आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे प्रथम विश्व युद्ध के दौरान,इंग्लैण्ड के एक शाही पैवेलियन को ब्रिटिश भारतीय सेना के घायल हुए सैनिकों के लिए एक अस्पताल के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। और यह ब्रिटेन में सबसे प्रसिद्ध सैन्य अस्पतालों में से एक बन गया। सन 1914 से 1916 तक यह पश्चिमी मोर्चे पर युद्धक्षेत्र में घायल हो गए भारतीय सैनिकों के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद 1916 से 1920 तक यह पैवेलियन उन ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक अस्पताल के रूप में इस्तेमाल किया गया था जिन्होंने युद्ध में हाथ या पैर खो दिए थे।
प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती कुछ महीनों में ब्रिटिश भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पश्चिमी मोर्चे पर फ़्रांस में भयंकर युद्ध में डटी हुई भारतीय सेना के सैनिक बड़ी संख्या में हताहत हो रहे थे जिन्हें चिकित्सकीय सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता थी लेकिन फ़्रांस में न तो सुविधाएं और न ही कोई विशेषज्ञता थी। इसलिए उन्हें वहां से इंग्लैण्ड लाने की योजना बनाई गई।
ऐसे में ब्राइटन को घायल और बीमार भारतीय सैनिकों की देखभाल के लिए समर्पित किया गया और इसे सैन्य अस्पतालों के परिसर के स्थान के रूप में चुना गया था। इस उद्देश्य के लिए शहर के अधिकारियों द्वारा तीन भवनों को दिया गया: वर्क हाउस (जिसका नाम बाद में Kitchener अस्पताल में बदला गया), द यॉर्क प्लेस स्कूल और रॉयल पैवेलियन। इन तीन स्थानों को सैन्य अस्पताल परिसर के रूप में इस्तेमाल किये जाने के लिए तैयार किया जाने लगा।
ब्राइटन में सैनिकों के लिए खुलने वाला रॉयल पैविलियन भारतीय सैनिकों के लिए पहला अस्पताल था। इसके दो महल डोम और कॉर्न एक्सचेंज (एक ऐसी इमारत थी जहां किसानों और व्यापारियों ने अनाज का कारोबार किया) दो सप्ताह से भी कम समय में चिकित्सा सुविधा के रूप में परिवर्तित हो गए थे।
यहां नई पाइपलाइन और शौचालय की सुविधा स्थापित की गई, और नए वार्डों में 600 बिस्तरों की स्थापना की गई। यही नहीं, एक्स-रे उपकरण भी स्थापित किए गए royal पैलेस कि आलीशान रसोई को दूसरा ऑपरेटिंग थिएटर बना दिया गया। दिसंबर 1914 की शुरुआत में इस पैवेलियन में मरीजों का आना शुरू हुआ। इसके अगले ही वर्ष तकरीबन 2,300 से अधिक भारतीय सैनिक मरीजों का यहां इलाज हुआ।
ख़ास बात यह भी थी कि अस्पताल को न केवल सैनिकों की चिकित्सा आवश्यकताओं की देखभाल के लिए डिज़ाइन किया गया था बल्कि मरीजों की धार्मिक सांस्कृतिक और खानपान जरूरतों के लिए भी विशेष सुविधाएं दी गईं।
खुले मैदान में ही नौ रसोईयां बनाईं गईं। पूर्वी लॉन में प्रार्थना के लिए जगह बनाई गई।
ब्राइटन अस्पतालों में मारे गए उन भारतीय सैनिकों के लिए भी विस्तृत व्यवस्था की गई,जिनमें से 18 का रॉयल पैवेलियन में इलाज के दौरान निधन हो गया था। सिखों और हिंदुओं को पचाम के पास खुली हवा में अंतिम संस्कार के लिए एक स्थल प्रदान किया गया था और मुस्लिमों को वोकिंग में बने एक कब्रिस्तान की कब्र में दफनाया गया था।
बाद में 1915 में ब्रिटिश ने मध्य-पूर्व में भारतीय सेना की तैनाती करने का निर्णय लिया और ज्यादातर भारतीय सैनिकों को यूरोप से वापस बुला लिया गया। नतीजतन, ब्राइटन के भारतीय अस्पतालों को धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। जनवरी 1916 में इस पैवेलियन को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। अप्रैल 1916 में, ब्रिटिश विकलांगों के लिए एक अस्पताल के रूप में इसे फिर से खोला गया। और इस अस्पताल में ऐसे 6000 सैनिकों का उपचार किया गया जिन्होंने युद्ध के दौरान हाथ या पैर खो दिए थे।
वर्तमान में इसे एक विरासत के रूप में संजोया गया है रॉयल पैविलियन इंग्लैंड में राजकुमार रीजेंट, बाद में किंग जॉर्ज IV ने 1787 और 1823 के बीच निर्मित करवाया था। यह अपने अदभुत वैभव और वास्तुशिल्प कला रोमांचक खूबसूरती और संस्कृति की उम्दा मिसाल है। अपनी बाहरी भव्य वास्तुकला से यह शाही पैलेस भारत में मुगल काल की किसी मस्जिद या महल के सामान नजर आता है।
