जब मैं सफर में होती हूं,
तन स्थिर होता है लेकिन
मन को मिल जाते हैं विषय अनंत।
मिल जाती है धूमिल पृथ्वी पर कहीं थोड़ी हरियाली,
और ज्Þारा सा खुश होने को थोड़ी खुशियां।
मिलते हैं बहुत चेहरे पहचानने को,
खामोश रहकर भी जो कह जाते हैं कई कहानियां।
मिलते हैं कतार में पीछे की ओर भागते हुए पेड़,
बिजली के खंभे और स्कूल,
अडिग विशाल और खड़े सेवा को तत्पर।
दाढ़ी वाले बूढेÞ मुल्ला भी मिलते हैं
टूटी झोंपड़ी में करते खेतों की रखवाली
लिए तलब मगरिब की नमाज़ की।
मिल जाता है लिए कोई अखबार हाथ में
कई तरह के मुहं बनाता हुआ पढ़ता खबरें आज की।
मिलता हैं मां के इंतजार में
खेत की मेढ़ पर बैठा बच्चा
बेचैन होकर किनारे से चुनता हुआ सपनों के कंकर।
जब शाम होती है तो गांव की पगडंडियों पर
मुझे मिलती हैं बहुत सारी बालिकाएं
बढ़ते अंधेरे को पीछे धकेलकर तेजी से घर जाती हुई।
कई बार सफर में बज उठती है मेरे फोन की घंटी
मधुर लगती है जब तक बजता है संगीत इसमें
फिर मेरे दृश्यों को आनंद छीन लेती है यह।
अधूरी रह जाती है कविताएं मेरी
अतृप्त रह जाता है मन यर्थाथ चित्रों से ।
कल फिर से कहीं सफर पर होंगे हम
मिलेंगे मन को क ई विरले विषय,
और फिर बजेगी मेरे फोन की घंटी और
फिर से फूटेंगे कुछ शब्द मस्तिष्क में
फिर रह जाएगी कोई कविता अधूरी।
तन स्थिर होता है लेकिन
मन को मिल जाते हैं विषय अनंत।
मिल जाती है धूमिल पृथ्वी पर कहीं थोड़ी हरियाली,
और ज्Þारा सा खुश होने को थोड़ी खुशियां।
मिलते हैं बहुत चेहरे पहचानने को,
खामोश रहकर भी जो कह जाते हैं कई कहानियां।
मिलते हैं कतार में पीछे की ओर भागते हुए पेड़,
बिजली के खंभे और स्कूल,
अडिग विशाल और खड़े सेवा को तत्पर।
दाढ़ी वाले बूढेÞ मुल्ला भी मिलते हैं
टूटी झोंपड़ी में करते खेतों की रखवाली
लिए तलब मगरिब की नमाज़ की।
मिल जाता है लिए कोई अखबार हाथ में
कई तरह के मुहं बनाता हुआ पढ़ता खबरें आज की।
मिलता हैं मां के इंतजार में
खेत की मेढ़ पर बैठा बच्चा
बेचैन होकर किनारे से चुनता हुआ सपनों के कंकर।
जब शाम होती है तो गांव की पगडंडियों पर
मुझे मिलती हैं बहुत सारी बालिकाएं
बढ़ते अंधेरे को पीछे धकेलकर तेजी से घर जाती हुई।
कई बार सफर में बज उठती है मेरे फोन की घंटी
मधुर लगती है जब तक बजता है संगीत इसमें
फिर मेरे दृश्यों को आनंद छीन लेती है यह।
अधूरी रह जाती है कविताएं मेरी
अतृप्त रह जाता है मन यर्थाथ चित्रों से ।
कल फिर से कहीं सफर पर होंगे हम
मिलेंगे मन को क ई विरले विषय,
और फिर बजेगी मेरे फोन की घंटी और
फिर से फूटेंगे कुछ शब्द मस्तिष्क में
फिर रह जाएगी कोई कविता अधूरी।
बहुत खूब !....भावों की बहुत प्रभावी और सशक्त प्रस्तुति...
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