भारत के सबसे समृद्ध राज्यों पंजाब हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में लिंगानुपात सबसे कम है। २००१ की जनगणना के अनुसार एक हजार लडक़ों पर लड़कियों की संख्या पंजाब में ७९८, हरियाणा में ८१९ और गुजरात में ८८३ है। कुछ राज्यों ने इस घटती प्रवृत्ति को गंभीरता से लिया और इसके लिए इन राज्यों की सरकारों ने महत्वपूर्ण कदम भी उठाए, जैसे गुजरात में डीकरी बचाओ अभियान चलाया जा रहा है। वहीं हरियाणा में बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओ योजना चलाई गई। पूरे भारत की बात करें, तो पिछले चार दशक से सात साल से कम आयु के बच्चों के लिंग अनुपात में लगातार गिरावट देखी जा रही है। वर्ष १९८१ में एक हजार लडक़ों पर ९६२ लड़कियां थी, वहीं वर्ष २००१ में ये अनुपात घटकर९२७ हो गया। यह इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृद्धि और बढ़ते शिक्षा स्तर का भी इस पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। जिस जोर शोर और उम्मीद से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और सेल्फी विद डॉटर मुहिम की शुरुआत की थी, उसके लिए राज्य सरकार भले ही करोड़ो रुपया खर्च कर रही हो लेकिन हरियाणा के जींद जिले से लिंगानुपात के जो नए आंकड़े आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों को बढ़ावा देने के लिए बीते साल जनवरी में हरियाणा के पानीपत शहर से देशव्यापी अभियान बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ शुरू किया था, बावजूद इसके यहां के हालात में कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। हरियाणा के जींद जिले में लिंगानुपात तेजी से घटता जा रहा है । यहां १० गांवों में लिंगानुपात घटकर ५०० से भी कम रह गया है। अभी तक हरियाणा सरकार अपनी पीठ यह कहकर थपथपा रही थी कि प्रदेश में लिंगानुपात बढ़ा है, जो सरकार की बड़ी उप्लब्धि है, जाहिर है इसके लिए प्रदेश सरकार ने वाहवाही लूटी और पुरस्कार भी प्राप्त किए। लेकिन सच्चाई पर गौर करें तो ये आंकड़े केवल पिछले वर्ष के दिसंबर माह के ही हैं, पूरे वर्ष का नहीं। और एक माह के आंकड़ों से किसी योजना और अभियान को सफल नहीं बताया जा सकता है। सरकार के मुताबिक हरियाणा में ये आंकड़ा ९०३ पर पहुंचा है। पिछले वर्ष बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम के शुरू होने के छह माह बाद यानी जून में ये आंकड़ा अपने निम्न स्तर यानी ८३९ पर था। इसके बाद लिंगानुपात में सुधार देखने को मिला तो ये आंकड़ा ९०३ पर पाया गया। लेकिन पूरे हरियाणा के हालात समझने के लिए हमें दोनों वर्ष की तुलना करनी होगी, ताकि ये पता लग सके कि ये महत्वाकांक्षी योजना उतनी सफल हो पाई है जितना कि इसे दिखाया जा रहा है।
माना कि बेटियों की संख्या में हरियाणा के कुछ जिलों ने सराहनीय काम किया है तो कुछ जिले ऐसे भी हैं जहां यह संख्या निरंतर घटती जा रही है। पानीपत जिले से ही बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की शुरुआत हुई थी लेकिन हैरानी वाली बात है कि यहां दोनों वर्षों का यह आंकड़ा ८९२ पर ही स्थित है। वहीं इस बार लिंगानुपात में मेवात दूसरे स्थान पर है। यहां आंकड़ा ९१३ का है। यहां भी २०११ से ये आंकड़ा लगातार घट रहा है। फरीदाबाद में भी मेवात जैसे ही हालात हैं। यहां पिछले साल की तुलना में गिरावट देखी गई है। पिछले साल यह आंकड़ा यहां८८४ था तो इस साल ८६७ है। प्रदेश का पंचकूला जिला भी मेवात की रहा पर है। यहां भी आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले घट गया है। पिछले साल ९१६ था तो इस साल घटकर ९०७ रह गया है। सेल्फी विद डॉटर व बीबीपुर के लिए मशहूर जींद में वर्ष२०१४ में ये आंकड़ा ८९१ था तो इस साल ८५६ रह गया है। जींद से ही सटे कैथल में भी लड़कियों की संख्या पिछले साल ८८६ थी तो इस बाद घटकर ८६२ रह गई। यहां आपको बता दें कि कैथल के क्योडक गांव को खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गोद लिया हुआ है। प्रदेश में अग्रणी माना जाने वाला और मुख्यमंत्री का गृहजिला रोहतक में भी ये आंकड़ा घट रहा है। यहां भी पिछले साल जन्मानुपात ८७९ था जो कि इस बार ८५६ है।
