भ्रष्टाचार के बीच शहर की चिंता
सलीम अख्तर सिद्दीकी
वह चाय की दुकान उस बिल्डिंग के पास थी, जहां शहर का विकास कराने वाले लोग बैठते थे। मैं भी उस बिल्डिंग में अपने किसी काम के लिए गया था। पता चला कि संबंधित बाबू अपने किसी मित्र के साथ चाय पीने गए हैं। मैं उनको ढूंढ़ता हुआ उस चाय की दुकान का हिस्सा बन गया था, जहां एक कोने में टीवी चल रहा था। उस दुकान पर बिल्डिंग में काम करने वाले कर्मचारी आते थे या मुझ जैसे लोग, जो कभी वक्त गुजारने के लिए, तो कभी संबंधित अधिकारी को ढूंढ़ते हुए पहुंचते थे। मैंने दुकान में चारों ओर नजर दौड़ाई, लेकिन वह अधिकारी मुझे कहीं नजर नहीं आए। मैंने उनका इंतजार वहीं करने का इरादा किया और वक्त गुजारी के लिए चाय का आॅर्डर दिया। मैंने वहीं एक सीट संभाली और टीवी पर चलने वाली खबरों पर ध्यान केंद्रित कर दिया। मेरी सीट के बराबर में ही दो सज्जन बैठे हुए थे। उनकी बातचीत से पता चल रहा था कि उनमें एक किसी वार्ड का पार्षद और दूसरा ठेकेदार था, जो पार्षद के इलाके में विकास कार्य करा रहा था। ठेकेदार पार्षद से किए गए काम को ओके कर देने का आग्रह कर रहा था। पार्षद का कहना था कि जब तक मेरा कमीशन नहीं मिलेगा, काम पास नहीं करूंगा। ठेकेदार का कहना था कि इलाके के लोगों ने घटिया काम नहीं होने दिया, इसलिए मुझे ज्यादा फायदा नहीं हुआ, तो कमीशन कैसे दे दूं। आखिरकार दोनों में सहमति यह बनी कि जितना कमीशन तय हुआ था, उससे आधा कमीशन दिया जाएगा और इसकी एवज में पार्षद काम पास कर देगा। दोनों के चेहरों पर इत्मीनान के भाव आए। एक बार फिर चाय का आॅर्डर दिया गया। दोनों ने अपना ध्यान टीवी पर चलने वाली खबरों पर लगा दिया। न्यूज चैनल हजारों करोड़ रुपयों के घोटाले का पर्दाफाश होने की खबर ब्रेक कर रहा था। पार्षद ने खबर पर प्रतिक्रिया दी, ‘देख लेना यह नेता देश को बेचकर खा जाएंगे।’ ठेकेदार ने गर्दन हिलाकर उसका समर्थन किया। मुझे दुकान में दाखिल हुआ, वह अधिकारी दिखाई दिया, जिसका मैं इंतजार कर रहा था। वह सीधा पार्षद और ठेकेदार के पास गया और बोला, ‘क्यों, हो गया आप दोनों को सेटेलमेंट?’ दोनों ने एक साथ गर्दन हिलाकर हां कहां। अधिकारी ने दोनों को नसीहत दी, ‘देखो मिलजुल कर काम निकला लेना चाहिए। इस काम में नुकसान हो गया, तो क्या आगे किसी काम में नुकसान पूरा कर लेना। हर क्षेत्र के लोग इतने जागरूक नहीं होते कि इस पर ध्यान दें कि उनके इलाके में काम कैसा हो रहा है?’ अधिकारी का ध्यान टीवी पर चलती हुई भ्रष्टाचार की खबर पर गया और बुदबुदाया, ‘पता नहीं इस देश का क्या होगा?’
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