ये बरसात क्यों मेरे लिए
अच्छी नहीं आई
आंगन में ए गिरती बूंदें
लगती है जैसे बिखरा हो
कोई शीशा टूटकर,
बिखरें हों ख्वाब जैसे टकराकर
हकीकत की जमीन से
भीगी शाम आज मुझे क्यों
खुशी देने नहीं आई
अब की ये बरसात क्यों
अच्छी नहीं आई
रंगा था कल ही जिसे,
गिरने लगी है मिट्टी
उस दीवार की
लेपा था फर्श कल ही
पीली मिट्टी से मैनें
आज दिखाता है डरावने से चित्र मुझे
आज कलमा भी तो फर्श पे हो न सकेगा।
सूखे पत्ते कुछ लकड़ियां
सब हो गए हैं नम
कुछ चुन भी लाती यदि
आज एक लौ भी तो मेरे
घर को रोशन न कर सकेगी,
आंच भी तो आज दो रोटी
मेरे घर पका न पाएगी।
कहीं जूठन भी तो आज बची न होगी
सब पानी में मिल गई होगी या
नाली में बह गई होगी।
मेरे घर की नाजुक छत भी अब
टपकने लगी है।
इन बूंदों ने एक होकर
मेरे घर को संमंदर बना डाला है।
गीले तख्त पर बैठा है
पेट भरने की तलब लिए लाडला मेरा
छुपाए गोद में एक किताब अपनी
देखता मेरी ओर एक टक,
लिए आंखों में सवाल
कब खत्म होगी ये
दुश्वारियों की बारिश?
अच्छी नहीं आई
आंगन में ए गिरती बूंदें
लगती है जैसे बिखरा हो
कोई शीशा टूटकर,
बिखरें हों ख्वाब जैसे टकराकर
हकीकत की जमीन से
भीगी शाम आज मुझे क्यों
खुशी देने नहीं आई
अब की ये बरसात क्यों
अच्छी नहीं आई
रंगा था कल ही जिसे,
गिरने लगी है मिट्टी
उस दीवार की
लेपा था फर्श कल ही
पीली मिट्टी से मैनें
आज दिखाता है डरावने से चित्र मुझे
आज कलमा भी तो फर्श पे हो न सकेगा।
सूखे पत्ते कुछ लकड़ियां
सब हो गए हैं नम
कुछ चुन भी लाती यदि
आज एक लौ भी तो मेरे
घर को रोशन न कर सकेगी,
आंच भी तो आज दो रोटी
मेरे घर पका न पाएगी।
कहीं जूठन भी तो आज बची न होगी
सब पानी में मिल गई होगी या
नाली में बह गई होगी।
मेरे घर की नाजुक छत भी अब
टपकने लगी है।
इन बूंदों ने एक होकर
मेरे घर को संमंदर बना डाला है।
गीले तख्त पर बैठा है
पेट भरने की तलब लिए लाडला मेरा
छुपाए गोद में एक किताब अपनी
देखता मेरी ओर एक टक,
लिए आंखों में सवाल
कब खत्म होगी ये
दुश्वारियों की बारिश?
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