर तुली हुई थी, जबकि वह बोर नहीं होना चाहता था और एक हम थे जो खुद बोर होने के लिए मेहनत कर रहे थे।
वह दौनों तो चले गए और हम फिर से इंतजारी महाशय के इंतजार में लंबी सांस लेते हुए अकेले बैठकर बोर होने लगे ।अब आपको ही देख लीजिए, असर आ ही गया न हमारी बोरियत का आप पर भी, लेकिन हम अकेले ही बोर होना चाहते हैं, कहीं आप ने हमारी बोरियत बांट ली तो हमारी तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। इसलिए आप कुछ मत सोचिए बेफिक्र रहिए हमे ही बोर होने दीजिए।
कुछ देर बाद जब बोर होने का दूसरे पहलु का आनंद उठाना चाहा , तो एक शुभचिंतक ने आकर तपाक से अपना सवाल ठोक दिया हमारे सिर पर। क्या था सवाल? अजी सवाल था बोर हो रहे हो ? उन्होनें कहा तो धीरे से ही था, मगर आजकल कान भी तो कम तेज नहीं होते लोगों के, सो आ गए सब के सब एक सवाल का उत्तर दिया नहीं था कि दुसरा फिर थोप दिया गया।
बोर हो रहे हो तो फिर हंस क्यों रहे हो...? लो जी उन्हें मेरे बोर होने से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि मेरी मरी सी मुस्कुराहट से एतराज था। दोस्ती का लिहाज कर गए होंगे वरना सीधा यही कहना चाह रहे होंगे कि बोर होते समय मुस्कुराते हुए शर्म नहीं आती।
इतने में एक और मित्र ने तान लगाई बोर हो रहे हो..... हा, हा, हा,हा.!
हमने कहा कि लो अब हम खुद थोड़े ही चाह रहे हैं बोर होना, अब स्थिति ही ऐसी है। इतना कहा ही था कि सलाह देने के लिए सब के सब जान को आ गए। एक ने कहा कि इस वेबसाइट को क्लिक करो सारी बोरियत दूर हो जाएगी, शायद उन्हें पता नहीं होगा कि उससे हमारी छोटी बोरियत दूर होकर बड़ी बोरियत जरूर मिल जाएगी। कुछ बोले अखबार पढलो दुनिया की खैर खबर लो। एक बोले योगा कर लो..,अब उन्हें क्या मालूम कि 90 डिग्री से ज्यादा मुड़ते ही हमें अपनी रीढ़ की हड्डी टूटने का डर रहता है। खैर, एक दो ने चाय पी लेने की सलाह दी उनकी सलाह थोड़ी ठीक लगी, लेकिन खर्चे क डर से बोरियत को ही तरजीह दी, लेकिन मतलब यही था कि वह हमसे बोरियत को छीनना चाहते थे। वो तो बस हमने अपनी इच्छाशक्ति को कमजोर नहीं होने दिया वरना इतनी मेहनत से पाली पोसी बोरियत का खून हो जाता मेरे हाथों। वह सभी तो चले जाते, मगर हम बोरियत के कत्ल के इल्जाम में खुद को बरी न कर पाते। मेरा मानना है कि एक पूर्ण रूपेण दुखी जीवन जीने वाले व्यक्ति को बोर होते रहना चाहिए, यानी घर से बाहर निकलते ही बोरियत को बिंदास तरीके से सिर पर ओढ लेना चाहिए। और दोस्तों की बिल्कुल मत सुनिए, वरना बोर नहीं होने देंगे आपको। अब वही तो हम भी कर रहे थे आज हमे एहसास हो रहा था कि पहली बार हम पूरा दिन ठीक से बोर हो पाए। थोड़ी देर बाद हमारे किसी प्रियजन का फोन आ गया हमने बोर होते-होते ही फोन उठाने वाले शुभ कार्य में देर नहीं की। उनकी कोई समस्या थी जो हल नहीं हो रही थी, हमने भी मरी सी आवाज में तरीके सुझाए और पूछते रहे कि हल हुआ या नहीं, मगर वह समझ नहीं पाए। थोड़ी देर बाद वह बोले कि वह बोर हो गए...। हमने कहा कि आप बोरियत में तीन पांच करवाओगे तो यही होगा। बोरियत में कैलकुलेशन गड़बड़ा ही जाता है। हमने क हा ठीक है अब तुम बोर हो लो, हम जरा एक काम से शहर तक घूम आएं। अब निकलते ही दो -चार कदम चलते ही देखा कि एकदम चकाचक ट्रेफिक है। रोड के एक कोने से दूसरे कोने तक बेफिक्र फैला हुआ है। अब किसलिए फैला है? निठल्ला है न। कोई काम धाम है नही इसे, रोज सुबह आकर पूरे शहर में मकड़जाल की तरह फैल जाता है अब ऐसे ही थोड़े ही मेहनत लगती है जाम को इस तरह फैलने मे, सबसे पहले लापरवाह होना पड़ता है फिर जल्दबाज और बिंदास बनना पड़ता हैं। तब जाकर कांफिडेंस के साथ फैलता है। खैर किसी तरह हम अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचने सफल हुए मगर वहां जिन महाशय से मिलना था उनके आने में थोड़ा समय था। सो हम हॉल में पड़ी कु र्सियों पर टिक गए वहां एक युवक नीचे मुंह करे बेंच पर बैठा अपने बराबर में बैठी युवती की बातों को सुन रहा था। मेरी नजर उन पर गई उनकी बातों से ऐसा लग रहा था कि दौनों कुछ ही दिन पहले मिले होंगे फिर मुझे लगा कि वह युवक भी बोर हो रहा था, सो मैंने उनकी बातों पर गौर किया। युवती ने कहा कि उसके लखनऊ वाले मामा के यहां एक पार्टी है और वह उसे वहां बुलाना चाहती है मगर युवक किसी जरूरी मीटिंग का वास्ता देते हुए समझाने की कोशिश कर रहा था कोई भी समझने को तैयार नहीं था दौनों एक दूसरे पर खीझ रहे थे। अंतत: वह युवक वहां से उठकर चला गया उसके पीछे वह युवती भी वहां से चली गई मतलब साफ था वह उस युवक को जबरदस्ती बोर करने पर तुली हुई थी, जबकि वह बोर नहीं होना चाहता था और एक हम थे जो खुद बोर होने के लिए मेहनत कर रहे थे।
वह दौनों तो चले गए और हम फिर से इंतजारी महाशय के इंतजार में लंबी सांस लेते हुए अकेले बैठकर बोर होने लगे ।अब आपको ही देख लीजिए, असर आ ही गया न हमारी बोरियत का आप पर भी, लेकिन हम अकेले ही बोर होना चाहते हैं, कहीं आप ने हमारी बोरियत बांट ली तो हमारी तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी। इसलिए आप कुछ मत सोचिए बेफिक्र रहिए हमे ही बोर होने दीजिए।
बहुत अच्हा
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