Wednesday, February 5, 2020

देश के महत्वपूर्ण छोर के पहरेदार हैं सेना के 'स्नो वारियर्स' : 'लद्दाख स्काउट्स' की 11 खास बातें


आप शायद इन्हें नहीं जानते हों लेकिन ये वही 'नुनू' हैं जिनसे चीन और पाकिस्तान की सेना खौफ खाती हैं। देश के उत्तरी-पूर्वी छोर का यह इलाका सुरक्षा के लिहाज से जितना खास है इसकी सुरक्षा करना उतना ही मुश्किल है। लेकिन इन्हें अपनी जान पर खेलकर जीत हासिल करना आता है। लद्दाख स्काउट्स की बहादुरी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस रेजीमेंट के दस में से एक जवान को बहादुरी का तमगा मिला हुआ है। आज आपको रूबरू करा रहे हैं इस रेजीमेंट से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों से  :

सबसे मुश्किल मोर्चा पर रहते हैं तैनात 


सियाचिन दुनिया का सबसे मुश्किल मोर्चा और सबसे सबसे खतरनाक युद्ध क्षेत्र, एक ऐसा जंग का मैदान जहां सर्दी हड्डियों को चीरती हुई महसूस होती है। जहां आम इंसान की जिन्दगी वजूद से जूझती है लेकिन यहां तैनात रहते हैं भारतीय सेना की लद्दाख स्काउट्स के वो शेर जो इस दुर्गम और अथाह ऊंचे क्षेत्र में देश की सरहदों की रक्षा करते हैं।

दुश्मन के लिए मौत के फरिश्ते हैं रेजीमेंट के जवान


लद्दाख स्काउट एक कम जानी पहचानी रेजीमेंट है। पर नाम से भी ज्यादा बोलता है इनका   काम। इन्हें न तो सर्दी हिला पाती है और न ही ये पहाड़ इनके हौसले परस्त कर पाते हैं। ऐसे पथरीले पहाड़ और चट्टानें जिनसे जिन्दगी खौफ खाती है। रेजीमेंट के जवानों के लिए ये खेल के मैदान जैसे हैं। लेकिन जब दुश्मन इन्हें आंख दिखाता है तो इन्हीं चट्टानों के पीछे से निकलते हैं मौत के फरिश्ते।

कहलाते हैं सन ऑफ सवायल


ये रेजीमेंट इतनी खतरनाक है कि दुश्मन भी इनसे बेवजह आंख नहीं मिलाता और अगर मिलाता भी है तो उसकी कीमत उसे जान देकर चुकानी पड़ती है, चाहे वह पकिस्तान हो या चीन। सीमा पर इनकी मौजूदगी ही इस बात का प्रमाण है कि सरहद पर सब सही सलामत है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी युद्ध का मौका आया है यह रेजीमेंट पूरी जांबाजी से से लड़ी है। यही कारण है कि इस रेजीमेंट के जवानों को 'सन ऑफ सवायल' कहा जाता है। पूर्वी लद्दाख  जो सही मायने में इनका घर भी है। रेजीमेंट के ज्यादातर जवान इसी स्थान से आते हैं और उन्हें यहां प्यार से 'नुनू' कहा जाता है जिसका मतलब होता है छोटा भाई। लेकिन सेना के ये छोटे भाई या नुनू युद्ध के मैदान में बड़ी जिम्मेदारियां लेने से पीछे नहीं हटते हैं।

1947- 48 में हुई रेजीमेंट की स्थापना


आजादी के बाद यह रेजीमेंट भारतीय सेना का हिस्सा बनी। इस रेजीमेंट का बरसों का सफर वीरता, सम्मान और गौरव गाथाओं से भरा हुआ है। सन 1947- 48 में पाकिस्तानी हमले के दौरान रेजीमेंट की स्थापना हुई और लद्दाख के निवासी जो जोश के साथ अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए खड़े हुए। उनका यह पराक्रम पूरे देश के लिए गौरव की एक मिसाल है।

इनके सामने नहीं टिक पाए थे चीनी सैनिक


सन 1962 में चीन के हमले के समय भी लद्दाख के लोगों ने अपनी बहादुरी, साहस और बलिदान का परिचय देकर कीर्ति अर्जित की है। यकीनन ये रेजीमेंट वास्तव में हिमालय की रक्षक है।

हर दसवें जवान को बहादुरी के लिए मिला है सम्मान


लगभग आधी सदी के समय में  इस रेजीमेंट ने कुल 605 सम्मान और पदक प्राप्त किये हैं। यह रेजीमेंट के  सैनिकों की असाधारण वीरता और विशिष्ट सेवा का प्रमाण है और हमारी सेना के सभी जवानों और अधिकारियों के लिए एक आदर्श भी है। इसने अनेक युद्धों और ऑपरेशनों में अपनी विशेष पहचान बनाई। साथ ही खेलों, रोमाचंक गतिविधियों और पेशेवर चुनौतियों में भी  बेहतरीन प्रदर्शन किया है।

ऑपरेशन विजय में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका


साहस और दृढ़ता के बल पर इसने सन 1971 में भारत की लगभग 804 वर्ग किलोमीटर के डॉग हिल इलाके को मुक्त कराया और इसके लिए रेजीमेंट को बैटल ऑनर 'तुरतुक' से सम्मानित किया गया। वर्ष 1999 के 'ऑपरेशन विजय ' में बैटल ऑनर 'बटालिक' और थियेटर ऑनर कारगिल से भी सम्मानित किया गया है।

शान्ति मिशन में भी रहा है इनका योगदान


यह रेजीमेंट सियाचिन ग्लेशियर में 'ऑपरेशन मेघदूत' में भी सबसे आगे रही है पूर्वी लद्दाख में  ये जवान हमेशा ही सबसे आगे रहे हैं। वर्ष 1999 के ऑपरेशन विजय के दौरान अमूल्य योगदान के लिए इस रेजीमेंट को 'चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बैनर' पुरस्कार और 'यूनिट साइटेशन' हासिल किये हैं यही नहीं रेजीमेंट की एक बटालियन ने लेबनान में  संयुक्त राष्ट्र के शान्ति मिशन में  विशिष्ट योगदान दिया है।

ढेरों पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं 'स्नो वारियर्स'


यह आर्मी की एक पैदल रेजीमेंट है जिसकी कुल पांच बटालियन हैं। इन्हें 'स्नो वारियर्स' या 'स्नो टाइगर्स' के नाम से भी जाना जाता है। रेजीमेंट का वार क्राई यानी युद्धघोष- 'की की सो सो लहरग्यालो' यानी 'विक्टरी टू गॉड' है। रेजीमेंट को तकरीबन 300 से भी ज्यादा वीरता पुरस्कार मिल चुके हैं। जिनमें 1 अशोक चक्र,11 महावीर चक्र, 2 कीर्ति चक्र, 2 अति विशिष्ट मैडल, 26 वीर चक्र, 6 शौर्य चक्र, 3 युद्ध सेवा मैडल,64 सेना मैडल,13 विशिष्ट सेवा मैडल शामिल हैं।

No comments:

Post a Comment