11 मई को दैनिक जनवाणी में प्रकाशित |
शौकत खानम और इकरमुल्लाह खान नियाजी के पुत्र इमरान युवावस्था में शांत और शर्मीले थे। उन्होंने लाहौर में ऐचीसन कॉलेज कैथेड्रल स्कूल और इंग्लैंड में रॉयल ग्रामर स्कूल वर्सेस्टर में शिक्षा ग्रहण की। 1972 में उन्होंने केबल कॉलेज आॅक्सफोर्ड में दर्शन राजनीति और अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए दाखिला ले लिया, जहां उन्होंने राजनीति में दूसरा और अर्थशास्त्र में तीसरा स्थान प्राप्त किया था। 16 मई 1995 में उन्होंने जेमिमा गोल्डस्मिथ को शरीक-ए-हयात बनाया। दोनों की शादीशुदा जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। इसकी वजह यह थी कि जेमिमा पाकिस्तानी माहौल में अपने आपको नहीं ढाल पार्इं। 2004 में दोनों के बीच अलगाव हो गया।
वह 1971 से1992 तक पाकिस्तान क्रिकेट टीम के लिए खेले। 39 वर्ष की आयु में उन्होंने पाकिस्तान की प्रथम और एकमात्र विश्वकप जीत में अपनी टीम का नेतृत्व किया था। 1992 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना लक्ष्य सामाजिक कार्य को बना लिया। अपनी मां शौकत खानम के नाम पर ट्रस्ट की स्थापना वह 1991 में ही कर चुके थे। उन्होंने ट्रस्ट की ओर से पाकिस्तान को पहला और एकमात्र कैंसर अस्पताल दिया। इसके निर्माण के लिए उन्होंने दुनियाभर से पैसा जमा किया।
25 अप्रैल 1996 को इमरान खान ने न्याय, मानवता और आत्म सम्मान के नारे के साथ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी की स्थापना की। शुरुआती दौर में उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। इसीलिए पिछले आम चुनाव में उनके सभी उम्मीदवार हार गए थे। मजबूत इरादों के इमरान खान ने हिम्मत नहीं हारी और मुसलसल जद्दोजहद के बाद उन्होंने राजनेता के रूप में अपना कद लगातार बढ़ाया। उनके समर्थकों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है। उनके समर्थकों में महिलाएं और युवा हैं, जो यह सोचते हैं कि इमरान खान पाकिस्तान को उन झंझावतों से निकालने में सक्षम हैं, जिनसे पाकिस्तान आज दो-चार है।
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