On 8th March Women's Day
आते जाते जो घटता है हर और सहा,
किसी काम को जिसने कभी न नहीं कहा।
बेहतर दिन की आशा में हर रोज निराशा सहती है
स्त्री है वह
आराम नहीं है पसंद उसे न ही तुमकों तन्हा रहने देती है
स्त्री है वह, जो गुजारती है दिन मुस्कुराते हुए
मगर सोती है सिसकती रातें लेकर,
स्त्री है वह
वह, जो दिखती है बहुत मजबूत किंतु
महसूस करती है बहुत कमजोर
स्त्री है वह जो, खुद को संभालती है स्वयं
गिर पड़ती है जब हर मोड़ पर
स्त्री है वह
खुद को खोकर मिटाती है दर्द तेरा
स्त्री है वह जो अपने वजूद की ख्वाहिश में
एक उम्र गंवाती है।
आते जाते जो घटता है हर और सहा,
किसी काम को जिसने कभी न नहीं कहा।
बेहतर दिन की आशा में हर रोज निराशा सहती है
स्त्री है वह
आराम नहीं है पसंद उसे न ही तुमकों तन्हा रहने देती है
स्त्री है वह, जो गुजारती है दिन मुस्कुराते हुए
मगर सोती है सिसकती रातें लेकर,
स्त्री है वह
वह, जो दिखती है बहुत मजबूत किंतु
महसूस करती है बहुत कमजोर
स्त्री है वह जो, खुद को संभालती है स्वयं
गिर पड़ती है जब हर मोड़ पर
स्त्री है वह
खुद को खोकर मिटाती है दर्द तेरा
स्त्री है वह जो अपने वजूद की ख्वाहिश में
एक उम्र गंवाती है।
स्त्री है वह जो खुद को संभालती है
ReplyDeleteगिर पड़ती है जब ...
स्त्री है वह जो अपने वजूद की ख्वाहिश में
एक उम्र गंवाती है.
अच्छा प्रयास है. और बेहतर की उम्मीद है.
अच्छा लगा...........
Deleteकाफी दिनों बाद मैनें भी कुछ लिखा था और कोई प्रतिक्रिया भी नहीं मिल रही।
बहुत धन्यवाद
हर एक भावना मन को छूती हुई......बहुत सुन्दर प्रवाहमयी रचना
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