पश्चिमी मोर्चे पर डटे थे भारतीय सैनिक
प्रथम विश्व युद्ध के शुरुआती कुछ महीनों में ब्रिटिश भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पश्चिमी मोर्चे पर फ़्रांस में भयंकर युद्ध में डटी हुई भारतीय सेना के सैनिक बड़ी संख्या में हताहत हो रहे थे जिन्हें चिकित्सकीय सुविधाओं की तत्काल आवश्यकता थी लेकिन फ़्रांस में न तो सुविधाएं और न ही कोई विशेषज्ञता थी। इसलिए उन्हें वहां से इंग्लैण्ड लाने की योजना बनाई गई।
हॉस्पिटल में तब्दील कर दिए गए ब्राइटन के तीन स्थान
ऐसे में ब्राइटन को घायल और बीमार भारतीय सैनिकों की देखभाल के लिए समर्पित किया गया और इसे सैन्य अस्पतालों के परिसर के स्थान के रूप में चुना गया था। इस उद्देश्य के लिए शहर के अधिकारियों द्वारा तीन भवनों को दिया गया: वर्क हाउस (जिसका नाम बाद में Kitchener अस्पताल में बदला गया), द यॉर्क प्लेस स्कूल और रॉयल पैवेलियन। इन तीन स्थानों को सैन्य अस्पताल परिसर के रूप में इस्तेमाल किये जाने के लिए तैयार किया जाने लगा।
ब्राइटन का पहला भारतीय सैनिकों के लिए अस्पताल
ब्राइटन में सैनिकों के लिए खुलने वाला रॉयल पैविलियन भारतीय सैनिकों के लिए पहला अस्पताल था। इसके दो महल डोम और कॉर्न एक्सचेंज (एक ऐसी इमारत थी जहां किसानों और व्यापारियों ने अनाज का कारोबार किया) दो सप्ताह से भी कम समय में चिकित्सा सुविधा के रूप में परिवर्तित हो गए थे।
2,300 से भी ज्यादा मरीजों का हुआ इलाज
यहां नई पाइपलाइन और शौचालय की सुविधा स्थापित की गई, और नए वार्डों में 600 बिस्तरों की स्थापना की गई। यही नहीं, एक्स-रे उपकरण भी स्थापित किए गए royal पैलेस कि आलीशान रसोई को दूसरा ऑपरेटिंग थिएटर बना दिया गया। दिसंबर 1914 की शुरुआत में इस पैवेलियन में मरीजों का आना शुरू हुआ। इसके अगले ही वर्ष तकरीबन 2,300 से अधिक भारतीय सैनिक मरीजों का यहां इलाज हुआ।
सैनिकों का रखा गया विशेष ध्यान
ख़ास बात यह भी थी कि अस्पताल को न केवल सैनिकों की चिकित्सा आवश्यकताओं की देखभाल के लिए डिज़ाइन किया गया था बल्कि मरीजों की धार्मिक सांस्कृतिक और खानपान जरूरतों के लिए भी विशेष सुविधाएं दी गईं।
लॉन में बनाई गईं थीं नौ रसोईयां
खुले मैदान में ही नौ रसोईयां बनाईं गईं। पूर्वी लॉन में प्रार्थना के लिए जगह बनाई गई।
मृतकों के अंतिम संस्कार की थी अलग व्यवस्था
ब्राइटन अस्पतालों में मारे गए उन भारतीय सैनिकों के लिए भी विस्तृत व्यवस्था की गई,जिनमें से 18 का रॉयल पैवेलियन में इलाज के दौरान निधन हो गया था। सिखों और हिंदुओं को पचाम के पास खुली हवा में अंतिम संस्कार के लिए एक स्थल प्रदान किया गया था और मुस्लिमों को वोकिंग में बने एक कब्रिस्तान की कब्र में दफनाया गया था।
अब अस्पताल नहीं है यह 'रॉयल पैलेस'
बाद में 1915 में ब्रिटिश ने मध्य-पूर्व में भारतीय सेना की तैनाती करने का निर्णय लिया और ज्यादातर भारतीय सैनिकों को यूरोप से वापस बुला लिया गया। नतीजतन, ब्राइटन के भारतीय अस्पतालों को धीरे-धीरे बंद कर दिया गया। जनवरी 1916 में इस पैवेलियन को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया। अप्रैल 1916 में, ब्रिटिश विकलांगों के लिए एक अस्पताल के रूप में इसे फिर से खोला गया। और इस अस्पताल में ऐसे 6000 सैनिकों का उपचार किया गया जिन्होंने युद्ध के दौरान हाथ या पैर खो दिए थे।
विरासत के रूप में संजोया गया है रॉयल पैविलियन
वर्तमान में इसे एक विरासत के रूप में संजोया गया है रॉयल पैविलियन इंग्लैंड में राजकुमार रीजेंट, बाद में किंग जॉर्ज IV ने 1787 और 1823 के बीच निर्मित करवाया था। यह अपने अदभुत वैभव और वास्तुशिल्प कला रोमांचक खूबसूरती और संस्कृति की उम्दा मिसाल है। अपनी बाहरी भव्य वास्तुकला से यह शाही पैलेस भारत में मुगल काल की किसी मस्जिद या महल के सामान नजर आता है।
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