कितने किस्से, कितने वाकये ,
कितने हादसे
मेरे जीने की खुशी में
शिरकत करने आएं हैं।
कुछ सिर झुकाए हैं
कुछ सिर उठाएं हैं
कुछ कातिल हैं
कुछ कत्ल करने आएं हैं
छोड़ चली थी इत्तेफाक के शहर में
कुछ ख्वाहिशें
ये इत्तेफाक हैं कि मेरे
साथ सफर करने आएं हैं। - डिम्पल सिरोही
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