Saturday, April 13, 2013
Saturday, April 6, 2013
चंद अशआर......
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बेटी ने छोड़ा जब मां का आंगन तो एहसास हुआ, फूल कोई भी हो शाख का नहीं होता। कि निभाने हंै कई किरदार इस नाटक के अभी इक शख्स का सौ रूपों में ढलना आसां नहीं होता। |
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हंसने भी नहीं देता रोने भी नहीं देता ये दिल हमें किसी का भी होने नहीं देता तुम मांगते हो मुझ से मेरी ख्वाहिश बच्चा तो कभी अपने खिलौने नहीं देता। |
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सूखे फूल, कागज की नाव, कुछ तितलियों के पर लौटा गया कहकर कि अमानत किसी की रखता नहीं हूं मैं, कोई बतलाए कि बचपन की मोहब्बत में सियासत नहीं होती। |
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