एक अनुमान के मुताबिक भारत में पिछले दस सालों में तकरीबन डेढ़ करोड़ लड़कियों को जन्म से पूर्व ही मार डाला गया या फिर पैदा होने के छह माह बाद ही मौत के मुहं में धकेल दिया गया। दरअसल, बच्चियों को जन्म से पहले मारने की प्रथा हमारे देश में महिला और पुरुष के भेदभाव यानी गर्भ के दौरान लैंगिक जांच कराने वाली तकनीक आने के साथ ही शुरु हो गई थी। ये परीक्षण अल्ट्रासाउंड के जरिये भी किए जाते हैं। संयुक्तराष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अवैध रूप से अनुमानित दो हजार लड़कियों की जन्म से पूर्व हत्या की जाती है। ऐसे ही एक आंकड़े के अनुसार भारत में लगभग ३०,००० डॉक्टर्स पैसे के लालच में इस तकनीक का दुरुपयोग कर रहे हैं। कई अस्पतालों में डॉक्टर्स के केबिन में ऐसे विज्ञापन भी मिले जिन पर लिखा था कि आज पांचसौ रुपये खर्च कीजिए कल दहेज के पांच लाख बचाइए। हालांकि इस पर भारत सरकार ने आठ वर्ष पूर्व एक कानून पारित कर भ्रूण परीक्षण पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन इस कानून पर अम्ल अब तक भी नहीं के बराबर ही है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि पूरे देश में २२,००० ऐसे क्लीनिक हैं, जहां इस प्रकार के परीक्षण कराए जा सकते हैं। हमारे पास ऐसे साधन नहीं हैं कि इन पर पूर्ण रूप से निगारनी रखी जा सके। लड़कियों को कोख में मारने के राह पर धीरे धीरे वे राज्य भी चल निकले जो अब तक बचे हुए थे। यहां तक कि अब श्रीनगर में भी ये स्थिति चिंताजनक हो गई। गैर सरकारी संगठन - महिला उत्थान अध्ययन केंद्र और सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ने एक संयुक्त प्रकाशन में चेतावनी दी है कि यदि महिलाओं की संख्या यूं ही घटती रही तो महिलाओं के खिलाफ हिंसात्मक घटानाएं बढ़ जाएंगी। विवाह के लिए अपहरण किया जाएगा, या उसे एक से ज्यादा पुरुषों की पत्नी बनने पर मजबूर किया जाएगा। भ्रूण हत्या की प्रथा उन क्षेत्रों में उभरी है जहां शिक्षा, खासकर महिलाओं की शिक्षा काफी उच्च दर पर हे और लोगों को आर्थिक स्तर भी सही है। ये इस बात का संकेत है कि हमारी आर्थिक समृद्धि और शिक्षा के बढ़ते स्तर पर इस समस्या पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। ऐसे में जरूरी है कि सामाजिक जागरुकता बढ़ाने के साथ साथ प्रसव पूर्व तकनीकी जांच अधिनियम को सख्ती से लागु किए जाने की जरूरत है।
ऐसा भी नहीं कि हरियाणा में पिछले साल के मुकाबले सिर्फ लिंगानुपात गिरा ही है। यदि देखें तो कु़छ जिलों में सुधार भी हुआ है। जिन जिलों में जन्मानुपात सुधरा है, उनमें अंबाला,भिवानी फतेहाबाद, हिसार करनाल महेंद्रगढ़ पलवल, रेवाड़ी आदि शामिल हैं। इसके अलावा गुडग़ांव, पानीपत जैसे कुछ जिलों में स्थिति ज्यों की त्यों है।
गुडग़ांव जिले के उपायुक्त टी एल सत्यप्रकाश इस दिशा में एक बेहतर प्रयास कर रहें हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शुरुआत के समय से ही विजयमहाराज विद्यापीठ सोसायटी द्वारा मिलकर चलाए गए विजय रथ की शुरुआत की जो अब तक हरियाणा के १८ जिलों में जाकर लोगों के कन्या भ्रूणहत्या के दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करा रहा है। इस अभियान का उद्द्ेश्य दस करोड़ लोगों के संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर लेना व सवा अरब लोगों तक इस संदेश को पहुंचाना है कि वे कन्या भू्रण हत्या नहीं करेंगे व दूसरे लोगों को भी यह अपराध करने से रोकेंगे। अब तक इस अभियान के तहत 60 लाख लोगों द्वारा संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर करवाया जा चुका है। वहीं सत्यप्रकाश ने आम जनता से अपील करते हुए कहा कि वे कन्या भू्रण हत्या को रोकने के लिए आगे आएं और यदि कोई व्यक्ति कन्या भू्रण हत्या जैसा अपराध करता है तो इसकी शिकायत जिला प्रशासन को अवश्य दें, ताकि संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की जा सके।
अब जरा कानून को भी समझ लेते हैं। १९९५ में बने जन्म पूर्व नैदानिक अधिनियम १९९५ के तहत बच्चे का जन्म पूर्व लिंग जांच कराना कानूनन जुर्म है। इसके साथ ही गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम१९७१ के अनुसार केवल विशेष परिस्थितियों में ही प्रेगनेंट महिला अबॉर्शन करा सकती है। आईपीसी की धारा ३१३,३१४,३१५ में महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराने वाले को आजीवन कारावास की सजा का भी प्रावधान है। लेकिन महिलाएं शिक्षा और जागरुकता के अभाव में कानून के नियमों से अवगत नहीं हों पाती हैं। यानी कानून कमजोर नहीं है बल्कि कानून का पालन करने वाले व कराने वाले दोनों ही इस सड्यंत्र में शामिल हैं। जब तक समाज के बड़ तबके की सोच में बदलाव नहीं होगा इस स्थिति का बदलना संभव नहीं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुखों की परछाई - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteJi Shukriyaa...
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