हाथ मेरे छोटी-सी डलिया
होतीं जिसमें फूल की कलियां
जाती थी मैं जब बन-ठन कर
होली-दिवाली गांव में घर-घर
जो तब था अब छूट गया
वक्त का दामन छूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,
गर्मी के मौसम में पेड़ों पर
चिड़िया का आशियां बनाना
चतुर गिलहरी पर छुप-छुप कर
पिचकारी से रंग गिराना
वही खिलौना कैसे जोडूं
कांच का था जो टूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,
सुरे-बेसुरे नगमे गाना
रात को दादा संग बतियाना
मैं तो बस आजाद उड़ूंगी
आसमान की सैर करूंगी
कहां वो बातें कही-अनकही
कौन वो सपने लूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया।
होतीं जिसमें फूल की कलियां
जाती थी मैं जब बन-ठन कर
होली-दिवाली गांव में घर-घर
जो तब था अब छूट गया
वक्त का दामन छूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,
गर्मी के मौसम में पेड़ों पर
चिड़िया का आशियां बनाना
चतुर गिलहरी पर छुप-छुप कर
पिचकारी से रंग गिराना
वही खिलौना कैसे जोडूं
कांच का था जो टूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया,
सुरे-बेसुरे नगमे गाना
रात को दादा संग बतियाना
मैं तो बस आजाद उड़ूंगी
आसमान की सैर करूंगी
कहां वो बातें कही-अनकही
कौन वो सपने लूट गया
आज कहानी किसे सुनाऊं
क्यों वो बचपन रूठ गया।
बढ़िया।... वैसे भी बचपन की यादें किसे बुरी लगती हैं।
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