इक दर्दे-मोहब्बत है, इक बेरहम है ये दुनिया
वो देती है गम हरदम, ये जीने नहीं देती है
इक राहे-फकीरी है, इक शोहरत-ए-अमीरी है
इक सोने को तरसती है, इक सोने नहीं देती है
इक हुस्न से नजदीकी, इक मां के आंचल की छांव
वो जी भर के रूलाती है, ये रोने नहीं देती है
इक गैर से याराना और यारी में भी जख्म मिलें
इक करती है मरहम तो, इक सीने नही देती है
ना पूछ मेरी सरहद, पी जाऊं समंदर को
बस याद मगर उसकी मुझको पीने नहीं देती है।
वो देती है गम हरदम, ये जीने नहीं देती है
इक राहे-फकीरी है, इक शोहरत-ए-अमीरी है
इक सोने को तरसती है, इक सोने नहीं देती है
इक हुस्न से नजदीकी, इक मां के आंचल की छांव
वो जी भर के रूलाती है, ये रोने नहीं देती है
इक गैर से याराना और यारी में भी जख्म मिलें
इक करती है मरहम तो, इक सीने नही देती है
ना पूछ मेरी सरहद, पी जाऊं समंदर को
बस याद मगर उसकी मुझको पीने नहीं देती है।
इक सुब्ह-ए-तमन्ना है, इक उम्रों की रवायत है
ReplyDeleteदोनों ही हमनफ़स हैं, मरने नहीं देती हैं
अच्छी गजल है। बस शेर की दूसरी लाइन में से आखिर वाला ‘है’ हटा दें। यूं हमें शायरी से ज्यादा कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि ऐसा होना चाहिए। अपने ब्लॉग को किसी एग्रीग्रेटर से जोड़ लेंगीं, तो आपको ज्यादा पाठक मिलेंगे।
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