कल रात
गोलमटोल चांद को देखकर
याद आया चांद की ही तरह,
एक शून्य ही तो हैं हम सभी
कुछ छोटे और कुछ बड़े-बडे,
अनगिनत और अलग रंगों के
कुछ भूरे कुछ मटमैले से।
विचरण करते हैं इस गोल दुनिया में
जहां से शुरू होते हैं वहीं हो जाते हैं खत्म
जिस तरह चांद अनंत अंतरिक्ष में
जहां से चलता है वहीं वापस आकर,
थकान से मूंद लेता है आंखें
इसी तरह हम भी
शून्य से चलकर मिट जाते हैं शून्य पर
और चलता रहता है
सिलसिला शून्य का निरंतर।
- डिम्पल सिरोही
गोलमटोल चांद को देखकर
याद आया चांद की ही तरह,
एक शून्य ही तो हैं हम सभी
कुछ छोटे और कुछ बड़े-बडे,
अनगिनत और अलग रंगों के
कुछ भूरे कुछ मटमैले से।
विचरण करते हैं इस गोल दुनिया में
जहां से शुरू होते हैं वहीं हो जाते हैं खत्म
जिस तरह चांद अनंत अंतरिक्ष में
जहां से चलता है वहीं वापस आकर,
थकान से मूंद लेता है आंखें
इसी तरह हम भी
शून्य से चलकर मिट जाते हैं शून्य पर
और चलता रहता है
सिलसिला शून्य का निरंतर।
- डिम्पल सिरोही
बहुत ही सुन्दर शब्द विन्यास और उससे भी सुन्दर भाव और उनका प्रस्तुतिकरण । बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteशून्य से चलकर मिट जाते हैं शून्य पर
ReplyDeleteऔर चलता रहता है
सिलसिला शून्य का निरंतर।
गहरा अर्थ।।