मिस्र के मुख्य न्यायाधीश अदली मंसूर ने नहीं सोचा होगा कि हालात ऐसे हो जाएंगे कि उन्हें मिस्र के अंतरिम राष्ट्रपति की शपथ लेनी पड़ेगी। हकीकत यह है कि वह अब ऐसे मुल्क के शासक बन गए हैं, जो उथल-पथल के दौर से गुजर रहा है और जिसे स्थायित्व की जरूरत है। ऐसे में मंसूर के लिए राष्ट्रपति का ताज कांटों भरा है और राह मुश्किल। मंसूर की नियुक्ति वर्ष 2011 में तैयार हुए कानून के तहत हुई है, जो अदालत को स्वतंत्रता प्रदान करता है तथा राष्ट्रपति की शक्तियां कम करता है।
23 दिसंबर 1945 को काहिरा में जन्मे अदली मंसूर का पूरा नाम अदली महमूद मंसूर है। मंसूर एक पुत्र व दो पुत्रियों के पिता हैं। उन्होंने वर्ष 1967 में काहिरा यूनिवर्सिटी स्कूल आॅफ लॉ से स्नातक की डिग्री हासिल की तथा वर्ष 1969 में कानून में परास्नातक डिग्री प्राप्त की थी। यही नहीं, उन्होंने अर्थशास्त्र की शिक्षा के साथ मैनेजमेंट साइंस में भी 1970 में पोस्टग्रेजुएट डिग्री हासिल की है। वर्ष 1984 में वह मिस्र की राज्य परिषद के चांसलर के रूप में कार्यरत रहे। वर्ष 1992 तक एससीसी यानी सुप्रीम कांस्टीट्यूशनल कोर्ट के उप प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
माना जा रहा है कि मिस्री सेना प्रमुख अलसीसी के हाथों में ही सत्ता रहेगी। उन्होंने पिछले ही वर्ष हुसैन तंतावी की जगह रक्षा मंत्री पद का स्थान ग्रहण किया है। अल सीसी रोज नमाज करने वाले मुसलमान जरूर हैं, लेकिन वह सेक्युलरइज्म में यकीन रखते हैं। आज मिस्र की जनता की भी यही ख्वाहिश है कि मिस्र पर वही व्यक्ति शासन करे, जो कट्टरपंथी न हो। जाहिर है कि इस मामले में अदली मंसूर के रूप में सेना प्रमुख का चुनाव सही है। इस मुश्किल वक्त में मुर्सी की नाकामी के बाद मिस्र की जनता ने फिर से सेना पर भरोसा किया है। अल सीसी के जनरल जनता का भरोसा जीतने में तो कामयाब हो गए हैं, लेकिन उनकी उम्मीदों पर कितने खरे उतरते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
अल सीसी के साथ ही अंतरिम राष्ट्रपति अदली मंसूर पर पहली सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो यही है कि वह जल्दी ही नए राष्ट्रपति के लिए शांतिपूर्वक चुनाव कराएं। दूसरे यह कि मिस्र को आर्थिक मोर्चे पर मजबूती प्रदान करें। तीसरी यह कि मुसलिम ब्रदरहुड को हिंसक प्रतिक्रिया करने से बाज रखें। हालांकि अल सिसी ने वादा किया है कि सेना राजनीति से जाहिर तौर पर दूर रहेगी, लेकिन वह अदली मंसूर को कठपुतली नहीं बनाएगी, यह देखने वाली बात होगी। मुर्सी का तैयार किया हुआ इसलामी संविधान निलंबित किया जा चुका है। अदली मंसूर को बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ाने होंगे। मिस्र की जनता को तहरीर चौक पर जमा होने में देर नहीं लगती।
23 दिसंबर 1945 को काहिरा में जन्मे अदली मंसूर का पूरा नाम अदली महमूद मंसूर है। मंसूर एक पुत्र व दो पुत्रियों के पिता हैं। उन्होंने वर्ष 1967 में काहिरा यूनिवर्सिटी स्कूल आॅफ लॉ से स्नातक की डिग्री हासिल की तथा वर्ष 1969 में कानून में परास्नातक डिग्री प्राप्त की थी। यही नहीं, उन्होंने अर्थशास्त्र की शिक्षा के साथ मैनेजमेंट साइंस में भी 1970 में पोस्टग्रेजुएट डिग्री हासिल की है। वर्ष 1984 में वह मिस्र की राज्य परिषद के चांसलर के रूप में कार्यरत रहे। वर्ष 1992 तक एससीसी यानी सुप्रीम कांस्टीट्यूशनल कोर्ट के उप प्रमुख के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
माना जा रहा है कि मिस्री सेना प्रमुख अलसीसी के हाथों में ही सत्ता रहेगी। उन्होंने पिछले ही वर्ष हुसैन तंतावी की जगह रक्षा मंत्री पद का स्थान ग्रहण किया है। अल सीसी रोज नमाज करने वाले मुसलमान जरूर हैं, लेकिन वह सेक्युलरइज्म में यकीन रखते हैं। आज मिस्र की जनता की भी यही ख्वाहिश है कि मिस्र पर वही व्यक्ति शासन करे, जो कट्टरपंथी न हो। जाहिर है कि इस मामले में अदली मंसूर के रूप में सेना प्रमुख का चुनाव सही है। इस मुश्किल वक्त में मुर्सी की नाकामी के बाद मिस्र की जनता ने फिर से सेना पर भरोसा किया है। अल सीसी के जनरल जनता का भरोसा जीतने में तो कामयाब हो गए हैं, लेकिन उनकी उम्मीदों पर कितने खरे उतरते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
अल सीसी के साथ ही अंतरिम राष्ट्रपति अदली मंसूर पर पहली सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो यही है कि वह जल्दी ही नए राष्ट्रपति के लिए शांतिपूर्वक चुनाव कराएं। दूसरे यह कि मिस्र को आर्थिक मोर्चे पर मजबूती प्रदान करें। तीसरी यह कि मुसलिम ब्रदरहुड को हिंसक प्रतिक्रिया करने से बाज रखें। हालांकि अल सिसी ने वादा किया है कि सेना राजनीति से जाहिर तौर पर दूर रहेगी, लेकिन वह अदली मंसूर को कठपुतली नहीं बनाएगी, यह देखने वाली बात होगी। मुर्सी का तैयार किया हुआ इसलामी संविधान निलंबित किया जा चुका है। अदली मंसूर को बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ाने होंगे। मिस्र की जनता को तहरीर चौक पर जमा होने में देर नहीं लगती।
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