दुनिया भर के स्नाइपर दुश्मन को धोखा देने के लिए एक खास किस्म की ड्रेस पहनाते हैं जिसे Ghillie suit कहते हैं। दुश्मन की नजर से खुद को बचाने के लिए स्नाइपर इस सूट को पहनते हैं। दरअसल, इसे पहनकर सैनिक पत्तों, बर्फ या रेत के मुताबिक नजर आता है। आमतौर पर यह एक महीन जालीदार कपडा या परिधान होता है जो जूट के ढीले स्ट्रिप्स से ढका होता है। आइये जानते हैं कि आखिर क्या है दुश्मन को धोखा देने वाली (Ghillie suit) यह पोशाक : -
क्या होता है ghillie सूट
सैन्यकर्मी, पुलिस, शिकारी, और wild photographer इस तरह के परिधान पुराने समय से पहनते आए हैं। फोटोग्राफर के इस पोशाक के पहनने के पीछे मकसद जानवरों की निगाह से खुद को बचाना है लेकिन एक स्नाइपर इसे पहनकर खुद को दुश्मन की नजरों से बचाता है। इस ड्रेस पर कई तरह के कपड़े की लंबी और ढीली पट्टियां झाड़-फानूस की तरह लगी होती हैं, जो सैनिक द्वारा पहने जाने पर यह सैनिक को पत्तियों और टहनियों व घास-फूंस के जैसा प्रदर्शित करती हैं।
ख़ास तरह से डिजाइन होते हैं ये परिधान
आपको यह जानकार हैरानी होगी की ख़ास तौर पर सेना के स्नाइपर्स द्वारा विभिन्न ऑपरेशंस के दौरान पहने जाने वाले इस सूट को ख़ास डिजाइन के साथ तैयार किया जाता है। इसके रेशे या पट्टियां इतनी हलकी होती हैं कि जवान जंगल, पहाड़ या रेतीली जमीन पर जब अपनी पॉजिशन लेता है तो उसी के जैसा दिखता है। कुछ सूटों को मौसम के हिसाब से भी डिजाइन किया जाता है जो मजबूत व मोटे धागे से बने होते हैं और गर्म रहते हैं। इन सभी सूट्स को जवान अपनी वर्दी के ऊपर से पहनते हैं। यहां आपको यह भी बता दें कि स्नाइपर इनका ख़ास तौर पर इस्तेमाल करते हैं, ताकि दुश्मन को उनके आस-पास होने का एहसास न हो और वे करीब से सटीक निशाना लगा सकें।
'स्कॉटिश हाईलैंड रेजिमेंट' इसका इस्तेमाल करने वाली पहली आर्मी यूनिट
इन सूट्स का अविष्कार सबसे पहले स्कॉटिश गेम्कीपर्स ने 'पोर्टेबल शिकारी सूट' के रूप में आड़ में शिकार करने के लिए किया था। सन 1916 में, लोवैट स्काउट ब्रिटिश सेना की पहली स्नाइपर यूनिट बन गई।'Second Boer War' के दौरान ब्रिटिश सेना द्वारा गठित एक स्कॉटिश हाईलैंड रेजिमेंट, लोवैट स्काउट, ghillie सूट का उपयोग करने वाली पहली आर्मी यूनिट कही जाती है।
ऐसे तैयार होते हैं सूट
उच्च गुणवत्ता वाले छलावा सूट हाथ से बने होते हैं लेकिन वर्तमान में इन्हें मशीन से भी बनाया जाता है। अधिकांश देशों में सैनिक आम तौर पर खुद भी अपने छलावा सूटों का निर्माण करते हैं। एक उपयुक्त छलावरण को पर्यावरण में मौजूद प्राकृतिक सामग्रियों से बनाया जाता है जिनके बीच स्नाइपर काम करता है। सेना व पर्यावरण के मुताबिक ही इनमें रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। एक बड़े और उच्च गुणवत्ता वाले सूट को बनने में तकरीबन एक सप्ताह से एक माह तक का समय लग जाता है। इन सूटों को खाद व मिट्टी लगने के लिए कीचड में डुबो दिया जाता है और फिर सुखाया जाता है ताकि ये पर्यावरण के अनुकूल दिखने लगें और इनसे ऐसी ही गंध आए। लोकेशन के अनुसार जवान इस पर पेड़ की टहनियां, सूखे पत्ते व अन्य तत्वों के साथ स्थिति के अनुकूल बना लेते हैं।
रखना पड़ता है सुरक्षा का विशेष ध्यान
हालांकि ghillie सूट कई परिस्थितियों के लिए अनुकूल साबित नहीं होते। लेकिन सुरक्षा के मामले में ये स्नाइपर्स की काफी मदद करते हैं। जहां छलावरण बेहद उपयोगी होते हैं वहीँ ये लोकेशन के मुताबिक काफी भारी हो जाते हैं। रेगिस्तान जैसे स्थान में कई बार वे बहुत भारी और गर्म होते हैं। जहां ghillie सूट के भीतर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस (120 डिग्री फ़ारेनहाइट) तक पहुंच सकता है। ऐसे में स्नाइपर को इसे आग से बचाने का खास ध्यान रखना पड़ता है। पहनने वाले को अग्निशामक स्रोतों जैसे स्मोक ग्रेनेड या सफेद फॉस्फोरस से अधिक जोखिम हो सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अमेरिकी सेना के 'सैनिक सिस्टम्स केंद्र' ने जूट या नायलोन के अलावा स्वाभाविक रूप से एक आग प्रतिरोधी, कपड़े विकसित किए। जिन्हें वर्ष 2007 में फोर्ट बेनिंग में स्नाइपर स्कूल में परीक्षण किया गया था।
इसके मिस यूज की फिराक में रहते हैं अपराधी
कई बार ऐसा भी हुआ है कि आम नागरिकों ने अपराध करने के लिए ghillie सूट का सहारा लिया। यह उस वक्त काफी चर्चा का विषय रहा था जब पुलिस ने एक ऐसे ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति को गिरफ्तार किया जिसने ghillie सूट पहनकर महिलाओं पर हमला किया था।
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