मजदूरों की मजबूरी शिप ब्रेकिंग..........
जहाजों के बड़े कब्रिस्तान
दुनिया भर में जहाजों की रीसईकलिंग के लिए उन्हें तोड़ा व काटा जाता है। दुनिया के सबसे बड़े शिप ब्रेकिंग यार्ड्स में सबसे पहला नाम भारत का है यहां गुजरात के भावनगर का अलंग शिपयार्ड जहाजों का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है। बांग्लादेश का चिटागॉन्ग शिप बे्रकिंग यार्ड व पाकिस्तान का कराची समुद्री तट पर स्थित गदानी शिप ब्रेकिंग यार्ड दूसरे नंबर पर आते हैं। चाईना के जिंगयांग प्रांत में स्थित चेंगजिआंग शिप ब्रेकिंग यार्ड पर भी बड़ी संख्या में जहाजों को तोड़ने का कार्य होता है। तुर्की के अलियागा व यूनाइटेड स्टेट के इंटरनेशनल शिपब्रेकिंग लि. ब्राउनसलि पर भी हजारों एकड की भूमि पर पानी के जहाजों को काटने व तोड़ने का कठिन कार्य किया जात है।बिना किसी सुरक्षा के होती है शिप ब्रेकिंग
चीन तुकी व अमेरिका में शिप बे्रकिंग में भले ही मशीनों का सहारा लिया जाता है मगर आधे से ज्यादा कार्य मजदूरों द्वारा ही पूरा किया जाता है। जहाजों को तोड़ते समय हेलमेट, सुरक्षा वाले जूते, काला चश्मा, मास्क, हैंड ग्लाव जैसे प्रोटेक्शन इक्वीपमेंट भी इन्हें नसीब नहीं होते हैं। यार्ड में आने वाले जहाजों का एक बड़ा हिस्सा गैस कटर की सहायता से तोड़ा जाता है जिसके दौरान दुघर्टना होने से कई मजदूरों की मौत भी हो जाती है। इन मजदूरों के कोई लिख्ति दस्तावेज न होने की वजह से उन्हें कोई मुआवजा भी नही मिलता है। दिन भर ए मजदूर मशीनों और मसल्स की ताकत से अपने घरों से कई गुना बड़ें इन जहाजों से लोहा निकालने का काम करते हैं। इन मजदूरों की मौत हो जाती हैं, हाथ-पंव जख्मी हो जाते हैं और मांसपेशिया जवाब दे जाती हैं, लेकिन काम है कि कभी नहीं रुकता।
बुरी है मजदूरों की दशा
शिप ब्रेकिंग क काम करने वाले मजदूर भी दयनीय स्थिति में हैं। पानी के बड़े बड़े जहाजों को तोड़ने वाले अधिकतर मजदूर छोटी बस्तियों में रहते हैं। जिन हालातों में ए मजदूर इन बड़े जहाजों को तोड़ने का कार्य करते हैं, शायद ही कोई व्यक्ति इस कार्य को कर पाए। लेकिन मजबूरी के चलते बहुत से मजदुरों ने इसी कार्य को अपना पेशा बनाया है। इन मजदूरों को बिना किसी ठोस प्रोटेक्शन इक्विपमेंट की सहायता के यह कार्य करना पड़ता है। विभिन्न प्लॉट्स में बंटे शिप बे्रकिंग यार्ड में तकरीबन 6 से10 हजार मजदूर रोजाना की कड़ी मेहनत के बाद दो वक्त की रोटी हासिल कर पाते हैं। यही नहीं ए मजदूर यहां बिना किसी मूलभूत सुविधा के रहते हैं। पीने के पानी की कमी, शौचालय की अव्यवस्था, छोटी गलियों में रहने वाले इन मजदूरों को आठ से दस की संख्या में छोटे झोपड़ों में रहना पड़ता है। शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति इनकी जागरूकता बिल्कुल न के बराबर है। बदतर हालत में जिंदगी जीना अब इन मजबूरी बन गई है। इन मजदूरों के जीवन पर ' इनटू द ग्रेवयार्ड ' नाम की एक बीस मिनट की डाक्युमेंट्री बनाई गई है, जो काफी हद तक मजदूरों की दशा बयां करने में सफल रही है।
Additional research+compilation ...Good.
ReplyDelete...but what about Mumbai?